अधिकतर महिलाओं को ओवरथिंकिंग की आदत होती हैं। वे अक्सर हर छोटी-बड़ी बातों के बारे में ज्यादा सोचकर परेशान होने लगती हैं। शायद ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि महिलाएं आदतन अधिक इमोशनल होती हैं। लेकिन क्या आपको इस बात का पता है कि आपकी जरूरत से ज्यादा सोचने की आदत आपकी सेहत खासतौर से हार्मोन पर नेगेटिव असर डाल सकती है। खासतौर से, महिलाओं के लिए तो ये असर और गहरा होता है, क्योंकि उनके हार्मोन में हर महीने काफी उतार-चढ़ाव आता है।
आपने भी कभी ना कभी महसूस किया होगा कि जब आप किसी बात को लेकर ओवरथिंक करती हैं तो बिना कोई काम किए भी शरीर थका-थका सा लगता है या फिर रात में नींद नहीं आती है या फिर मूड चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ज़्यादा सोचने का असर सिर्फ़ दिमाग़ पर नहीं, बल्कि हमारे हार्मोन पर भी सीधा पड़ता है।
दरअसल, ओवर थिंकिंग करने पर शरीर में कोर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हार्मोन ज्यादा बनने लगता है। जिसकी वजह से शरीर के बाकी हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन और सेरोटोनिन का बैलेंस बिगड़ने लगता है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि ओवरथिंकिंग की आदत आपकी मेंटल हेल्थ के साथ-साथ हार्मोन पर किस तरह असर डाल सकती है-
ओवरथिंकिंग से शरीर में बढ़ता है स्ट्रेस हार्मोन
जब आप हर वक्त कुछ ना कुछ सोचती रहती हैं या फिर किसी बात को लेकर बहुत ज्यादा सोचती हैं तो ऐसे में शरीर बार-बार कोर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हार्मोन रिलीज़ करता है। खासतौर पर पीरियड साइकल के शुरूआती हिस्से मतलब फॉलिक्युलर फेज में अगर अचानक शरीर में स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाए तो इससे महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का बैलेंस बिगड़ जाता है। जिसकी वजह से डिप्रेशन, उदासी या चिड़चिड़ापन हो सकता है। जब हार्मोन गड़बड़ाने लगते हैं तो इससे पीरियड साइकल पर भी असर नजर आ सकता है।
बढ़ने लगती है दिमागी थकान
जब आप ओवरथिंकिंग करती हैं, तो इस दौरान आपको शारीरिक व मानसिक थकान का अहसास होता है। दरअसल, ओवरथिंकिंग की वजह से स्ट्रेस बढ़ता है और एस्ट्रोजन लेवल कम होने लगता है। जिसकी वजह से शरीर में हार्मोन बैलेंस बिगड़ने लगता है। खासतौर से, पीरियड से पहले या मेनोपॉज़ के आस-पास तो हमारा दिमाग़ स्ट्रेस को और ज़्यादा सीरियस लेने लगता है। जिससे एंग्जाइटी, ओवरथिंकिंग व मूड स्विंग्स काफी ज्यादा बढ़ने लगते हैं। एक स्टडी ने बताया कि जब एस्ट्रोजन कम होता है और साथ ही स्ट्रेस भी ज़्यादा होता है, तो महिलाओं में डिप्रेशन और नेगेटिव सोच ज़्यादा पाई जाती है।
सेरोटोनिन पर भी पड़ता है असर
सेरोटोनिन को ‘हैप्पी हार्मोन’ भी कहा जाता है। ये आपके मूड और नींद के पैटर्न को कंट्रोल करता है। एस्ट्रोजन सेरोटोनिन को बनाता और कंट्रोल करता है। इसलिए, जब शरीर में एस्ट्रोजन कम होता है, तो सेरोटोनिन भी कम हो जाता है। जिसकी वजह से महिलाओं को अक्सर बेचैनी, उदासी, थकावट और बार-बार एक ही बात सोचते रहने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। बार-बार उलझी हुई या नेगेटिव बातों को मन में दोहराते रहना ही रूमिनेशन कहलाता है। ये ऐसा होता है जैसे कोई बात दिमाग में अटक गई हो और बार-बार घूमती रहे। जब सेरोटोनिन कम हो जाता है, तब दिमाग के लिए उन नेगेटिव बातों से बाहर निकल पाना और भी मुश्किल हो जाता है।
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Study Link:
https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC9673602/
https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC5146195/
https://www.kelsey-seybold.com/your-health-resources/blog/hormonal-imbalance-the-stress-effect
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