ब्रेस्ट कैंसर के सबसे मुश्किल प्रकारों में से एक है ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर क्योंकि इलाज काफी पेजीदा होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर और केरोलिंक्स्का इंस्टीट्यूटेट के शोधकर्ताओं का कहना है कि कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर काफी आक्रामक हो जाता है और इसका इलाज भी मुश्किल होता है। यह रिसर्च जर्नल सेल में प्रकाशित हुई हैं, जिनसे ब्रेस्ट कैंसर के पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट में मदद मिलेगी।
प्रभावी इलाज ना हो पाना एक बड़ी चुनौती
ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में पाया जाने वाला सबसे आम कैंसर है। स्वीडन में मिडिल एज की महिलाओं की मौत की यह सबसे बड़ी वजह है। ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी) काफी आक्रामक होता है और इसका इलाज भी काफी मुश्किल होता है। ब्रेस्ट कैंसर के कुल मामलों में 15 फीसदी मामले टीएनबीसी के होते हैं। टीएनबीसी के इलाज में कीमोथेरेपी एक अहम कड़ी होती है। इलाज कराए जाने पर या तो कीमोथेरेपी पहले ही कराई जाती है या फिर सर्जरी के बाद। हालांकि टीएनबीसी में कई कीमोथेरेपी ड्रग्स बेअसर साबित होते हैं, लेकिन इलाज प्रभावी तरीके से ना हो पाना एक बड़ी चुनौती साबित होती है। कई साल से शोधकर्ता इस बात को समझने का प्रयास कर रहे हैं कि इस बीमारी में रेजिस्टेंस की समस्या क्यों होती है ताकि वे इसके इलाज को आसान बना सकें।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टीएनबीसी वाले 20 मरीजों के ट्यूमर टिशु का अध्ययन किया, जिनकी प्रीऑपरेटिव कीमोथेरेपी की गई थी। थेरेपी लिए जाने से पहले, थेरेपी के दो कोर्स के बाद और सर्जरी के बाद टिशु इकट्ठा किए गए।डीएनए एनालिसिस में यह बात सामने आई कि आधे मामलों में इलाज के बाद भी ट्यूमर क्लोन बने रहते हैं। कुल मिलाकर स्टडी यह बताती है कि टीएनबीसी में कीमोरेसिस्टेंस एक पेचीदा प्रक्रिया है। इससे भविष्य में थेरेपी रेसिस्टेंट ट्यूमर क्लोन को पहचानने में मदद मिलेगी और इससे उन मरीजों को फायदा होगा, जिनकी स्थिति कीमोथेरेपी से बेहतर नहीं होती।
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