प्रेग्नेंसी का समय बेहद नाज़ुक होता है। इस दौरान प्रेग्नेंट महिला को थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि मां और शिशु दोनों को खतरा हो सकता है। इस दौरान कुछ महिलाएं उल्टी, मतली, सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, पेट, कमर में दर्द आदि समस्याओं से परेशान रहती हैं। लेकिन, कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने लगती है।
क्या आप प्रेग्नेंट हैं और आपको प्रेग्नेंसी के दौरान हल्की ब्लीडिंग हो रही है? इस समस्या से जुड़े आपके सभी सवालों के जवाब देने के लिए हमने ओल्ड महाबलीपुरम रोड, चेन्नई के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, ऑब्स्टट्रिशन एंड गयनेकोलॉजिस्ट, सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रिजाफिन आर से बात की है।
किसी भी प्रेग्नेंसी को तीन ट्राइमेस्टर में बांटा जाता है और हर ट्राइमेस्टर में समस्याओं के कारण और उपचार अलग होते हैं। प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीनों या 12 हफ्ते में ब्लीडिंग की संभावना 15% से 20% के बीच होती है। इसका मतलब है कि 10 में से दो प्रेग्नेंट महिलाओं को फर्स्ट ट्राइमेस्टर में ब्लीडिंग का अनुभव हो सकता है। ऐसे में मिसकैरेज की संभावना 10% से 15% होती है।
अगर ब्लीडिंग पहले 14 दिनों में होती है, तो मिसकैरेज रेट 45% से 55% के बीच रहती है। हैवी ब्लीडिंग के साथ पेट में ऐंठन होने पर शुरुआत में मिसकैरेज हो सकता है।
सेकंड और थर्ड ट्राइमेस्टरमें महिला सर्वाइकल में समस्याओं के कारण ब्लीडिंग का अनुभव कर सकती है। ऐसे में पानी की थैली फट जाती है और इसके बाद ब्लड आता है।
वासा प्रीविया एक ऐसी खतरनाक कंडीशन है, जिसमें ब्लड वेसल्स बर्थ कैनाल की ओपनिंग को पार करती हैं। यह बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
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यह एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें प्लेसेंटा यूट्रस के निचले हिस्से में आ जाता है। यह आंशिक या पूरी तरह से बर्थ कैनाल को कवर करता है। ऐसे मामलों में, प्रेग्नेंट महिला को बिना किसी दर्द के ब्लीडिंग हो सकती है। इसके लिए आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
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लगभग 1% प्रेग्नेंसी में लेबर पेन शुरू होने से पहले ही प्लेसेंटा अलग हो जाता है। इसके कारण हैवी ब्लीडिंग हो सकती है, जो मां और शिशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है।
प्रेग्नेंसी के अंत में ब्लीडिंग लेबर का संकेत हो सकती है। यह इस बात का संकेत है कि आपका शिशु इस दुनिया में आने के लिए तैयार है।
हालांकि, मोलर प्रेग्नेंसी बहुत कम होती है। लेकिन, यह तब होती है, जब यूट्रस के अंदर बच्चे के बजाय टिश्यू विकसित हो जाता है। ऐसे मामलों में, महिला प्रेग्नेंसी के लक्षणों जैसा अनुभव करती है, जिसमें उल्टी, गंभीर मतली और यूट्रस का तेजी से बढ़ना शामिल है। ऐसे मामलों में टिश्यू को निकालना होता है।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी तब होती है, जब फीटस यूट्रस (ज्यादातर फैलोपियन ट्यूब में) के बाहर विकसित होने लगता है। इसकी संभावना लगभग 2% है। ऐसे मामलों में, महिला को हल्का सिरदर्द, सिंकोपल अटैक और पेट में गंभीर ऐंठन का अनुभव हो सकता है।
कभी-कभी, इंप्लांटेशन के दौरान महिला ब्लीडिंग का अनुभव कर सकती है। यह लगभग 10-14 दिनों तक चल सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग के अन्य कारणों में सर्विक्स में पॉलीप्स, सर्विक्स या वेजाइनल इंफेक्शन, कैंसर, पॉलीप्स और गेस्टेशन पीरियड के दौरान सर्वाइकल में बदलाव शामिल हैं।
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ब्लीडिंग के कुछ कारण हानिरहित होते हैं, जबकि अन्य मामले खतरनाक हो सकते हैं। किसी भी मामले में, प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। किसी भी समस्या को दूर करने और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाना सबसे अच्छा होता है।
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