शाख पूर्णिमा का यह पावन तिथि हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस व्रत को धन और संतान दायक माना गया है। जो भी श्रद्धालु पूरे विधि विधान के साथ वैशाख पूर्णिमा की व्रत रखता है उसके सभी कामनाएं भगवान विष्णु पूरा करते हैं। कहा जाता है कि जो कोई भी वैशाख पूर्णिमा की व्रत को कथा के साथ पूरे नियम के साथ पूरा करता है उसके ऊपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। आज के इस लेख में हम आपको वैशाख पूर्णिमा के कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।
वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा (Vaishakh Purnima 2023 Vrat Katha)
एक बार द्वापर युग के समय माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण से पूछती हैं कि आप संसार के पालनकर्ता हो मुझे ऐसा कोई उपाय बताओ जिससे मृत्यु लोक में किसी भी स्त्री को विधवा होने का भय न हो और न ही उसे निसंतान होने का दुख रहे। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मां से कहा कि मैं आपको एक ऐसे ही व्रत के बारे में विस्तार से बताता हूं। सौभाग्य प्राप्ति के लिए हर महिला को 32 पूर्णमासी तक इस पावन व्रत को करना चाहिए, इससे संतान और सौभाग्य की रक्षा होती है।
कांतिका नामक नगर में राजा चंद्रहास्य राज करता था। उसके नगर में एक धनेश्वर नामक का ब्राह्मण भी अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहता था। इनके घर में किसी प्रकार के धन संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। लेकिन, ब्राह्मण का कोई संतान न था, जिसके कारण दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी रहते थे। एक बार उस नगर में एक साधु आता है, जो सभी घरों से भिक्षा मांग कर गंगा नदी के किनारे भोजन कर जीवन यापन करता था। लेकिन वह साधु धनेश्वर के घर भिक्षा मांगने नहीं जाता था। (साल 2023 का पहला चंद्र ग्रहण)
यह देखकर सुशीला और धनेश्वर बहुत दुखी हुए और जाकर उस साधु से पूछे की आप सभी घरों से भिक्षा लेते हो लेकिन हमारे घर नहीं, ऐसा क्यों साधु महाराज? तब साधु ने कहा कि तुम निःसंतान हो और ऐसे घर से भिक्षा लेना पतितो के अन्न के समान होता है। मैं पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता इसलिए तुम्हारे घर से भिक्षा नहीं लेता हूं। यह सुन धनेश्वर बहुत दुखी हो जाता है और साधु से पूछता है कि ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे मुझे भी संतान सुख की प्राप्ति हो। तब साधु ने उस दंपत्ति को सोलह दिन तक मां चंडी के पूजन का सलाह दिया। जिसके बाद धनेश्वर और उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया। (बुद्ध पूर्णिमा)
दंपत्ति के आराधना से प्रसन्न होकर मां काली प्रकट हुई और सुशीला को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा कि प्रत्येक पूर्णिमा को दीपक जलाएं, ऐसे ही सभी पूर्णिमा को दीपक की संख्या बढ़ाती जाना, जब तक 32 दीपक न हो जाएं। माता के आशीर्वाद के फल स्वरूप सुशीला गर्भवती हुई। काली माता के कहे अनुसार वह दीपक जलाती रही। मां काली के कृपा और आशीर्वाद से दंपति के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। जिसका नाम धनेश्वर और सुशीला ने देवदास रखा।
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देवदास जब बड़ा हुआ, तो धनेश्वर ने उसे विद्या ग्रहण करने के लिए काशी भेजा। काशी में देवदास के साथ एक अजीब दुर्घटना घटी, जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। जब देवदास ने बताया कि वह अल्पायु में है, फिर भी उसका विवाह जबरदस्ती करवा दिया गया। कुछ समय बाद जब काल देवदास के प्राण लेने आया, तो काल देवदास का प्राण नहीं ले पाया। तब काल ने यमराज से कहा कि वह देवदास के प्राण लेने में असमर्थ है। जिसके पश्चात यमराज ने इसके पीछे का कारण जानने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती के पास गया। तब मां पार्वती ने माता काली (कालरात्री पूजन विधि) के वरदान के वृतांत को सुनाया और कहा कि ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल देवदास का कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से काल से मुक्ति मिलती है और भगवान सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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