हम सभी मानते हैं कि घर का बना खाना हेल्दी होता है, क्योंकि इसमें बाहर के फास्ट फूड की तरह तेल, मसाले और प्रिजर्वेटिव नहीं होते। लेकिन क्या आप जानती हैं कि वही घर का खाना, जिसे हम प्यार और विश्वास से खाते हैं, धीरे-धीरे सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है? जी हां, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के हालिया अध्ययन ने इस बात का खुलासा किया है कि हमारा रोजाना खाया जाने वाला पारंपरिक भारतीय भोजन देखने में भले ही सादा और पौष्टिक लगे, लेकिन पोषण के लिहाज से इसमें भारी असंतुलन है।
रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन भारतीय थाली में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है और प्रोटीन की बहुत कमी होती है, यानी हमारी थाली में चावल, रोटी, आलू जैसी चीजें तो भरपूर हैं, लेकिन प्रोटीन से भरपूर दाल, दूध, दही या अंडे जैसी चीजें बहुत कम हैं। यह असंतुलन धीरे-धीरे हमारे शरीर पर बुरा असर डालता है, वजन बढ़ाता है, ब्लड शुगर लेवल को गड़बड़ करता है और आगे चलकर डायबिटीज, मोटापा और हार्मोनल समस्याओं का कारण बनता है।
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में ज्यादातर लोग अपनी डाइट में 60–65 प्रतिशत तक कैलोरी सिर्फ कार्ब्स से लेते हैं, जबकि प्रोटीन का प्रतिशत केवल 10–12 प्रतिशत के आस-पास होता है। यह अनुपात शरीर के लिए ठीक नहीं है। लगातार ऐसा भोजन करने से इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है, मेटाबॉलिज़्म धीमा होता है और शरीर में फैट जमा होने लगता है।
अगर आप सोचती हैं कि सिर्फ बाहर का खाना ही नुकसानदायक है, तो अब समय अपनी रसोई की थाली पर भी एक नजर डालने का है। थोड़ा-सा बदलाव जैसे सफेद चावल की जगह ब्राउन राइस या मिलेट्स लेना, हर मील में दाल, पनीर या अंकुरित अनाज शामिल करना। यह आपकी सेहत के लिए बहुत बड़ा अंतर ला सकता है।
ICMR–INDIAB के इस बड़े अध्ययन में पूरे भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 1.2 लाख से अधिक लोगों के खानपान की जांच की गई। नतीजे चौंकाने वाले थे-
भारतीयों के खाने में 62 प्रतिश्त कैलोरी सिर्फ कार्बोहाइड्रेट से आती है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।
यह कार्ब्स ज्यादातर सफेद चावल, मैदा और चीनी जैसे कम क्वालिटी वाले स्रोतों से मिलते हैं।
दक्षिण, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में सफेद चावल मुख्य आहार है, जबकि उत्तर और मध्य भारत में गेहूं का बोलबाला है।
मिलेट्स (बाजरा, रागी, ज्वार) जैसे पोषक अनाज, जो पहले भारतीय थाली का अहम हिस्सा थे, अब सिर्फ कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र तक सीमित रह गए हैं।
21 राज्यों में शक्कर का सेवन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सीमा (कुल कैलोरी का 5 प्रतिशत) से कहीं ज्यादा पाया गया।
रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीयों के खाने में प्रोटीन की भारी कमी है। हमारी कुल दैनिक कैलोरी का सिर्फ 12 प्रतिशत हिस्सा ही प्रोटीन से आता है, जबकि 15–20 प्रतिशत होना चाहिए। ज्यादातर प्रोटीन दालों और अनाजों जैसे पौधों से मिलता है।
डेयरी प्रोडक्ट्स (दूध, दही, पनीर) से सिर्फ 2 प्रतिशत और नॉन-वेजिटेरियन से सिर्फ 1 प्रतिशत प्रोटीन मिलता है। इसकी वजह से मसल्स कमजोर, मेटाबॉलिज्म धीमा और इंसुलिन रेजिस्टेंस जैसी समस्या बढ़ जाती है, जो डायबिटीज की बड़ी वजह है।
हालांकि, भारतीय आहार में कुल फैट की मात्रा सीमित है, लेकिन फैट की क्वालिटी खराब है। लगभग हर राज्य में लोग जरूरत से ज्यादा घी, मक्खन, पाम ऑयल जैसे सैचुरेटेड फैट्स खाते हैं। इसके विपरीत, हेल्दी फैट्स जैसे ओमेगा-3, नट्स, बीज और मछली बहुत कम खाते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि हाई कार्बोहाइड्रेट और गुड फैट्स का यह कॉम्बिनेशन मेटाबॉलिक हेल्थ को बर्बाद कर रहा है।
अध्ययन के अनुसार, अगर हम अपने खाने में सिर्फ 5 प्रतिशत कार्ब्स घटाकर उतनी मात्रा में प्रोटीन बढ़ा दें, तो मोटापा और डायबिटीज दोनों का खतरा काफी कम किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आपको अपने खाने की पूरी आदत बदलने की जरूरत नहीं है, बस कुछ समझदारी भरे बदलाव करने हैं।
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घर का खाना सेहतमंद जरूर है, लेकिन अगर उसमें कार्ब्स ज्यादा और प्रोटीन कम है, तो वह भी आपको मोटापा और डायबिटीज की ओर ले जा सकता है। थोड़े-से बदलाव करके आप अपनी थाली को बैलेंस्ड, पौष्टिक और हेल्दी बना सकती हैं।
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