महिलाओं से जुड़ी प्रॉब्लम्स पर अगर सोचा जाए तो पीरियड्स, प्रेगनेंसी, ब्रेस्ट कैंसर, मीनोपॉज जैसे इशुज सबसे पहले जेहन में आते हैं, बीपी को कोई अमूमन ही इसमें गिनता है, लेकिन अब समस्या पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। इसके बारे में आम धारणा यह है कि यह समस्या सिर्फ पुरुषों में होती है, इसे हाइपरटेंशन भी कहते हैं। यह गलतफहमी पालना जोखिम भरा है। वास्तविकता यह है हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित वयस्कों में महिलाएं शुमार हैं। और अब 65 साल की उम्र में महिलाओं में यह बीमारी पुरुषों से भी ज्यादा हो रही है।
पिछले साल हुई एक स्टडी में पाया गया कि हाई बीपी वाले पुरुष और महिलाओं दोनों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। ऐसी स्थितियों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी सतर्क हो जाने की जरूरत है। अगर आप पहले सामान्य स्थिति में रही हैं तो भी आपको नियमित रूप से चेकअप कराते रहना चाहिए। इस बीमारी को 'साइलेंट किलर' का नाम दिया जाता है और इसके आमतौर पर इस समस्या के कोई भी लक्षण नहीं होते, जिससे आप इसकी पहचान कर सकें।
हाई बीपी की तरह दिल की बीमारियों को लेकर भी यही सोचा जाता है कि ये महिलाओं में नहीं होतीं। जबकि सच ये है कि महिलाओं में भी दिल की बीमारी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में चार महिलाओं में से एक की मौत की वजह हार्ट डिजीज है। महिलाओं में दिल की बीमारी ब्रेस्ट कैंसर और दूसरे सभी कैंसरों से ज्यादा ज्यादा घातक है। फैमिली हिस्ट्री, मोटापा, स्मोकिंग, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल के साथ हार्ट डिजीज होने की एक अहम वजह हाई बीपी भी है।
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फैमिली हिस्ट्री, मोटापा, एक्सरसाइज नहीं करने, उम्रदराज होने और हाई सोडियम डाइट होने से हाई बीपी की समस्या होती है। कुछ और महिलाओं में पाई जाने वाली कॉम्प्लीकेशन जैसे कि हार्मोनल बर्थ कंट्रोल, प्रेगनेंसी और मेनोपॉज से महिलाओं के लिए जोखिम और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
बहुत सी महिलाओं को हार्मोनल बर्थ कंट्रोल्स जैसे कि गर्भनिरोधक दवाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन कुछेक में इन दवाओं से हाइपरटेंशन और ब्लक क्लॉट बनने के मामले सामने आते हैं। हालांकि इससे कोई बड़ा जोखिम नहीं है, लेकिन आपके लिए बेहतर यही रहेगा कि आप नियमित रूप से अपना बीपी चेक कराएं, कम से कम साल में दो बार।
प्रेगनेंसी से भी महिलाओं में बीपी बढ़ जाता है, जबकि उन्हें पहले इसकी समस्या नहीं रही हो। इसे जेस्टेशनल हाइपरटेंशन या प्री-एक्लेंपसिया कहते हैं। ये स्थिति महिला और उसके होने वाले बच्चे के लिए खतरनाक हो सकती है। इसीलिए गर्भवती महिलाओं का बीपी बार-बार चेक किया जाता है।
कई महिलाओं में मेनोपॉज के समय बीपी काफी तेज हो जाता है, लेकिन ऐसा क्यों होता है, इसके बारे में विशेषज्ञों को भी कोई जानकारी नहीं है। एक तर्क ये भी दिया जाता है कि प्री-मेंस्ट्रुअल हार्मोन कार्डियोवेस्कुलर हेल्थ बनाए रखते हैं और उनका लॉस होने से प्रेशर बढ़ जाता है।
मेनोपॉज के बाद का हाई बीपी उम्र बढ़ने के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ ब्लड वेसल हार्ड होने लगते हैं, ऐसे में खून के प्रवाह के लिए प्रेशर बढ़ जाता है। जो लोग लंबा जी लेते हैं, उनमें एक समय के बाद हाई बीपी की समस्या हो जाती है।
हाई बीपी को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए कुछ मरीजों को दवाओं की जरूरत होती है तो कुछ लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर इसे आसानी से मैनेज कर लेते हैं। संतुलित आहार, लो सोडियम साल्ट, शराब में कमी और स्मोकिंग छोड़ने से बीपी सामान्य स्तर पर बना रहता है। इसके अलावा जो महत्वपूर्ण चीज महिलाओं को करनी चाहिए वह है अपना वजन काबू में रखना। बाइकिंग, हाइकिंग और जॉगिंग बीपी को कम करने में काफी प्रभावी हैं। एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि तनाव में रहने से भी बीपी बढ़ जाता है। दरअसल तनाव होने पर ब्लड वैसल्स फैलने लगते हैं, जिससे बीपी बढ़ता है। मेडिटेशन, योग और दूसरी रिलेक्सेशन तकनीक अपनाकर भी बीपी को काबू में रखा जा सकता है।
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