खाने-पीने की गलत आदतों, बिजी लाइफस्टाइल, प्रदूषण और संक्रमित पानी के कारण आजकल डिकनी में दर्द, स्टोन, इंफेक्शन बहुत लोगों को प्रभावित करता है। जी हां किडनी से संबंधित रोग, पूरे विश्व में स्वास्थ्य चिंता का विषय हैं, जिसका गंभीर परिणाम किडनी फेलियर और समयपूर्व मृत्यु के रूप में सामने आता है। वर्तमान में किडनी रोग महिलाओं में मृत्यु का आठवां सबसे प्रमुख कारण है। महिलाओं में क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) विकसित होने की आशंका पुरुषों से 5 फीसदी ज्यादा होती है।
गुरुग्राम स्थित नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के नेफ्रोजिस्ट डॉक्टर सुदीप सिंह सचदेव कहते हैं कि सीकेडी को इनफर्टिलिटी और नॉर्मल प्रेग्नेंसी व डिलीवरी के लिए भी रिस्क फैक्टर माना जाता है। इससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता कम होती है और मां व बच्चे दोनों के लिए खतरा बढ़ जाता है, जिन महिलाओं में सीकेडी एडवांस स्तर पर पहुंच जाता है, उनमें हाइपर टेंसिव डिसआर्डर्स और समयपूर्व प्रसव होने की आशंका काफी अधिक हो जाती है।
किडनी संबंधी गड़बड़ियों के कारण
किडनी रोग मुख्यत: डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और धमनियों के कड़े होने से हो जाते हैं। हालांकि, इन रोगों में से कई किडनियों के सूजन के कारण भी हो सकते हैं। इस स्थिति को नेफ्राइटिस कहते हैं। मेटाबॉलिक डिसआर्डर के अलावा कुछ एनाटॉमिक डिसआर्डर के कारण भी किडनी संबंधी बीमारियां हो जाती हैं। ये बीमारियां माता-पिता दोनों से बच्चों को विरासत में भी मिलती हैं।
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किडनी रोग के लक्षण
चूंकि किडनी रोगों के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, उसी प्रकार से विभिन्न रोगियों में इसके लक्षणों में भिन्नता पाई जा सकती है। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षणों में बहुत अधिक या बहुत कम यूरीन, यूरीन में ब्लड आना या केमिकल की मात्रा आसामान्य हो जाना सम्मिलित हैं।
डायग्नोसिस कैसे होता है?
वास्तविक समस्या तो इस रोग का डायग्नोसिस करने में है, क्योंकि जब तक किडनी में ट्यूमर या सूजन न हो, डॉक्टरों के लिए केवल किडनियों को छूकर चेक करना कठिन हो जाता है। वैसे कई टेस्ट हैं, जिनसे किडनी के टिश्युओं को चेक किया जा सकता है। यूरीन का सैंपल लेकर और इसमें प्रोटीन, शूगर, ब्लड और कीटोंस आदि चेक कराएं।
उपचार के विकल्प क्या हैं?
अगर इंफेक्शन बैक्टीरिया के कारण होता है तो इंफेक्शन को एंटी बायोटिक्स से भी ठीक किया जा सकता है। एक्यूट किडनी फेलियर के मामले में रोग के कारणों का पता लगाना सर्वश्रेष्ठ रहता है। इस प्रकार के मामलों में कारणों का उपचार करने से किडनी की सामान्य कार्यप्रणाली वापस प्राप्त करना संभव होता है, लेकिन किडनी फेलियर के अधिकतर मामलों में ब्लड प्रेशर को नॉर्मल लेवल पर लाया जाता है, ताकि रोग को और अधिक बढने से रोका जा सके।
जब किडनी फेलियर अंतिम चरण पर पहुंच जाता है, तब उसे केवल डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट द्वारा ही कंट्रोल किया जा सकता है। डायलिसिस सप्ताह में एक बार किया जा सकता है या इससे अधिक बार भी, यह स्थितियों पर निर्भर करता है। प्रत्यारोपण में बीमार किडनी को स्वस्थ्य किडनी से बदल दिया जाता है।
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किडनी डिजीज से बचाव
- रेगुलर एरोबिक एक्सरसाइज और डेली फिजीकल एक्टिविटी ब्लड प्रेशर नॉर्मल रखने में और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में हेल्प करती हैं।
- ताजे फल और सब्जियों युक्त आहार लें। आहार में परिष्कृत फूड, चीनी, फैट और मांस का सेवन घटाना चाहिए। वे लोग जिनकी उम्र 40 के ऊपर है, भोजन में कम नमक लें जिससे ब्लड प्रेशर और किडनी की पथरी के रोकथाम में मदद मिले।
- हेल्दी फूड और रेगुलर एक्सरसाइज से अपने वेट को कंट्रोल करें। यह डायबिटीज और किडनी रोगों से बचाव में हेल्प करता है।
- स्मोकिंग करने से एथीरोस्क्लेरोसिस होने की संभावना हो सकती है। यह किडनी में ब्लड सर्कुलेशन को कम कर देता है। जिससे किडनी की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
- लंबे समय तक पेनकिलर लेने से किडनी को नुकसान होने का डर रहता है। अपने पेन को कम करने करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लें और अपनी किडनी को किसी भी प्रकार से खतरे में न डालें।
- रोज 3 लीटर से अधिक (10-12 गिलास) पानी पीएं। पर्याप्त पानी पीने से, यूरीन पतला होता है एवं बॉडी से टॉक्सिन को निकलने और किडनी की पथरी को बनने से रोकने में हेल्प मिलती है।
किडनी की बीमारियाँ अक्सर छुपी हुई एवं गंभीर होती है। अंतिम चरण पहुंचने तक इनमें किसी भी प्रकार का लक्षण नहीं दिखता है। किडनी की बीमारियों को रोकथाम और शीघ्र निदान के लिए सबसे शक्तिशाली पर प्रभावी उपाय है नियमित रूप से किडनी का चेकअप कराना।
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