बच्चे खाने में बहुत नखरे करते हैं और कई बार तो ये टीनएज तक जारी रहता है। खाने में नखरे करना एक बात है, लेकिन अगर किसी बच्चे को ईटिंग डिसऑर्डर हो रहा है तो इसके बारे में जानकारी कैसे मिलेगी? बच्चों और टीनएजर्स के खाने-पीने की आदतों में कोई अहम बदलाव बहुत ज्यादा परेशानी वाली बात हो सकती है। एक बात ये जरूरी है कि हमें समय पर ऐसी समस्याओं के बारे में पता चल जाए।
इस समस्या के बारे में ठीक से जानने के लिए हमने कन्टिनुआ किड्स की डायरेक्टर, को-फाउंडर, डेवलपमेंटल और बिहेवियरल पीडियाट्रिशियन डॉक्टर हिमानी नरूला से बात की। हिमानी ने हमें बताया कि ये कई तरह से ट्रिगर हो सकता है और ये शरीर का डिसेटिस्फेक्शन दिखाता है।
इसके लिए बच्चों की साइकोलॉजी और वजन को कंट्रोल करने की इच्छा भी इसका कारण बन सकती है और बायोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल और सोशल समस्याएं भी हो सकती हैं।
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हिमानी के मुताबिक इसका सबसे अहम लक्षण ये है कि बच्चे अपने बॉडी साइज, शेप आदि को लेकर बहुत ज्यादा सोचने लगते हैं। वो हर वक्त अपने वजन को कंट्रोल करने के बारे में सोचते हैं और इसके चक्कर में खाने-पीने पर असर होता है। ऐसे डिसऑर्डर अक्सर टीनएज में होते हैं, लेकिन कई बच्चे शुरुआत में भी इससे परेशान रहते हैं।
कई बार ईटिंग डिसऑर्डर साइकेट्रिक समस्याओं से भी जुड़े होते हैं जहां एंग्जायटी, डिप्रेशन आदि के कारण होती हैं। ये बचपने से ही शुरू हो जाती हैं और ये समस्याएं आगे चलकर बच्चे के विकास पर भी असर करती हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि किसी एक बच्चे में एक से ज्यादा डिसऑर्डर हो। एनोरेक्सिया में बच्चा खाने से ही बना कर देता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे वो मोटा हो जाएगा। बुलिमिया में बच्चा जरूरत से ज्यादा खाता है और उसके बाद खाना या तो उल्टी करके निकलता है या फिर उसे कोई लैक्सेटिव दिए जाते हैं जिससे वजन न बढ़े। बिंज ईटिंग में बिना सोचे समझे बच्चा लगातार खाता ही जाता है।
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अगर ईटिंग डिसऑर्डर पर ध्यान न दिया जाए तो इनके कारण बहुत ज्यादा स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और ये शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को खराब कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर खाने-पीने का ठीक न होना हार्टबीट के लिए अच्छा नहीं है, ब्लड प्रेशर कम हो सकता, पल्स बढ़ सकती है, शरीर का तापमान घट या बढ़ सकता है। कई तरह की न्यूट्रिशनल कमियां हो सकती हैं। लड़कियों में ये मेंस्ट्रुएशन पर असर डाल सकता है।
ये कुपोषण का अहम कारण भी हो सकता है और कई गंभीर मामलों में तो अस्पताल जाने और ट्रीटमेंट करवाने की भी जरूरत पड़ जाती है। इसको लेकर कई मेडिकल और साइकियाट्रिक ट्रीटमेंट्स किए जाते हैं। बच्चे के ईटिंग डिसऑर्डर को ठीक करना बहुत जरूरी है और इसके लिए परिवार का सपोर्ट भी चाहिए होता है। कई बार डॉक्टर को ग्रुप थेरेपीज भी करवानी पड़ती हैं। बच्चे के BMI, खाने-पीने की आदतें और मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर डॉक्टर इसके लिए इलाज बता सकता है।
पर आपको ध्यान ये रखने की जरूरत है कि अगर बच्चे के साथ ऐसी कोई भी समस्या हो रही है तो उसे आप समझाएं और डॉक्टर से संपर्क जरूर करें। शुरुआती स्टेज में अगर इस समस्या को ठीक कर लिया जाए तो ये आगे आने वाले समय में बच्चे के लिए अच्छी हो सकती है।
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