पीरियड्स की वजह से छोटी उम्र की लड़कियों के तन और मन में क्या चलता है? एक्‍सपर्ट से जानें

छोटी लड़कियों के लिए पहला पीरियड डर और बेचैनी से भरा होता है। यह शारीरिक और इमोशनल चुनौतियों का एक तूफान है, जो उनके आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकता है। एक्‍सपर्ट बता रही हैं कि पीरियड्स कैसे छोटी लड़कियों के तन और मन को प्रभावित करते हैं।
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कई छोटी उम्र की लड़कियों के लिए पहला पीरियड आना डर, बेचैनी और अनिश्चितता का मिला-जुला अनुभव होता है। यह नारीत्व की शुरुआत का जरूरी और स्वाभाविक पड़ाव है, जो उनके शारीरिक विकास का संकेत देता है। हालांकि, इसके साथ ही यह शारीरिक बदलावों और इमोशनल चुनौतियों का एक ऐसा तूफान भी लेकर आता है, जो विशेष रूप से तब और भी भारी पड़ सकता है, जब इसका सामना पहली बार बिना किसी सही सहारे या उचित समझ के करना पड़े। यदि ठीक से मैनेज न किया जाए, तो यह अनुभव लड़कियों के आत्मविश्वास पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। पीरियड्स की वजह से छोटी उम्र की लड़कियों के तन और मन में कौन सी चीजें महसूस होती हैं? इस बारे में हमें नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल, मुंबई की एसोसिएट कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट, डॉक्‍टर रुजुल झावेरी बता रही हैं।

पीरियड्स का लड़कियों पर शारीरिक असर

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शारीरिक रूप से पीरियड्स का अनुभव अक्सर दर्दनाक होता है। कई युवा लड़कियों को पेट में ऐंठन, सिरदर्द, पेट फूलना और पीठ दर्द जैसे परेशान करने वाले लक्षणों का अनुभव होता है। ये शारीरिक तकलीफें इतनी ज्‍यादा हो सकती हैं कि रोजमर्रा के काम भी थका देने वाले और मुश्किल लगने लगते हैं।

इन लक्षणों को स्कूल में संभालना खासकर मुश्किल होता है, क्‍योंकि दर्द से जूझते हुए क्लास में फोकस करना या कपड़े खराब होने के डर से लगातार बनी रहने वाली गहरी चिंता लड़कियों को परेशान करती है। कुछ लड़कियों को यह शारीरिक बेचैनी इतनी ज्‍यादा होती है कि उनका स्कूल छूट जाता है और पढ़ाई में पिछड़ जाती हैं। इसके अलावा, दोस्तों और उन एक्टिविटी से दूर हो जाती हैं, जिनका वे पहले खुशी-खुशी हिस्सा बनती थीं। यह न सिर्फ उनकी शारीरिक, बल्कि सोशल और एजुकेशन लाइफ पर भी बुरा असर करता है।

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पीरियड्स का लड़कियों पर इमोशनल असर

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शारीरिक तकलीफों के अलावा, पीरियड्स का छोटी लड़कियों पर इमोशनल असर भी काफी गहरा होता है, जिसके बारे में अक्सर खुलकर बात नहीं की जाती है। हार्मोनल बदलाव के कारण उनमें मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन, उदासी या शर्मिंदगी जैसी इमोशन्‍स अचानक उभर सकते हैं। एक छोटी लड़की के लिए, जो अभी अपनी पहचान और अपने शरीर में हो रहे बदलावों को समझने की कोशिश कर रही है, ये आंतरिक उथल-पुथल एक ऐसे तूफान जैसी लग सकती है, जिसे वह कंट्रोल नहीं कर सकती है।

अक्सर, कई लड़कियां चुपचाप मन ही मन सोचती हैं, "मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है?" या "मेरा शरीर ऐसा क्यों कर रहा है?"। दुर्भाग्य से, कई समुदायों में पीरियड्स से जुड़े मिथ के कारण, लड़कियां इन सवालों को पूछने या किसी से मदद मांगने में शर्म महसूस करती हैं, जिससे उनकी परेशानियां और भी बढ़ जाती हैं। यह चुप्पी उनके मानसिक स्वास्थ्य और इमोशनल ग्रोथ पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

चुप्पी का दर्द

पीरियड्स को लेकर समाज में व्याप्त चुप्पी अक्सर सबसे दर्दनाक पहलू बन जाती है। कई लड़कियों को बचपन से ही इसे छिपाना सिखाया जाता है, जैसे कि सैनिटरी पैड को इस तरह रखना कि कोई देख न सके, पेट में ऐंठन के बारे में बात करने से बचना और दर्द में भी मुस्कुराते रहने का दिखावा करना। यह गोपनीयता उनके भीतर आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के बजाय शर्म की भावना को जन्म देती है, जिससे पीरियड्स कुछ ऐसा लगने लगता है जिसे उन्हें चुपचाप अकेले ही सहना है। यह सोच बड़े होने के इस शक्तिशाली और नेचुरल प्रोसेस को एक छिपी हुई पीड़ा बना देती है।

सच्ची जरूरत क्या है?

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छोटी लड़कियों को वास्तव में यह समझना चाहिए कि उन्हें अपने माता-पिता, शिक्षकों और पूरे समाज की जरूरत है कि वे इस विषय पर खुलकर बात करें, सही शिक्षा प्रदान करें और सहानुभूति दिखाएं। एक साधारण सी बातचीत, एक आश्वस्त करने वाला शब्द, या एक साफ-सुथरे टॉयलेट और सैनिटरी प्रोडक्ट्स तक आसान पहुंच से बहुत बड़ा फर्क पड़ सकता है। ये छोटे कदम लड़कियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए जरूरी है।

लड़कियों को सपोर्ट करना

इस पूरी जर्नी में लड़कियों को सपोर्ट करना सिर्फ उनके शारीरिक दर्द को संभालने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना को बढ़ाने के बारे में है। जब हम उनके डर को ध्यान से सुनते हैं, उनके अनुभवों को समझते हुए उन्हें मान्यता देते हैं, और उन्हें आवश्यक ज्ञान व जानकारी से रूबरू कराते हैं, तब हम उन्हें मजबूत और सशक्त महिलाओं के रूप में विकसित होने में मदद करते हैं, जो अपने शरीर से बिल्कुल भी नहीं डरती हैं।

पीरियड: एक इमोशनल अनुभव

पीरियड सिर्फबायोलॉजिकलनहीं होता हैं, ये एक गहरा इमोशनल अनुभव हैं, खासकर उन छोटी लड़कियों के लिए जो एक अनजानी दुनिया में कदम रख रही हैं। हम पीरियड्स से जुड़ी बातचीत को जितना नॉर्मल बनाएंगे, उतना ही हम चिंता को आश्वासन में बदल पाएंगे, जिससे वे इस बदलाव को सकारात्मक रूप से स्वीकार कर सकें।

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Image Credit: Shutterstock & Freepik

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