Dysthymic Disorder: लंबे समय तक मूड खराब रहने की वो बीमारी जो डिप्रेशन का साइन है, जानें डिस्थीमिया क्या है?

डिस्थीमिया एक ऐसा मेंटल इलनेस है, जिसमें आप लंबे समय तक डिप्रेशन में रहते हैं। क्या मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर और इसमें कोई समानता है? इन सवालों के जवाब आइए सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से जानें।

 
how dysthymia is diagonsed
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क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप एक पल में खुश हैं और फिर दुखों के बादल आपके पूरे मूड को प्रभावित कर देते हैं? क्या आपने लंबे समय से और एक लंबे वक्त तक अलग-अलग स्थितियों में खुद को परेशान पाया है? क्या आपको कभी यह महसूस हुआ है कि आप डिप्रेशन में हैं?

ये सवाल मैं आपसे इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि ये सवाल मुझसे कभी नहीं पूछे गए। मैंने भी एक वक्त तक ऐसा महसूस किया और ऐसा नहीं है कि इससे पूरी तरह बाहर आ गई हूं, लेकिन पहले से थोड़ा बेहतर हूं और अब अपने मूड स्विंग्स को अच्छी तरह से समझती हूं।

मैं यहां डिस्थीमिया की बात कर रही हूं, जिसे परसिस्टेंस डिप्रेसिव डिसऑर्डर भी कहते हैं। इस डिसऑर्डर से मैं भी गुजर रही हूं और इसलिए इसके बारे में आप सभी को जागरूक करना चाहती हूं।

इस स्थिति में आप किसी एक एक्टिविटी को बहुत ज्यादा देर के लिए एन्जॉय नहीं कर पाते। यही कारण होता है कि आप धीरे-धीरे लोगों से मिलना-जुलना बंद कर देते हैं। डिस्थीमिया एक ऐसा टर्म है जिसके बारे में आपने शायद पहली बार सुना हो। अगर यह डिप्रेशन है तो इसे सीधा डिप्रेशन क्यों नहीं कहते?

यह सवाल मैंने सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉ. भावना बर्मी से किया तो उन्होंने बताया, " यह एक मूड डिसऑर्डर है जो 2 साल या उससे अधिक समय तक रहता है। चूंकि यह माइल्ड डिप्रेशन है और डिप्रेसिव डिसऑर्डर की तरह इसके कोई गंभीर लक्षण नहीं होते इसलिए इसे पीडीडी भी कहते हैं।"

कैसे पता चलता है कि किसी को डिस्थीमिया है? इससे गुजरने वाला व्यक्ति कैसा महसूस करता है और क्या इसका कोई इलाज है, ये सवाल अगर आपके मन में भी हैं तो एक्सपर्ट से इससे बेहतर तरीके से जानते हैं।

क्या है डिस्थीमिया?

what is dysthymic moodडिस्थीमिया, जिसे परसिस्टेंस डिप्रेसिव डिसऑर्डर(पीडीडी) के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का क्रॉनिक अवसाद है जो अक्सर लंबे समय तक बना रहता है। इसमें व्यक्ति लगातार डिप्रेस्ड या लो मूड में रहता है और यह लंबे समय तक चलता है।

यह गंभीर डिप्रेसिव डिसऑर्डर से अलग है। इसके लक्षण आपके दिनचर्या में हस्तक्षेप करते हैं, लेकिन डिस्थीमिया इस अवसाद का एक हल्का रूप है। हालांकि, यह भी किसी व्यक्ति के जीवन और कार्य करने की क्षमता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

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इसके लक्षण क्या हैं?

जैसा कि ऊपर हमने आपको बताया यह लंबे समय तक बना रहने वाला मूड डिस्टर्बेंस है। दिन के अधिकांश समय उदास या लो मूड रहना, निराशा, कम ऊर्जा या थकान, खराब एकाग्रता या निर्णय लेने में कठिनाई, भूख या वजन में परिवर्तन, अनिद्रा या हाइपर्सोमनिया, आत्मसम्मान की कमी और गतिविधियों में रुचि की कमी इसके लक्षण हैं।

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डिस्थीमिया के कारक-

इसके सटीक कारण क्या हैं, इसके बारे में पूरी जानकारी विशेषज्ञों के पास भी नहीं है, लेकिन आनुवंशिक, पर्यावरण और जैविक कारक इसके विकास में योगदान कर सकते हैं। इसके कुछ संभावित कारणों या जोखिम कारकों में अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों का पारिवारिक इतिहास, ट्रॉमा या अब्यूज़, कोई स्ट्रेसफुल इवेंट हो सकते हैं। ब्रेन केमिस्ट्री इंबैलेंस, जैसे सेरोटोनिन या डोपामाइन की कमी, पुरानी बीमारी या शारीरिक दर्द और मादक द्रव्यों के सेवन से भी डिस्थीमिया हो सकता है।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि पीडीडी या डिस्थीमिया किसी भी उम्र में, किसी भी जेंडर को प्रभावित कर सकता है।

इससे गुजरने वाला व्यक्ति क्या महसूस करता है?

