भगवान शिव की महिमा अपरंपार है और उनकी आराधना के लिए 'शिवरात्रि' का पर्व अत्यंत पवित्र माना जाता है। हिंदू पंचांग में मासिक शिवरात्रि, सावन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि जैसे कई नाम आते हैं, जो अक्सर भक्तों को भ्रमित करते हैं। जबकि, ये सभी तिथियां महादेव को समर्पित हैं, पर इनके पीछे छिपे महत्व, पौराणिक कथाओं और पूजन विधि में कई अंतर हैं। शिव भक्त इन तीनों शिवरात्रियों के रहस्य और उनकी खासियत को जानना चाहते हैं ताकि वे अपनी आस्था को सही ढंग से प्रकट कर सकें। आपकी इसी संशय को दूर करने के लिए हम आपको इन तीनों शिवरात्रियों के बीच के अंतर के बारे में बताएंगे। हम आपको बताएंगे कि ये कब मनाई जाती हैं, इनका आध्यात्मिक महत्व क्या है और शिव भक्तों के लिए ये क्यों विशेष हैं। इन पर्वों की सही जानकारी आपको भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और अपनी आराधना को और भी सार्थक बनाने में सहायक हो सकती है। आइए, इन तीन महत्वपूर्ण शिवरात्रियों के रहस्यों के बारे में गहराई से जानते हैं।
सावन शिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या है अंतर?(What is Difference Between Sawan Shivratri Masik Shivratri and Mahashivratri)
भगवान शिव की आराधना हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और शिवरात्रि का पर्व महादेव को समर्पित सबसे पवित्र दिनों में से एक है। हालांकि, कैलेंडर पर नजर डालें तो शिवरात्रि नाम के कई अवसर दिखाई देते है। इनमें मासिक शिवरात्रि, सावन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के नाम शामिल हैं। दरअसल, ये सभी तिथियां भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन इनके महत्व, मनाने के तरीके और इनके पीछे की पौराणिक कथाओं में काफी अंतर है। इन तीनों शिवरात्रियों का अपना-अपना विशेष महत्व है और ये अलग-अलग आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती हैं।
मासिक शिवरात्रि किसे कहते हैं? (What is Masik Shivratri)
मासिक शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस प्रकार, साल में कुल 12 मासिक शिवरात्रि होती हैं। यह हर महीने भगवान शिव की पूजा और व्रत करने का एक अवसर है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सुख-शांति आती है।
यह महाशिवरात्रि जितनी वृहद और महत्वपूर्ण नहीं होती, लेकिन मासिक शिवरात्रि पर भी भगवान शिव के पूजन और व्रत का विधान है, जो भक्तों को आत्मिक शांति और मनोकामना पूर्ति में सहायक होता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, हर महीने इस तिथि को भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
सावन शिवरात्रि क्या है? (What is Sawan Shivratri)
कब मनाई जाती है? सावन शिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि का ही एक विशेष रूप है, जो सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है। चूंकि सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और यह उनका सबसे पवित्र माह माना जाता है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का महत्व अन्य मासिक शिवरात्रियों से कहीं अधिक होता है। सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन कांवड़ यात्रा करने वाले भक्त पवित्र नदियों का जल लेकर आते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, जिसे कांवड़ यात्रा का समापन भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था, जिससे सृष्टि का कल्याण हुआ। यह पर्व हमें शिव के त्याग और सृष्टि के प्रति उनके समर्पण का बोध कराता है। इस दिन शिव का अभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है, क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान शिव जी ने इसी माह में किया था और देवताओं ने उन्हें शीतलता प्रदान करने के लिए जल अर्पित किया था।
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महाशिवरात्रि क्या है? (What is Mahashivratri)
कब मनाई जाती है? महाशिवरात्रि साल में एक बार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह साल की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी शिवरात्रि होती है, जिसे 'शिव की महान रात' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी शुभ दिन भगवान शिव ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इस रात को भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और उनके भक्त उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है, और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस रात को जागरण कर शिव की आराधना करने का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, सबसे प्रचलित और मान्य कथा यही है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। कुछ कथाओं के अनुसार, इस रात शिव जी ने तांडव नृत्य किया था, जो सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। महाशिवरात्रि को लेकर यह भी माना जाता है कि इसी रात भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, और सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु ने उनकी पूजा की थी।
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