
विवाह पंचमी हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व है जो भगवान श्री राम और माता सीता के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। इसका बहुत महत्व है क्योंकि इस दिन श्री राम और सीता माता की पूजा-अर्चना करने से सुखी वैवाहिक जीवन और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही विवाह में आ रही बाधाएं भी दूर होती हैं। इस साल विवाह पंचमी 25 नवंबर, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी क्योंकि यह पर्व मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि विवाह पंचमी के दिन इस पर्व से जुड़ी व्रत कथा पड़ने से माता सीता और श्री राम का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन हमेशा खुशहाल बना रहता है। साथ ही, विवाह में अगर देरी हो रही है तो वह भी दूर हो जाती है। चलिए जानते हैं विवाह पंचमी की कथा के बारे में विस्तार से।
विवाह पंचमी की कथा भगवान श्री राम और माता सीता के शुभ विवाह से जुड़ी हुई है। यह कथा बताती है कि कैसे एक कठिन शर्त को पूरा करके भगवान राम ने सीता माता को अपनी पत्नी के रूप में प्राप्त किया। कथा के अनुसार, देवी सीता का जन्म धरती से हुआ था। मिथिला के राजा जनक हल चला रहे थे तभी उन्हें खेत में एक कन्या मिली। उन्होंने उस कन्या को अपनी पुत्री मानकर उसका नाम सीता रखा इसलिए उन्हें जनकनंदिनी भी कहा जाता है।

सीता जब बड़ी हुईं, तो एक बार उन्होंने खेल-खेल में भगवान शिव के उस अत्यंत भारी धनुष को उठा लिया था, जिसे बड़े-बड़े योद्धा भी हिला नहीं पाते थे। यह देखकर राजा जनक बहुत आश्चर्यचकित हुए। तभी उन्होंने यह प्रतिज्ञा ली कि वे अपनी पुत्री का विवाह उसी वीर पुरुष से करेंगे जो भगवान शिव के इस विशाल और शक्तिशाली धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे तोड़ देगा।
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जब सीता विवाह योग्य हुईं तो राजा जनक ने एक स्वयंवर का आयोजन किया। उस स्वयंवर में दूर-दूर से ताकतवर राजा और राजकुमार आए जिनमें लंका के राजा रावण भी शामिल थे। सभी ने उस धनुष को उठाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसे उठाना तो दूर हिला भी नहीं सका। सभी राजा निराश होकर बैठ गए। राजा जनक भी बहुत हताश हो गए कि क्या मेरी पुत्री के योग्य कोई वीर धरती पर नहीं है?

तब महर्षि वशिष्ठ ने अपने शिष्य भगवान राम को धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी। गुरु की आज्ञा पाकर, शांत स्वभाव के भगवान राम ने शिव धनुष के पास जाकर उसे प्रणाम किया। उन्होंने सहजता से उस धनुष को उठाया और जैसे ही उस पर प्रत्यंचा (डोरी) चढ़ाने के लिए खींचा, वह धनुष बीच से दो टुकड़ों में टूट गया। धनुष टूटने की ज़ोरदार आवाज से पूरा ब्रह्मांड गूंज उठा।
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धनुष टूटने की शर्त पूरी होने पर सभी देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। नगर में खुशी की लहर दौड़ गई। इसके बाद, माता सीता ने आगे बढ़कर भगवान श्री राम के गले में जयमाला पहनाई। इस प्रकार, राम और सीता का विवाह बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ संपन्न हुआ। इसी शुभ दिन की याद में हर साल मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
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