पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, जिसे पीसीओएस या पीसीओडी के रूप में भी जाना जाता है, महिलाओं में एक तरह का हार्मोनल डिसऑर्डर है। यह डिसऑर्डर भारत में 15%से 20% महिलाओं की रिप्रोडक्टिव एज को प्रभावित करता है। यह सेहत से जुड़ी कई परेशानियों को जन्म देता है जैसे इर्रेगुलर पीरियड्स, कंसीव करने में कठिनाई, वजन बढ़ना, चेहरे और बॉडी में अतिरिक्त बालों का उगना, मुंहासे और पुरुषों के पैटर्न का गंजापन आदि कुछ परेशानियां इस डिसऑर्डर के कारण महिलाओं को हो जाती हैं। अगर इस डिसऑर्डर पर उचित ध्यान न दिया जाए तो उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण हार्ट डिजीज, हाई ब्लड शुगर के कारण डायबिटीज , बहुत ज्यादा वजन बढ़ना आदि सभी मेटाबॉलिक सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं और अगर इन्हें बिना ध्यान दिए ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो इससे बेहद कम उम्र में एंडोमेट्रियल कैंसर हो सकता है।
बॉडी मास इंडेक्स और इसके प्रबंधन की गणना भी पीसीओएस के प्रबंधन में मदद कर सकती है। बीएमआई की गणना व्यक्ति के वजन को किलोग्राम और उसकी हाइट के वर्ग को मीटर में विभाजित करके की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए अगर महिला का वजन 75 किलोग्राम है और उसकी हाइट 1.6 मीटर है तो बीएमआई 29.3 होगा। एशियाई आबादी के लिए 23 से अधिक बीएमआई को ओवरवेट और 25 से अधिक बीएमआई को मोटा माना जाता है।जानें PCOD के लक्षण, उपचार और प्रभाव
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इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि अगर परिवार का कोई एक सदस्य या करीबी रिश्तेदार भी डायबिटिक है तो पॉलीसिस्टिक ओवरीज होने की स्थिति में लड़की को हाई ब्लड शुगर होने की आशंका होती है और ऐसी 75% लड़कियां संभवत: इंसुलिन रेजिस्टेंट (इंसुलिन का प्रभाव ना होना) होती हैं।
हर किसी को पीसीओएस के लक्षणों के आधार पर, डॉक्टर इलाज और दवाओं का कोर्स बताता है। हालांकि, इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस समस्या से परेशान महिलाएं अन्य किसी मेडिकल ट्रीटमेंट की जगह स्वस्थ एवं संतुलित आहार और सकारात्मक सोच से इसके जोखिम को मैनेंज और कम करें।
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जिनी महिलाओं को पीसीओएस की समस्या होती है उन्हें लो कैलोरी डाइट के साथ थोड़े व्यायाम को अपनी जीवनशैली में शामिल करने की सलाह दी जाती है। इस स्थिति से जूझ रहीं अधिकांश महिलाएं संभवत: ओवरवेट और इंसुलिन रेजिस्टेंट होती हैं, इसलिए वजन में थोड़ी सी भी कमी सकारात्मक परिणाम दे सकती है।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पीसीओएस की परेशानी से जूझ रहीं 20% महिलाएं दुबली और कम वजन की होती है, लेकिन फिर भी वह फर्टिलिटी की चुनौतियों, बढ़े हुए एंड्रोजन के स्तर का सामना कर रही हैं।
एक संतुलित आहार में, लो फैट के लिए कार्बोहाइड्रेट का कम सेवन करना चाहिए, हाई कार्बोहाइड्रेट वाले आहार से शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है। इसलिए कार्बोहाइड्रेट , जो कि ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ता है उसकी जगह आहार में इन फूड आइटम्स को शामिल करना चाहिए।
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इंफ्लामेशन और इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ाने वाले फूड आइटम्स को न खाएं या फिर कम खाएं, जैसे:
पीसीओएस की पेरशानी से जूझ रही शाकाहारी महिलाओं को प्लांट बेस्ड सब्जियों को डाइट में शामिल करने की सलाह दी जाती है, लेकिन जो महिलाएं मांसाहारी हैं उन्हें मीट का कम सेवन करने की सलाह दी जाती है। हफ्ते में एक या दो बार ही ऐसी महिलाओं को मीट का सेवन करना चाहिए। मीट को बहुत कम तेल में कुक करना चाहिए। बेहतर है कि इसे स्टीम में पका कर खाएं।
संतुलित आहार के अलावा पीसीओएस की समस्या में और डिसऑर्डर्स की तरह सकारात्मक जीवनशैली और विकल्पों को अपनाना बहुत जरूरी है।
पीसीओएस की समस्या के बाद भी महिला दुबली है तो, अपनी स्थिति को उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि ऐसी महिलाओं में हइपरग्लाइसीमिया की जांच करना महत्वपूर्ण होता है। साथ ही ऐसी महिलाओं में संभवत: अन्य बीमारियां के होने का दर भी अधिक होता है। ऐसी महिलाओं को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
पीसीओएस और पीसीओडी से जूझ रही महिलाओं को कभी-कभी फस्ट्रेशन हो सकता है। मगर, बेहतर स्वास्थ्य और सकारात्मक सोच के लिए सक्रिय कदम उठाने से लक्षणों को कम करने और मैनेज करने में मदद मिल सकती है।
एक्सपर्ट सलाह के लिए डॉ. सतीश एन. टिबरेवाला (M.D, OBGyn) का विशेष धन्यवाद।
संदर्भ:
1.https://youngwomenshealth.org/2013/12/12/pcos-nutrition/
2.https://www.healthline.com/health/pcos-diet#takeaway
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