कैंसर का पता लगाने के लिए मुंबई की सिर्फ 38% महिलाएं ही करती हैं ब्रेस्‍ट की जांच

भले ही मुंबई में 90% महिलाओं को इस बात की जानकारी है लेकिन केवल  38% महिलाएं ही नियमित रूप से खुद से ब्रेस्‍ट की जांच (बीएसई) करती हैं।

  • Pooja Sinha
  • Her Zindagi Editorial
  • Updated - 2018-04-05, 19:07 IST
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भले ही मुंबई में 90% महिलाओं को इस बात की जानकारी है कि ब्रेस्‍ट कैंसर के सबसे आम लक्षण में ब्रेस्‍ट में गांठ एक है, लेकिन केवल 38% महिलाएं ही नियमित रूप से खुद से ब्रेस्‍ट की जांच (बीएसई) करती हैं - इसे आत्म निदान के प्रभावी और आसान तरीके के रूप में माना जाता है - यह बात एक हालिया अध्ययन से पता चली है।

वेस्‍टर्न इंडिया में अर्बन सेटअप में महिलाओं के बीच ब्रेस्‍ट कैंसर जागरूकता की यह स्‍टडी जर्नल ऑफ मेडिकल एंड पेडियेट्रिक ओंकोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित हुई थी। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और लाहौर, पाकिस्तान में दवा विभाग, आरसीएसएम, सरकारी मेडिकल कॉलेज, कोल्हापुर और सरकारी मेडिकल कॉलेज और उनके सहयोगियों ने कहा कि अध्ययन का उद्देश्य बीमारी के लिए इलाज की इच्छा के साथ ब्रेस्‍ट कैंसर से संबंधित ज्ञान और जागरूकता का आकलन करना था।

क्‍या कहता है शोध

मुंबई की 18 से 70 साल की आयु वर्ग की पांच सौ महिलाओं पर संरचित प्रश्नावली के माध्यम से अप्रैल 2016 से सितंबर 2016 के बीच सर्वेक्षण किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि जबकि आधे से अधिक उत्तरदाताओं (71.42%) ब्रेस्‍ट कैंसर के लक्षणों को जानती थी, जोखिम कारकों पर जागरुकता विविधता थी। आत्म-निदान और देखभाल में प्रमुख अंतर पाया गया - केवल 38.0 9% ने बीएसई का प्रदर्शन किया - भले ही 85.71% परीक्षा के बारे में जानते थी और 90.47% ने सोचा कि यह महत्वपूर्ण था।

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अध्‍ययन में सिंह ने कहा कि "सबसे सामान्य प्रतिक्रियाएं 'कभी नहीं किया,' 'इसके बारे में कभी नहीं सोचा,' और 'मेरे डॉक्टर ने मुझे नहीं बताया।' महिलाएं बीएसई के खिलाफ नहीं थीं, क्योंकि 52.38% ने कहा कि अगर ये परिणाम फायदेमंद होगा तो वे इसे करेंगी। यह साबित करता है कि स्‍वीकृति सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है।''

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शरीर के बारे में परंपरागत सोच रखती हैं महिलाएं

सिटी ऑन्कोलॉजिस्ट ने कहा कि भारतीय महिला अपने शरीर के बारे में परंपरागत सोच रखती हैं, जिसकी वजह से चिकित्‍सक भी इस विषय को लेकर कभी-कभी सोच में पड़ जाते हैं।

Fortis Hospital, Mulund and Kalyan के onco-surgeon Dr Anil Heroor का कहना है कि ''बीएसई के बारे में बात करना महिला डॉक्‍टर के लिए थोड़ा मुश्किल होता है, जब मरीज बुखार, कोल्‍ड या कफ के लिए आता है। इसके अलावा गांठ के मामले में भी महिलाएं आमतौर पर इनकार मोड में रखा जाता है क्‍योंकि उनमें से ज्‍यादातर सोचती हैं कि यह प्रेग्‍नेंसी या कुछ मामूली आघात के बाद का असर है।''

ब्रेस्‍ट कैंसर के लक्षणों को जानना है जरूरी

शोधकर्ताओं ने ब्रेस्‍ट कैंसर के अन्य लक्षणों जैसे ब्रेस्‍ट में पेन, ब्‍लीडिंग या निप्‍पल से डिस्‍चार्ज, त्वचा की बनावट में परिवर्तन, ब्रेस्‍ट में कोमलता और बगल में गांठ के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को जोड़ा गया।

"भारत में जागरूकता कार्यक्रमों को ब्रेस्‍ट कैंसर की अन्य प्रस्तुतियों पर भी बल देना चाहिए, और केवल ब्रेस्‍ट में गांठ पर फोकस नहीं होना चाहिए। डॉक्‍टर सिंह ने कहा कि उनमें से ज्यादातर (महिलाओं) ने मीडिया से यह जानकारी प्राप्त की (42.85%) और इस प्रकार यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सही जानकारी का प्रसार किया जा रहा है।''

संघ स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, ब्रेस्‍ट कैंसर भारत की महिलाओं के बीच कैंसर का प्रमुख कारण है, 1,00,000 में 25.8 प्रतिशत महिलाएं ब्रेस्‍ट कैंसर का शिकार होती है और मृत्यु दर 1,00,000 में से 12.7 प्रतिशत महिलाओं में देखने को मिलती है। भारत में ब्रेस्‍ट कैंसर से बचने की दर बहुत कम है, केवल 66.1% महिलाओं को कैसर का निदान हो पाता है जो 2010 और 2014 के बीच की बीमारी से ग्रस्त थीं, इस साल के शुरू में एक लंसीट अध्ययन में पाया गया था।

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