मसालों का डाइट में एक अलग ही रोल होता है। यह ना केवल खाने में स्वाद को कई गुना बढ़ाते हैं, बल्कि इन मसालों का भी सेहत पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए लोग तरह-तरह के मसालों को अपनी डाइट का हिस्सा बनाते हैं। लेकिन जब बात बेबी की हो तो मसालों को लेकर भी अधिक सजगता बरतना आवश्यक होता है। दरअसल, छोटे बच्चों का डाइजेस्टिव सिस्टम कम उम्र में बेहद सेंसेटिव होता है और ऐसे में अगर वह तेज मसालों का या अधिक मसालों का सेवन करते हैं, तो इससे उन्हें समस्या हो सकती है।
यह देखने में आता है कि जब बच्चा सॉलिड फूड लेना शुरू कर देता है, तब पैरेंट्स उसके फूड में तरह-तरह के मसालों को एड करते हैं ताकि उसका टेस्ट डेवलप हो सके। लेकिन वास्तव में आपको बच्चे को मसाले देने का सही तरीका पता होना चाहिए, ताकि टेस्ट डेवलप करते हुए आप उसकी सेहत को नुकसान ना पहुंचा दें। तो चलिए आज इस लेख में सेंट्रल गवर्नमेंट हॉस्पिटल के ईएसआईसी अस्पताल की डायटीशियन रितु पुरी आपको बता रही हैं कि बेबी की डाइट में मसाले एड करते समय आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
यह सबसे जरूरी टिप है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भले ही बच्चे ने सॉलिड फूड खाना शुरू कर दिया है, लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप उसकी डाइट में मसाले शामिल करना शुरू कर दें। आपको इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आप एक साल से कम उम्र के बच्चे की डाइट में किसी भी तरह के मसालों को शामिल ना करें। फिर भले ही बात नमक की क्यों ना हो। आप छह महीने के बाद धीरे-धीरे बच्चे को सॉलिड फूड देना शुरू कर सकते हैं, लेकिन एक साल तक मसालों से परहेज ही करें। हालांकि, आठ महीने के बाद आप बच्चे की डाइट में एक चुटकी हल्दी शामिल कर सकती हैं। लेकिन इसके अलावा अन्य मसालों से दूरी बनाएं।
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जब बात मसालों की हो तो आप एक साल के बाद बच्चे को नमक व चीनी देना शुरू कर सकते हैं। हालांकि, चीनी को अवॉयड भी किया जा सकता है। वहीं, जब आप उसे नमक दे रही हैं तो पूरे दिन के मील में से केवल एक ही मील में नमक एड करें। कभी भी एकदम से तीनों मील में नमक को शामिल ना करें। साथ ही नमक की मात्रा भी बेहद कम ही रखें।
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अगर बात मेथीदाना या अन्य मसालों की हो तो उसे बच्चे की डाइट में 15 महीने के बाद शामिल किया जा सकता है। हालांकि, इस दौरान भी उसकी मात्रा का विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।
गरम मसाला व लाल मिर्च दो ऐसे मसाले हैं, जिसे लंबे वक्त तक बच्चे की डाइट से दूर रखना ही अच्छा माना जाता है। विशेष रूप से, लाल मिर्च तो जब तक संभव हो, बच्चे की डाइट से बाहर ही रखें। आप बच्चे को लाल मिर्च की जगह हरी मिर्च (परेशानियों दूर करे हरी मिर्च के टोटके) दे सकते हैं, लेकिन वह भी दो या तीन साल से पहले शुरू ना करें। इसके अलावा, आप बेहद ही कम मात्रा में उसे मिर्च दें।
दालचीनी या तेजपत्ता भी बच्चे को 2 साल बाद दिया जा सकता है। लेकिन इसे केवल एक ही मील में शामिल करें और हर दिन इन हर्ब्स को देने से बचें। दरअसल, इन हर्ब्स से बॉडी में हीट पैदा होती है और बच्चे के आर्गन डेवलपिंग स्टेज में होते हैं। ऐसे में शरीर में पैदा होने वाली गर्मी बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है।
लहसुन और अदरक बच्चे को 15 महीने के बाद दिया जा सकता है। लेकिन यहां आपको यह ध्यान रखना है कि आप अदरक बच्चे को सर्दियों के मौसम में ही दें, गर्मियों में इसे बच्चे की डाइट में शामिल ना करें। इसके अलावा, जब आप बच्चे को अदरक दे रही हैं तो शुरुआत में केवल एक बूंद अदरक का रस ही उसी डाइट में एड करें।
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अब जब भी आपके बच्चे की उम्र सॉलिड फूड खाने की हो जाए, तो आप इन टिप्स को फॉलो करते हुए ही उसकी डाइट में मसालों को शामिल करें। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकीअपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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