बचपन से लेकर बड़े होने तक हम सभी ने कई बार ट्रेन में सफ़र किया होगा। एक शहर से दूसरे शहर में जाने के लिए आपको कई माध्यम मिल जाएंगे, लेकिन ट्रेन में सफ़र करने का अपना एक अलग ही मज़ा होता है। ट्रेन से सिर्फ सफ़र करना ही आसान नहीं होता बल्कि, एक राज्य से दूसरे राज्य में हम और आप बहुत कम पैसे में ही पहुंच जाते हैं। लेकिन, जब बात टॉय ट्रेन की होती है, तो काफी लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं कि ये भारत में कब आई, कब पहली बार टॉय ट्रेन चली और किस जगह से किस जगह तक चली।
आज के मसय में नेचुरल ब्यूटी को एक्सप्लोर करने के लिए टॉय ट्रेन को सैलानी बेहद ही पसंद करते हैं। टॉय ट्रेन एक ही समय में एक शांत और रोमांचक अनुभव से परिचय कराती है। ऐसे में अगर आपको भारतीय टॉय ट्रेन के इतिहास के बारे में जानना है, तो आपको इस लेख को ज़रूर पढ़ना चाहिए क्योंकि, इस आर्टिकल में हम आपको भारतीय टॉय ट्रेन से जुड़े कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं।
देश की सबसे पहली टॉय ट्रेन
भारत में सबसे पहले साल 1881 में टॉय ट्रेन की घोषणा की गई थी, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्य में चली थी। उस समय ये ट्रेन 2 फुट चौड़े नैरो गेज ट्रेक पर चलती थी और आज के मुकाबले ट्रेन की स्पीड बहुत ही कम होती थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच ये टॉय ट्रेन चली थी। आपकी जानकारी के लिए ये भी बता दें कि वहीं इस ट्रेन को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट का भी दर्जा हासिल है।
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कालका-शिमला टॉय ट्रेन
देश में अगर सबसे प्रसिद्ध टॉय ट्रेन का नाम लिया जाता है तो उसमें कालका-शिमला ट्रेन ज़रूर शामिल रहती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 9 नवंबर, 1903 को कालका-शिमला ट्रेन की शुरुआत हुई थी, जो हर्बर्ट सेप्टिमस हैरिंगटन के निर्देशन में किया गया था। कालका से शिमला तक के ज्यादातर ट्रेन पहाड़ी मार्ग से होकर गुजरती है, जो एक नहीं बल्कि कई अद्भुत नज़ारा के लिए जानी जाती है।
आपको बता दें कि पिछले साल ही कालका-शिमला टॉय ट्रेन लगभग 118 साल की हो गई है। लगभग 96 किमी लंबे रेलमार्ग पर कई स्टेशन्स हैं। आपको बता दें कि कालका-शिमला रेल मार्ग को केएसआर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस मार्ग से यात्रा की थी। वहीं कालका-शिमला रेल लाइन पर लगभग 103 सुरंगें हैं जो सफर को और भी रोमांचक बनाती हैं। जुलाई 2008 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया था।
नीलगिरी टॉय ट्रेन
दक्षिण-भारत के तमिलनाडु राज्य में मौजूद टॉय ट्रेन की शुरुआत ब्रिटिश काल के दौरान हुई थी। नीलगिरि माउंटेन रेलवे 1908 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित एक 1000 मिमी लंबी मीटर-गेज रेलवे लाइन है जो तमिलनाडु के ऊटी स्टेशन से गुजरती है। उस समय इस ट्रेन को मद्रास रेलवे द्वारा संचालित किया गया था। आपको बता दें कि जुलाई 2005 में, यूनेस्को ने नीलगिरि माउंटेन रेलवे को दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के वर्ल्ड हेरिटेज साइट के विस्तार के रूप में जोड़ा और आज नीलगिरी टॉय ट्रेन विश्व प्रसिद्ध रेलवे ट्रैक है।
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टॉय ट्रेन बॉलीवुड फिल्मों के लिए रही है आकर्षण का केंद्र
टॉय ट्रेन में सबसे अधिक कालका-शिमला ट्रेन बॉलीवुड के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। लगभग 1974 में सुपरहिट फिल्म दोस्त का गाना 'गाड़ी बुला रही' इसी मार्ग पर फिल्माया गया था। बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्म 'आराधना' के मशहूर गाने 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी....' की शूटिंग सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग टॉय ट्रेन में हुई थी। इसके अलावा शम्मी कपूर की फिल्म 'ब्वाय फ्रेंड' का गाना 'मुझको अपना बना लो', कालका-शिमला रेलमार्ग पर शूट हुआ था। इसके अलावा जब वी मेट, सनम रे और रमैया वस्तावैया जैसी फिल्मों की शूटिंग टॉय ट्रेन में ही हुई थी।
भारत के प्रमुख टॉय ट्रेन रूट
इस लेख में हम आपको भारत के कुछ प्रमुख ट्रेन रूट के बारे में भी बताते चलते हैं। सबसे प्रमुख रूट कालका–शिमला हेरिटेज ट्रैक, दार्जिलिंग-हिमालयन रेलवे, नरेल– माथेरान टॉय ट्रेन, नीलगिरी माउंटेन रेलवे, कांगड़ा वैली हिमाचल टॉय ट्रेन फेमस है। कांगड़ा वैली रेलवे भारत की एक हेरिटेज टॉय ट्रेन भी है। आप जब भी इन शहरों में घूमने के लिए पहुंचे तो इन टॉय ट्रेन पर सफ़र ज़रूर करें।
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