पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद हमें सिखाती है कि खान-पान ही औषधि है और हमारा स्वास्थ्य हमारे भोजन पर पूरी तरह से निर्भर करता है। आयुर्वेद हमें यह भी बताता है कि आहार का हमारे शरीर और मन पर कितना प्रभाव डालता है। जब हम किसी भी भोजन का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन करते हैं, तब हम उसे कई दृष्टिकोणों से परखते हैं। हम उसके रस पर ध्यान देते हैं, जैसे कि वह मीठा है, खट्टा है, नमकीन है, कड़वा है, तीखा है या कसैला है। फिर, हम उसकी तासीर को देखते हैं कि वह शरीर में गर्मी पैदा करता है या ठंडक। इसके बाद, हम उसके विपाक (पाचन के बाद शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव) को समझते हैं और सबसे जरूरी, हम यह देखते हैं कि उस फूड का शरीर के तीन दोषों जेसे वात, पित्त और कफ पर क्या असर पड़ता है।
अब, जब हम गठिया या अर्थराइटिस जैसी दर्दनाक और जीवन को प्रभावित करने वाली स्वास्थ्य समस्याओं की बात करते हैं, तो आयुर्वेद का यह आहार-सिद्धांत ज्यादा जरूरी हो जाता है। वात दोष जोड़ों में जाकर दर्द, सूजन, अकड़न और चलने-फिरने में कठिनाई जैसी तकलीफें उत्पन्न करता है।
आज हम आपको 3 ऐसी सब्जियों के बारे में बता रहे हैं, जिसे अर्थराइटिस की समस्या में खाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे हड्डियों में दर्द और अकड़न महसूस होने लगती है। गठिया दर्द बढ़ाने वाली सब्जियों की जानकारी डॉक्टर चैताली राठौड़ ने सोशल मीडिया पर शेयर की हैं। डॉक्टर चैताली राठौड़ ने BAMS किया है।
आयुर्वेद में टमाटर को अम्लीय माना जाता है और इसकी तासीर गर्म होती है। इसका स्वाद खट्टा होता है। इसलिए, टमाटर के ये गुण शरीर में कुछ विशेष दोषों को बढ़ा सकते हैं, खासतौर पर पित्त और वात दोष। जब ये दोष असंतुलित हो जाते हैं, तब शरीर में कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।
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विशेष रूप से, जब किसी को गठिया, जोड़ों का दर्द, गाउट, सायटिका, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस या ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं होती हैं, तो ये वात दोष के असंतुलन के कारण होती है। वात दोष के बढ़ने से शरीर में ड्राईनेस, दर्द और अकड़न बढ़ने लगती है। इसलिए, जहां वात पहले से ही बढ़ा हुआ हो और दर्द दे रहा हो, हमें टमाटर खाने से बचना चाहिए या बहुत ही कम खाना चाहिए, ताकि समस्या और न बिगड़े।
ग्वार फली को आयुर्वेद में पचने में भारी माना जाता है। इसे खाने से वात और पित्त दोनों दोष बढ़ सकते हैं। हालांकि, यदि इन फलियों को सही तरीके से और सही मात्रा में खाया जाए, तो ये कफ से संबंधित समस्याओं में थोड़ी मदद भी कर सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि, कफ दोष भारी और शीतल होता है और ग्वार फली के कुछ गुण उसे संतुलित करती हैं।
यदि शरीर में वात दोष के असंतुलन के कारण दर्द या गैस की समस्या होती है या पित्त के कारण जलन, एसिडिटी या सूजन जैसी समस्याएं महसूस होती हों, तो ऐसे में यह सलाह दी जाती है कि ग्वार फली का सेवन न करें या फिर बहुत ही संतुलित और सीमित मात्रा में करें, ताकि ये दोष और न बढ़ें।
बैंगन को इसके विभिन्न गुणों और उपयोगिता के कारण "सब्जियों का राजा" भी कहा जाता है। लेकिन, जब बात इसके पाचन की आती है, तब यह पचने में बाकी सब्जियों की तुलना में भारी होता है। इसके अलावा, यह पित्त दोष को बढ़ाता है। इसके ये गुण कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को और भी बिगाड़ सकते हैं, जैसे कि बैंगन खाने से जोड़ों में सूजन और दर्द बढ़ सकता है। पित्त बढ़ने से खुजली, चकत्ते या अन्य त्वचा समस्याएं गंभीर हो सकती हैं। भारी होने के कारण यह डाइजेस्टिव सिस्टम पर ज्यादा असर डाल सकता है। पित्त की अधिकता से होने वाली कोई भी बीमारी बैंगन खाने से बढ़ सकती है।
हालांकि, यदि किसी महिला की वात प्रकृति है या वात दोष असंतुलित है, तो वह बैंगन को तिल के तेल में पकाकर बहुत ही संतुलित मात्रा में कभी-कभी खा सकती हैं। तिल का तेल गर्म होता है और वात को शांत करने में मदद करता है, जिससे बैंगन के कुछ वात बढ़ाने वाले प्रभाव कम हो सकते हैं।
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इन सब्जियों में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। लेकिन, जब हम किसी विशेष बीमारी के उपचार पर विचार करते हैं, तो हमें इस बात पर बहुत सावधानी बरतनी चाहिए कि हम भोजन के रूप में क्या ले रहे हैं, क्योंकि आयुर्वेद का मूल सिद्धांत है कि "भोजन ही औषधि का काम करता है।'' सही भोजन बीमारी को ठीक करने में मदद करता है, जबकि गलत भोजन उसे बढ़ा सकता है।
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