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yoga asanas based on shivas postures

Mahashivratri 2024: भगवान शिव की मुद्राओं से बने ये योगासन दिला सकते हैं निरोगी काया, जानें सही विधि 

भगवान शिव, आदियोगी यानी कि प्रथम योगी माने जातें हैं, जिन्होनें सृष्टि को योग का ज्ञान दिया और आज वही योग पूरी दुनिया में चिकित्सा के एक प्रभावी आयाम के रूप में विख्यात हो चुका है। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-03-09, 13:48 IST

आज महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) के अवसर देश के सभी मंदिरों और शिवालयों महादेव के जयकारे लग रहे हैं और भगवान शिव के विभिन्न रूपों की पूर्जा अर्चना की जा रही हैं। गौरतलब है कि भगवान शिव के देव स्वरूप के कई आयाम हैं जिनका आज के व्यवाहिरक जीवन में भी काफी महत्व है। जैसे कि भगवान शिव, आदियोगी यानी कि प्रथम योगी माने जातें हैं, जिन्होनें सृष्टि को योग का ज्ञान दिया और आज वही योग पूरी दुनिया में चिकित्सा के एक प्रभावी आयाम के रूप में विख्यात हो चुका है।

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, शिव जी ने सबसे पहले सप्त ऋषियों को योग सिखाया था और उन्ही सप्त ऋषियों के माध्यम से योग का पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार हुआ। देखा जाए तो संपूर्ण योग विज्ञान भगवान शिव की देन है, पर भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं से निकले योग का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) के अवसर पर ऐसे ही कुछ योगासनों और मुद्राओं के बारे में हम आपको बता रहे हैं। दरअसल, हमने इस बारे में‘मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान’की योग प्रशिक्षक मधु खुराना से बात की और उनसे मिली जानकारी यहां हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं।

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नटराजासन (Natarajasana)

Natarajasana practice for body balance

योग प्रशिक्षक मधु खुराना कहती हैं कि अगर बात भगवान शिव के मुद्रा पर आधारित योगासनों की हो तो सबसे पहले जिक्र नटराजासन का होना चाहिए। दरअसल, यह योगासन भगवान शिव के नटराज अवतार पर आधारित है, जोकि सृष्टि के सृजन और विनाश का प्रतीक है। बता दें कि राजा नटराज शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। बात करें इसे योगासन के लाभ की तो यह आसन एक उत्कृष्ट संतुलन आसन है जो शरीर में अनुग्रह, संतुलन और समन्वय लाता है।

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वीरभद्रासन (Virabhadrasana)

How to do Virabhadrasana

भगवान शिव के स्वरूप पर आधारित दूसरा आसन है वीरभद्रासन, जो असल में भगवान शिव के उग्र रूप वीरभद्र से प्रेरित है। असल में यह आसन भगवान शिव की उस रूप या मुद्रा से प्रेरित है जब देवी सती की मृत्यु के दुःख के कारण शिव क्रोधित हुए और उनका पसीना पृथ्वी पर गिरा जिससे भयंकर वीरभद्र का जन्म हुआ। इस आसन के अभ्यास से व्यक्ति में शक्ति, निडरता और साहस का भाव बढ़ता है।

हनुमानासन (Hanumanasana)

right way to do Hanumanasana

भगवान हनुमान, महादेव के 11वें अवतार माने जाते हैं और हनुमान जी के भव्य स्वरूप से प्रेरित एक उन्नत आसन हनुमानासन है। योग प्रशिक्षक मधु खुराना के अनुसार, इस आसान का रोजाना अभ्यास पैरों की स्ट्रेचिंग के लिए बहुत अच्छा है। इससे हैमस्ट्रिंग, पिंडली की मांसपेशियों, कमर क्षेत्र और कूल्हे की मांसपेशियों के लचीलेपन में सुधार होता है।

ध्यान मुद्रा (Dhyana mudra)

आज पूरी दुनिया भर में विख्यात मेडिटेशन असल में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा की देन है, जिसके जरिए तमाम तरह की मानसिक समस्याओं का हल किया जाता है। गौरतलब है कि इस मुद्रा में ध्यान में बैठे भगवान शिव के दोनों हाथ उनकी गोद में होते हैं और हथेलियां ऊपर की ओर रहती हैं। बता दें कि यह मुद्रा आंतरिक शांति और शांति का प्रतीक है। इसके नियमित अभ्यास से मानसिक शांति मिलती है और तनाव और मानसिक अवसाद जैसे विकारों से मुक्ति मिलती है।

लिंग मुद्रा (Linga mudra)

how to do Linga mudra practice

लिग मुद्रा, शिव लिंग से प्रेरित एक एक हस्त मुद्रा है, जिसका अभ्यास करने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। ऐसे में इसका नियमित अभ्यास सर्दी-जुकाम, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और साइनस से पीड़ित लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है। बात करें इसके अभ्यास विधि की तो इसमें ध्यान मुद्रा में बैठ कर या किसी निश्चित जगह पर स्थिर खड़े होकर इसका अभ्यास किया जा सकता है। इस मुद्रा में दोनों हथेलियों के बीच एक हाथ का अंगूठा सीधा खड़ा रखना होता है।

इस मुद्रा में सीधा अंगूठा पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि उसे घेरी हुई हथेली स्त्रीत्व का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान वायु और अग्नि तत्वों के बीच संतुलन स्थापित होता है। चूंकि वायु अग्नि के प्रवाह में सहायक होती है, ऐसे में इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में अग्नि तत्व का प्रवाह बढ़ता है। यही वजह है कि इस मुद्रा का अभ्यास शरीर में गर्मी उत्पन्न कर सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं से निजान दिलाने में सहायक साबित होता है।

शांभवी मुद्रा (Shambhavi mudra)

शांभवी मुद्रा भी भगवान शिव से प्रेरित मानी जाती है। असल में सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने देवी पार्वती को यह मुद्रा सिखाई थी, जोकि स्त्री शक्ति को सक्रिय करता है। इस मुद्रा के दौरान किसी शांत स्थान पर बैठकर दोनों भौंहों के बीच अपना ध्यान केंद्रित करना होता है। इसका अभ्यास एकाग्रता बढ़ाने और दिमाग को शांत रखने में लाभकारी होती है। साथ ही शांभवी मुद्रा के नियमित अभ्यास से आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद मिलती है। 

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