क्या आपने मुल्ला दो प्याज़ा के बारे में सुना है? गाहे-बगाहे इनके बारे में तो बात कर ही ली जाती है और कहावतों में भी इनका नाम सुनने में आ जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये हैं कौन? मुल्ला-दो-प्याज़ा का नाम क्यों ऐसे लिया जाता है और किस लिए ऐसी कहावत कही जाती है इसके बारे में आज हम आपको जानकारी देते हैं। सबसे पहले तो ये बता दें कि ये मुगल काल के व्यक्ति थे जिन्हें बीरबल का समकालीन कहा जाता है। वैसे कुछ इतिहासकार मानते हैं ये पूरी तरह से लोककथा का हिस्सा थे।
मुल्ला दो प्याज़ा के बारे में कुछ कहानियां भी फेमस हैं जिन्हें लेकर अधिकतर लोग मानते हैं कि वो सिर्फ फिक्शन का ही हिस्सा हैं।
कौन थे मुल्ला दो प्याज़ा?
मुल्ला-दो-प्याज़ा का काल 1527 से 1620 के बीच का माना जाता है और ये समझा जाता है कि वो मुगल बादशाह अकबर के वज़ीर हुआ करते थे। ऐसा माना जाता था कि मुल्ला को बीरबल से बहुत जलन होती थी क्योंकि वो भी बीरबल की तरह ही बुद्धिमान माने जाते थे। हालांकि, जो लोककथाएं हैं वो मुल्ला को अकबर के समकालीन ही बताती हैं, लेकिन इतिहास में उनका नाम बहुत बाद में आया और इसलिए ही उन्हें फिक्शनल कैरेक्टर माना जाता है।
कुछ इतिहासकारों के मुताबिक वो मुगल सेना का सेनाध्यक्ष बैरम खान के बेटे थे जिन्हें अदहम खान ने मौत के घाट उतार दिया था। बैरम खान के मरने के बाद मुल्ला को अकबर ने अपने दरबार में शामिल कर दिया था।
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क्या है मुल्ला दो प्याजा की कहानी?
माना जाता है कि मुल्ला दो प्याज़ा की मां के इंतकाल और पिता के दूसरी शादी करने के बाद वो हुमायूं के साथ ईरान से हिंदुस्तान पहुंचे थे। यहां लड़ाई में हिस्सा लेने के बाद हुमायूं ने उन्हें मौलाना बना दिया। उनका असली नाम अब्दुल हसन बताया जाता है और उनकी आवाज़ बहुत अच्छी होने के कारण दरबारियों से उनकी दोस्ती रहती थी।
उस वक्त दरबार के नवरत्नों में से एक फैज़ी से हसन की दोस्ती हो गई और उसके बाद एक दिन उन्हें फैजी ने घर पर दावत पर बुलाया। उस समय मुर्गे के गोश्त से एक पकवान बनाया जिसका नाम था मुर्ग दो प्याज़ा। ये पकवान हसन को इतना पसंद आया कि वो जहां भी जाते इस पकवान को जरूर बनवाते।
हसन किसी ना किसी तरह से अकबर के दरबार में शामिल होना चाहते थे और उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। किसी तरह उन्हें अकबर ने मुर्गीखाने की जिम्मेदारी दे दी। इसके बाद अकबर की रसोई में जो बचता उसे वो मुर्गियों को खिला देते और ऐसे में बहुत सारे पैसे बचाते।
इससे खुश होकर हसन को लाइब्रेरी सौंपी गई और वहां भी उन्होंने बहुत दिलचस्प काम करके दिखाया और दरबार में आने वाले कपड़ों को बचाकर उनसे किताबों के कवर बनाए। इसके बाद उन्हें अकबर के दरबार में जगह मिली। जब अकबर को उनके मुर्ग दो प्याज़ा के जायके के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे खाने की मांग रखी।
इस व्यंजन में प्याज़ को अलग ढंग से पकाया जाता था और जब अकबर ने इसका स्वाद चखा तो हसन को 'दो प्याज़ा' की उपाधि दे दी। वो खुद इमाम थे ही तो मुल्ला नाम उनके साथ जुड़ा हुआ था। इसके बाद उन्हें मुल्ला दो प्याज़ा कहा जाने लगा।
उन्हें बहुत शरारतें करते पकड़ा जाता था और तब से ही उनके नाम के चुटकुले प्रचलित होने लगे।
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क्या वाकई में असली थे मुल्ला दो प्याज़ा?
उनके बारे में किसी टेक्स्ट में कोई जानकारी नहीं है बल्कि उनके बारे में हमेशा ही लोककथाओं में जानकारी मिली है। कथाओं के मुताबिक वो कट्टर इस्लाम पंथी थे और वो अकबर और बीरबल दोनों के साथ ही काम करते थे। इसी के साथ, उन्हें कई बार विलेन के तौर पर दिखाया जाता है। किसी भी आधिकारिक रिकॉर्ड में उनका नाम ना होने के कारण ही उन्हें फिक्शन का हिस्सा माना जाता है। उन्हें लेकर अधिकतर जितने भी चुटकुले और कहानियां आई हैं वो 19वीं सदी की रही हैं।
किसी भी स्कॉलर ने मुल्ला दो प्याज़ा को अकबर का समकालीन होने का दावा नहीं किया है।
इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि वो सिर्फ कहानियों का हिस्सा थे या फिर उनका असली नाम वाकई अब्दुल हसन था या कुछ और था जिसके बाद उन्हें ऐसा कहा जाने लगा। आपका इसके बारे में क्या कहना है? हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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