
हिंदू धर्म से लेकर अन्य धर्मों में विवाह को लेकर कई रीति-रिवाज बनाए गए है। इसके परम्पराओं के अंतर्गत युवक और युवती का विवाह संपन्न होता है। हिंदू धर्म में सात फेरे और मुस्लिम संप्रदाय में निकाह पढ़ा जाता है। इसी प्रकार बाकी रिलीजियस में भी विवाह को लेकर नियम बने हुए है। धर्म के साथ-साथ संविधान में इसको लेकर कई नियम कानून बनाए गए है जिसके तहत शादी शुदा लोगों के बीच की समस्याएं सुनी जाती है।
भारत में एक दूसरे से शादी करने को लेकर भी कई कानून बनाए गए है जैसे कोर्ट मैरिज और सिविल मैरिज। बहुत से लोगों को ये दोनों नियम एक ही लगते हैं। लेकिन आपको बता दें कि यह दोनों अलग कानून है। इस विषय को लेकर मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता नीतेश पटेल से बात की।

कोर्ट मैरिज और सिविल मैरिज को लेकर अधिवक्ता नीतेश पटेल ने बताया कि मैरिज एक्ट 1954 के अनुसार कोर्ट मैरिज एक या अन्य जाति, धर्म के युवक-युवती के बीच अदालत में होता है। वहीं सिविल मैरिज दो लोगों की आपसी सहमति से बिना कोर्ट की मदद से होती है। इसमें कपल किसी भी सरकारी ऑफिस में जाकर सिविल मैरिज कर शादी को रजिस्टर कर सकता है।
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कोर्ट मैरिज बिना किसी परंपरागत समारोह व रीति-रिवाज के अदालत में मैरिज ऑफिसर के सामने कराई जाती है। बता दें कि यह विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तह संपन्न कराई जाती है। कोर्ट मैरिज किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के बीच के युवक-युवती के बीच हो सकती है। इसमें एक फॉरेन पर्सन और दूसरा इंडियन भी हो सकता है। इस मैरिज में किसी भी प्रकार की धार्मिक पद्धति नहीं अपनाई जाती है। कोर्ट मैरिज में रजिस्ट्रार के सामने तीन गवाहों की मौजूदगी जरूरी होती है। इस शादी के लिए आवेदन करने वाले कपल की पहले से शादी नहीं होनी चाहिए। इसके साथ दूल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए।

सिविल मैरिज के अंतर्गत कपल्स बिना किसी अदालत के शादी कर सकते हैं। इस विवाह के दौरान दो लोगों की सहमति सबसे ज्यादा महत्व रखती है। इसके अंतर्गत आप किसी भी सरकारी कार्यालय में जाकर विवाह कर सकती हैं। इस विवाह में सर्टिफिकेट आवश्यक होता है। सिविल विवाह को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह कपल्स को कानूनी सुरक्षा और लाभ प्रदान करता है। इसमें संपत्ति के अधिकार, विरासत, कर लाभ, और स्वास्थ्य सेवा और अन्य लाभों आदि शामिल है।
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