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डिस्थीमिया से पीड़ित व्यक्ति आमतौर पर लंबे समय से उदासी का अनुभव करता है। इससे उनके लिए उन एक्टिविटीज का आनंद लेना भी मुश्किल हो सकता है जो उन्हें कभी अच्छी लगगी हों। वह धीरे-धीरे सोशलाइज होना कम कर देते हैं। ऐसे लोग अक्सर खुद को लेकर भी नेगेटिव होते हैं और अक्सर होपलेसनेस या निराशा भी महसूस कर सकते हैं।

मैं खुद की बात करूं तो मुझे हमेशा थकान रहती है। मेरा कहीं जाने का मन नहीं करता। अगर दोस्तों के साथ कुछ प्लान बनाती भी हूं, तो उसे कैंसिल कर देती हूं। ओवरईटिंग, नींद में गड़बड़ी (बेहतर नींद के लिए टिप्स), ध्यान केंद्रित करना या फिर फैसले लेना मेरे लिए अक्सर मुश्किल हो जाता है।

सामान्य तौर पर, इस स्थिति से गुजर रहे व्यक्ति को लगता है कि वह उदासी, निराशा और कम ऊर्जा के चक्र में फंस गया है जिससे वह अपने आप बाहर नहीं निकाल सकता है। इससे हताशा, अपराधबोध और शर्म की भावनाएं पैदा हो सकती हैं, जिसके कारण वह किसी से मदद मांगने से हिचकिचाते हैं। दूसरों से बात करना भी उनके लिए मुश्किल हो जाता है।

डिस्थीमिया का इलाज क्या है?

डॉ. बर्मी कहती हैं, "हां यह एक क्रॉनिक कंडीशन है, लेकिन इसके लक्षणों को पहचानकर अगर सही इंटरवेंशन किया जाए तो इसे प्रभावी ढंग से ट्रीट किया जा सकता है। हालांकि इसका कोई 'Cure' नहीं है। इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति सही उपचार के साथ अपने लक्षणों में कमी महसूस कर सकता है और अपने जीवन को अच्छे ढंग से जी सकता है (स्ट्रेस, एंग्जाइटी और मूड स्विंग्स में क्या है अंतर)।

इसके उपचार में आमतौर पर दवा और मनोचिकित्सा का संयोजन शामिल होता है। मनोचिकित्सा में जैसे संज्ञानात्मक-व्यवहार चिकित्सा (सीबीटी), कौशल सीखने, नकारात्मक विचार पैटर्न को चुनौती देने और सोचने और व्यवहार करने के स्वस्थ तरीके विकसित करने की विधियां शामिल हैं।

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दवा और मनोचिकित्सा के अलावा, जीवनशैली में बदलाव, जैसे नियमित व्यायाम, पोषणयुक्त भोजन और तनाव कम करने की तकनीकें भी इसके लक्षणों को मैनेज करने में सहायक हो सकती हैं।

सही समर्थन और हस्तक्षेप के साथ, डिस्थीमिया के लक्षणों का प्रबंधन और सुधार की मदद से और एक बेहतर जीवन जीना संभव है। अगर आपको ऐसा लगता है कि ये लक्षण आपमें भी हैं, तो घर में बैठे रहने की बजाय किसी से बात करें और एक अच्छे थेरेपिस्ट से जरूर मिलें।

हम अपने स्वास्थ्य के बारे में तो खुलकर बात करते हैं, लेकिन जहां मेंटल इलनेस का जिक्र आता है वहां लोग चुप्पी साध लेते हैं। मेंटल इलनेस पर ध्यान देना भी आपके लिए उतना ही महत्वपूर्ण होना चाहिए, जितना बाकी हेल्थ इश्यू पर ध्यान देना होता है।

वहीं, अगर आपके दोस्त या आसपास के किसी व्यक्ति का अक्सर मूड खराब रहता या बदलता है, तो उसका मजाक बनाने की बजाय उससे बात करें।

हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके काम आएगी। मेंटल इलनेस को नजरअंदाज न करें। इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को आप भी जागरूक करें। हम इसी तरह मेंटल हेल्थ के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक्सपर्ट बेस्ट आर्टिकल लिखते रहेंगे। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

Image credit: freepik

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