
हम अक्सर यह मान लेते हैं कि अगर घर साफ-सुथरा दिख रहा है, तो वह पूरी तरह से सुरक्षित ही होगा। साफ किचन, ताजा महकते कमरे और व्यवस्थित अलमारियां को देखकर हमें भरोसा होता हैं कि आस-पास कोई खतरा नहीं है, लेकिन सच इससे कहीं अलग है। एक्सपर्ट के अनुसार, हमें घर रोज ऐसे टॉक्सिन्स, बैक्टीरिया, फंगस और माइक्रोब्स के संपर्क में ला सकता है, जो दिखते नहीं हैं, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों की सेहत पर बुरा असर डालते हैं।
गुड़गांव की 'गेट फिट विद लीमा' की वेट लॉस और हार्मोनल हेल्थ एक्सपर्ट एवं न्यूट्रिशनिस्ट लीमा महाजन कहना है कि बिना सोचे-समझे इस्तेमाल होने वाली घर की कई चीजें सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं। ये चीजें न सिर्फ एलर्जी, स्किन इंफेक्शन और डाइजेशन से जुड़ी समस्याओं को बढ़ाती हैं, बल्कि सांस लेने में दिक्कत, हार्मोनल असंतुलन और बार-बार बीमार पड़ने जैसे खतरे को भी बढ़ा सकती हैं। जी हां, घर बाहर से चाहे कितना भी परफेक्ट लगे, भीतर छिपी छोटी-छोटी गलतियां वेलनेस को खमोशी से खराब कर सकती हैं।

हम अक्सर बाजार से लाकर सब्जियों को सीधे फ्रिज में रख देते हैं, लेकिन यह आदत काफी खतरनाक हो सकती है। इन सब्जियों पर मौजूद मिट्टी, कीटनाशक और Listeria, E.coli जैसे बैक्टीरिया फ्रिज की बाकी चीजों को भी संक्रमित कर सकते हैं। इससेफूड पॉइजनिंग, पेट दर्द, दस्त, उल्टी जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
किचन में टंगा गीला टॉवल घर में सबसे तेजी से बैक्टीरिया फैलाने वाली चीजों में से एक है। जब हम इससे हाथ पोंछते हैं या बर्तन साफ करते हैं, तब यह बैक्टीरिया को सीधे भोजन, बर्तनों और सतहों पर ट्रांसफर कर देता है। लगातार नमी रहने के कारण यहई.कोलाई और साल्मोनेला जैसे खतरनाक बैक्टीरिया का घर बन जाता है।
बाथरूम की दीवारों या कोनों में दिखने वाला काला या हरा फफूंद सिर्फ गंदगी नहीं है, बल्कि यह हवा में ऐसे स्पोर्स छोड़ता है, जो हेल्थ के लिए काफी हानिकारक होते हैं। यह एलर्जिक राइनाइटिस, दम घुटने की भावना, अस्थमा के अटैक, लगातार खांसी और सांस लेने में तकलीफ का कारण बन सकता है। लंबे समय तक इसका असर इम्यूनिटी को भी कमजोर करता है।

इनमें धूल, प्रदूषक और डस्ट माइट्स फंस जाते हैं, जो एलर्जी और सांस की समस्याओं को बढ़ाते हैं।
हमेशा गीला रहने के कारण इनमें फंगस और बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं, जो स्किन इंफेक्शन, खुजली और बॉडी एक्ने का कारण बनते हैं। डर्मेटोलॉजिस्ट सलाह देते हैं कि लूफा को 3-4 हफ्ते में बदल देना चाहिए।
बार-बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक कंटेनर हार्मोनल असंतुलन और डाइजेशन से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हीट और घिसाव के कारण इनमें से माइक्रोप्लास्टिक्स और केमिकल्स निकलकर खाने में घुल जाते हैं।
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तकिए में 6-12 महीनों में धूल, डस्ट माइट्स, फफूंद और बैक्टीरिया इकट्ठा हो जाते हैं। ऐसे तकिए नाक बंद, सांस फूलना, छींकें, एलर्जी और नींद को खराब कर सकते हैं। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि तकिए को 1–2 साल में बदलना जरूरी है।

किचन में मौजूद स्पंज में सबसे ज्यादा बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। लगातार नमी इन्हें माइक्रोब्स का घर बना देती है।
सिर्फ खाने और एक्सरसाइज से नहीं, बल्कि घर के महौल से भी सेहत पर असर होता है। छोटी-सी लापरवाही सेहत पर बड़े खतरे में डाल सकती है।
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