
अंधेरे से डर लगाना सामान्य मानवीय स्वभाव समझा जाता है और जो कि काफी हद तक सही भी है। लेकिन जब यही डर मानसिक या शारीरिक की पीड़ा की वजह बन जाए तो इसे नजरअंदाज करना बिलकुल भी सही नहीं है। देखा जाए तो दूसरी मानसिक समस्याओं की तरह ही 'अंधेरे से डर' को भी हमारे यहां काफी नजरअंदाज किया जाता रहा है। यहां तक कि इसी डर का प्रयोग करके बच्चों को शांत तक कराया जाता है। ऐसे में अज्ञानता में बहुत सारे लोग अपने बच्चों में 'अंधेरे से डर' की इस मानसिक बीमारी को खुद ही बढ़ावा देते हैं, जो कि आगे चलकर घातक साबित होता है।
जी हां, आपको बता दें कि 'अंधेरे से डर' एक तरह की गंभीर मानसिक समस्या है, जिसे मनोविज्ञान की दुनिया में ‘निक्टोफोबिया’ के रूप में जाना जाता है। इस आर्टिकल में हम आपको इसी मानसिक समस्या के बारे में सही जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, हमने इस बारे आगरा के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. भूपेन्द्र सिंह से बातचीत की और उनसे मिली जानकारी यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
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डॉ. भूपेंद्र सिंह बताते हैं कि किसी भी चीज, जगह या स्थिति विशेष से उपजा डर जब मानसिक या शारीरिक परेशानी की वजह बन जाए तो वह फोबिया की स्थिति होती है। जैसे कि रात या अंधेरे से डरना निक्टोफोबिया कहलाता है। बात करें इसकी वजह की तो डॉ. भूपेंद्र सिंह के अनुसार इसकी मुख्य वजह वह मानसिक उलझन है, जो अंधेरे में देख न पाने की स्थिति में व्यक्ति महसूस करता है।

ऐसे में व्यक्ति अंधेरे में जाने से डरता है जो काफी हद तक आम मानवीय स्वभाव है। लेकिन वहीं जब इस डर के चलते व्यक्ति को नींद लेने में दिक्कत पेश आने लगे या फिर अंधेरा देखते ही उसकी घबराहट इतनी बढ़ जाए कि शारीरिक समस्याएं पेश आने लगे तो फिर यह निक्टोफोबिया का लक्षण हो सकता है। निक्टोफोबिया के चलते व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, अत्यधिक पसीना आना, हृदय गति का अचानक से बढ़ जाना और शरीर में कपकपी या चक्कर आ सकते हैं।
अगर किसी व्यक्ति को अंधेरे में इस तरह की समस्या पेश आती है तो उसे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। मनोचिकित्सक सबसे पहले इसकी असल वजह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर व्यक्ति के मन में अंधेरे को लेकर ऐसा डर क्यों समाया है।
अब बात करें कि आखिर अंधेरे से डर लोगों के मन में इतनी गहराई से क्यों समाया होता है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बचपन में बड़ों द्वारा बैठाया गया डर है। अधिकांश लोग अपने बच्चों को चुप या शांत कराने के लिए अंधेरे से डराते हैं। कई बार यही चेतावनी बच्चों के मन में अंदर तक डर बनकर समा जाती है और जब भी अंधेरा दिखता है, उन्हें डर सताने लगता है। वहीं कई बच्चे बड़े होने के बाद भी इस डर से बाहर नहीं निकल पाते हैं और आजीवन अंधेरे का डर उन्हें सताता रहता है।

इसके अलावा अंधेरे में घटित कोई दुर्घटना भी ‘निक्टोफोबिया’ की वजह बन सकती है। जैसे कि किसी व्यक्ति ने रात में कोई अनहोनी देखी या सुनी हो तो ऐसा संभव है कि रात होते ही या अंधेरा छाते ही उसे डर सताने लगे। वहीं रात के अंधेरे में डर एक अंजान खतरे का भी संकेत देता है, जिससे बहुत सारे लोगों को डर लग सकता है।
बात करें ‘निक्टोफोबिया’ से बचाव की तो मनोचिकित्सक इसके पीछे की असल वजह जानने के बाद उसके आधार पर उपचार के लिए मेडिटेशन या कुछ हीलिंग थेरेपी का सुझाव देते हैं। जैसे कि एक्सपोजर थेरेपी और कॉग्निटिव थेरेपी अंधेरे के डर का सामना करने और उससे बाहर निकलने के लिए मददगार मानी जाती है।
इसके अलावा आप ‘निक्टोफोबिया’ से बचाव के लिए आप खुद भी कुछ बातों को अमल में ला सकते हैं। इसके लिए अपने आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास करें। इसके अलावा अगर आपके जीवन में अंधेरे से जुड़ी कोई अप्रिय घटना घटित हुई है जो आपको डराती है तो सबसे पहले आप उस अतीत की यादों से निकलने का प्रयास करें। इसके लिए आप किसी दोस्त या किसी करीबी को अपनी इस समस्या के बारे में बता सकते हैं। वैसे सबसे उचित होगा कि ऐसी स्थिति में आप किसी पेशेवर मनोचिकित्सक की सलाह लें और उनके बताए अनुसार उपचार लें।
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