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how to manage PCOS and fibroids

जब पीसीओएस और फाइब्रॉएड दोनों बढ़ाएं मुश्किलें, तब अपनाएं ये स्‍पेशल टिप्स

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) और एंडोमेट्रियोसिस दो आम समस्याएं हैं, जो महिलाओं के रिप्रोडक्विव सिस्‍टम पर बुरा असर डालती हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि इन दोनों कंडीशन का इलाज और देखभाल कैसे की जा सकती है? 
Editorial
Updated:- 2025-09-18, 18:57 IST

कई महिलाएं अपने रिप्रोडक्टिव सालों में एंडोमेट्रियोसिस और पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। ये दोनों बीमारियां भले ही अलग-अलग हों, लेकिन इसका असर रिप्रोडक्टिव हेल्‍थ पर पड़ता है। अगर इनका इलाज लंबे समय तक न किया जाए, तो हेल्‍थ से जुड़ी कई समस्‍याओं का कारण बन सकती हैं। आइए इस आर्टिकल के माध्‍यम से इन दोनों समस्‍याओं और कंट्रोल करने के तरीके के बारे में विस्‍तार से जानते हैं। इसकी जानकारी लखनऊ, इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल लिमिटेड की गायनेकोलॉजिस्ट एवं आईवीएफ एक्‍सपर्ट, डॉक्‍टर पवन यादव ने शेयर की है।

एंडोमेट्रियोसिस क्या है?

एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें यूट्रस के अंदर की परत जैसा टिश्यू यूट्रस के बाहर बढ़ने लगता है। यह टिश्यू पेल्विक लाइनिंग, ओवरीज या योनि और ब्‍लैडर के बीच की जगह में दिख सकता है। यह लगभग 10 में से 1 महिला को प्रभावित करता है और इससे प्रेग्‍नेंट होने में मुश्किल आती है। इससे 30 से 50 प्रतिशत महिलाओं को रिप्रोडक्टिव से जुड़ी समस्याएं होती हैं। यह दिल के रोगों जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से भी जुड़ा हुआ है।

इसकी पहचान करने के लिए डॉक्टर अक्सर लैप्रोस्कोपी जैसी प्रोसेस का इस्‍तेमाल करते हैं।

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पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) क्या है?

पीसीओएस 6 से 15 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करता है और यह इन‍फर्टिलिटी का मुख्‍य कारण है। यह टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों के खतरे को भी बढ़ा सकता है। PCOS का पता लगाने के लिए कोई खास टेस्ट नहीं है। इसे डायग्‍नोज करने के लिए कोई स्‍पेशल टेस्ट नहीं है। डॉक्टर आमतौर पर कुछ लक्षण देखकर पहचान करते हैं, जैसे-

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  • पीरियड्स का अनियमित होना
  • एंड्रोजन हार्मोन का बढ़ना (चेहरे/शरीर पर बाल, मुहांसे, बाल झड़ना)
  • अल्ट्रासाउंड में ओवरीज पर कई छोटे-छोटे सिस्ट दिखना

इसे जरूर पढ़ें: अनियमित पीरियड्स को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?

फाइब्रॉएड पीसीओएस से कैसे जुड़ा है?

फाइब्रॉएड यूट्रस में होने वाली नॉन-कैंसर्स गांठें हैं, जबकि पीसीओएस में ओवरीज में छोटे-छोटे सिस्ट होते हैं, जो एग्‍स को रिलीज होने से रोकते हैं। रिसर्च के मुताबिक, पीसीओएस से परेशान महिलाओं में फाइब्रॉएड का खतरा ज्यादा हो सकता है, क्योंकि एस्ट्रोजन हार्मोन का असर लंबे समय तक बना रहता है।

हालांकि, दोनों एक दूसरे से कैसे जुड़े हैं? यह बात अभी साबित नहीं हो पाई है और इस पर ज्‍यादा रिसर्च की जरूरत है।

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पीसीओएस और फाइब्रॉएड से परेशान महिलाओं के लिए क्‍या ट्रीटमेंट हैं?

  • पीसीओएस की कुछ दवाएं शुरूआत में फाइब्रॉएड के लक्षणों को कंट्रोल कर सकती हैं, लेकिन यदि शरीर में एस्ट्रोजन का उत्पादन होता रहता है या प्रोजेस्टेरोन की मात्रा कम होती है, तो फाइब्रॉएड धीरे-धीरे बढ़ते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, पीरियड्स में हैवी ब्‍ल‍ीडिंग, पेल्विक में दर्द या बार-बार यूरिन आने जैसे लक्षण दवाओं से ठीक नहीं हो पाते हैं।
  • ऐसे में यूटरिन फाइब्रॉएड एम्बोलाइजेशन (UFE) नामक नॉन-सर्जिकल इलाज किया जा सकता है। इसमें सर्जरी की तुलना में कम रिस्क होता है और रिकवरी भी जल्दी होती है।
  • अगर आपको भी फाइब्रॉएड या पीसीओएस के लक्षण दिखाई देते हैं, तो देर न करें और किसी डॉक्टर से सलाह जरूर लें। सही इलाज और देखभाल से इन समस्याओं को कंट्रोल किया जा सकता है। सही देखभाल से फाइब्रॉएड के दर्दनाक लक्षण आपके जीवन का हिस्सा नहीं रहेंगे।

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