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Margashirsha Purnima Vrat Katha 225: साल की आखिरी मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर जरूर पढ़ें ये कथा, जीवन की सभी परेशानियों का मिलेगा हल

Margashirsha Purnima Vrat Katha 2025: साल की आखिरी मार्गशीर्ष पूर्णिमा इस बार 4 दिसंबर को पड़ रही है। ऐसे में अगर आप भी इस पूर्णिमा में व्रत रखने के बारे में सोच रही हैं, तो पूजा करते हुए कथा पढ़ना न भूलें। इस कथा को पढ़ने से आपके जीवन की परेशानियां कम हो सकती हैं।
Editorial
Updated:- 2025-12-04, 05:03 IST

हिंदू पंचांग के अनुसार हर एक तिथि का अलग महत्व होता है। ऐसे में हर भगवान की पूजा का महत्व भी अलग होता है। पूर्णिमा तिथि सबसे शुभ मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बाद साल की आखिरी मार्गशीर्ष पूर्णिमा 4 दिसंबर को पढ़ रही है। ऐसे में कई सारी महिलाएं व्रत रखेंगी। वहीं कुछ महिलाएं अगर इसका व्रत पहली बार रख रही हैं, तो पूजा करते समय व्रत कथा करना न भूले। कथा को करने से आपके जीवन की सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं। आइए आर्टिकल में आपको कथा के बारे में विस्तार से बताते हैं।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा की व्रत कथा (Margashirsha Purnima Vrat Katha 2025)

एक नगर में सुशील नामक एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण रहता था। सुशील धार्मिक विचारों वाला था और भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन गरीबी के कारण उसका जीवन बड़ी कठिनाई से कटता था। उसकी पत्नी भी बहुत धार्मिक थी और हमेशा धन-धान्य की कमी से दुखी रहती थी।

एक दिन सुशील की पत्नी ने उससे कहा, "स्वामी! हम भगवान की इतनी भक्ति करते हैं, फिर भी हमारा जीवन गरीबी में कट रहा है। आप किसी ज्ञानी महात्मा से अपनी दरिद्रता दूर करने का उपाय क्यों नहीं पूछते?

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पत्नी की बात मानकर, सुशील एक महान तपस्वी ऋषि के पास गया। सुशील की समस्या सुनकर ऋषि ने ध्यान लगाया और कहा, "हे ब्राह्मण! मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाला है। इस दिन व्रत करने से माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।"

ऋषि ने सुशील को व्रत की विधि बताते हुए कहा,  मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल पवित्र नदी में स्नान करना, शुद्ध (पीले या सफेद) वस्त्र धारण करना और अपनी सामर्थ्य अनुसार गरीबों को दान देना अत्यंत शुभ है। इस दिन पूरे मन से माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूजन करें और उन्हें सात्विक भोग अर्पित करें।"

ब्राह्मण सुशील ने वापस आकर अपनी पत्नी को यह कथा सुनाई। दोनों पति-पत्नी ने ऋषि द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत करने का संकल्प लिया। उन्होंने पवित्र स्नान किया, घर को शुद्ध किया और लक्ष्मी-नारायण की विधि-विधान से पूजा की। उन्होंने किसी भी प्रकार के लोभ से बचते हुए अन्न और वस्त्र का दान किया।

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सुशील और उसकी पत्नी ने पूरी श्रद्धा, निष्ठा और पवित्रता के साथ वर्ष भर यह व्रत किया। उनकी अटूट भक्ति और त्याग को देखकर मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं। उन्होंने सुशील के घर में स्थायी रूप से वास करने का आशीर्वाद दिया। देखते ही देखते, सुशील की दरिद्रता दूर हो गई। उनका घर धन-धान्य, अन्न और सुख-समृद्धि से भर गया। उनके जीवन की सभी बाधाएं दूर हो गईं और वे शेष जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करने लगे।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा की कथा सुनने का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि जो भी मनुष्य मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर, जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त करता है। उसे कभी भी अन्न और धन की कमी नहीं होती।

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