आजकल महिलाओं में लाइफस्टाइल में जुड़े डिसऑर्डर काफी बढ़ गए हैं। थायराइड, पीसीओडी और पीसीओएस के मामले काफी देखने को मिल रहे हैं। आज हम आपको पीसीओएस और इंसुलिन रेजिस्टेंस सेजुड़ी कुछ जानकारी देने जा रहे हैं। पीसीओएस के कारण महिलाओं के हार्मोन्स इंबैलेंस हो जाते हैं। साथ ही, पीरियड्स और फर्टिलिटी पर भी इसका असर पड़ता है। पीसीओएस पर इंसुलिन रेजिस्टेंस का भी काफी असर होता है।
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) एक हार्मोनल डिजीज है, जो सबसे ज्यादा रिप्रोडक्टिव उम्र की महिलाओं को परेशान करता है। इसमें ओवरीज में कई छोटे लिक्विड से भरे सिस्ट (पॉलीसिस्ट) बनते हैं। PCOS का मुख्य लक्षण हार्मोनल इंबैलेंस है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पीसीओएस सिर्फ ओवरीज को ही प्रभावित नहीं करता है, बल्कि इसका असर एक महिला के पूरे शरीर पर होता है।
पैंक्रियास में बनने वाला इंसुलिन ग्लूकोज को सेल्स में एनर्जी के रूप में प्रवेश कराता है, जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस में सेल्स इंसुलिन के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, जिससे पैंक्रियास ज्यादा इंसुलिन उत्पन्न करने लगती है। इससे इंसुलिन (हाइपरइंसुलिनेमिया) और ब्लड शुगर का लेवल ज्यादा हो जाता है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, ज्यादातर महिलाएं इसे अनदेखा कर देती हैं, लेकिन यह मेटाबॉलिक डिसऑर्डर हेल्थ पर बुरा असर डालता है।
पीसीओएस और इंसुलिन रेजिस्टेंस एक-दूसरे से कैसे जुड़ा है?
PCOS और इंसुलिन रेजिस्टेंस एक-दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं?इसके बारे में जानकर, हम आपस में जुड़े इस हेल्थ चैलेंज को अच्छी तरह से मैनेज कर सकते हैं और PCOS से परेशान महिलाओं को कई तरह की समस्याओं से बचा सकते हैं। इसके बारे में हमें ओएसिस फर्टिलिटी क्लिनिक की फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर हरिका माथी विस्तार से बता रही हैं।
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PCOS से परेशान महिलाओं में इंसुलिन रेजिस्टेंस आम है, क्योंकि उनमें एंड्रोजन (मेल हार्मोन) का लेवल हाई होता है। ओवरीज में एंड्रोजन का उत्पादन बढ़ाकर इंसुलिन रेजिस्टेंस PCOS का कारण बन सकता है। ये एंड्रोजन इंसुलिन सिग्नलिंग में बाधा डालते हैं, जिससे शरीर इंसुलिन का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं कर पाता है और इंसुलिन रजिस्टेंस बढ़ जाता है। इससे हार्मोनलइंबैलेंसऔर इंसुलिन रेजिस्टेंस का एक विकृत चक्र बनता है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस से बढ़ते हैं पीसीओएस के लक्षण
इंसुलिन रेजिस्टेंस से न सिर्फ PCOS को मैनेज करना मुश्किल होता है, बल्कि इसके लक्षण भी बढ़ने लगते हैं। कई महिलाओं का PCOS के कारण वजन, विशेष रूप से पेट के आस-पास का फैट बढ़ने लगता है। इसे विसरल फैट कहते हैं। इस फैट से इंफ्लेमेंटरी पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिन्हें साइटोकाइन कहा जाता है। यह इंसुलिन के काम में बाधा उत्पन्न करके शरीर में सूजन को बढ़ाते हैं, जिससे मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के लक्षण ज्यादा खराब होने लगते हैं। साथ ही, विसरल फैट के ज्यादा होने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं जैसे दिल की बीमारी, डायबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, इंसुलिन के हाई लेवल से वजन बढ़ने लगता है, जो इंसुलिन रजिस्टेंस को भी ज्यादा बढ़ाता है।
यह मेटाबॉलिक डिसऑर्डर एंड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाकर PCOS के अन्य लक्षणों को भी बढ़ाता है, जैसे अनियमित पीरियड्स और ओव्यूलेशन को बाधित करना। चूंकि PCOS इनफर्टिलिटी के प्रमुख कारणों में से एक है, इसलिए ओवरीज के कार्य में बाधा उत्पन्न करके इंसुलिन रजिस्टेंस रिप्रोडक्टिव सेजुड़ी समस्याओं को बढ़ा देता है और गर्भाधारण के चांस को कम करता है।
इसके अलावा, इंसुलिन रेजिस्टेंस से उत्पन्न होने वाले ज्यादा एंड्रोजन शारीरिक लक्षणों जैसे हिर्सुटिज्म (चेहरे और शरीर के बहुत ज्यादा बाल) और मुंहासे को जन्म देते हैं, जो कंडीशन को ज्यादा खराब करते हैं।
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इंसुलिन रजिस्टेंस को मैनेज करने के तरीके
इंसुलिन रजिस्टेंस PCOS के लक्षणों को बढ़ाता है और ट्रीटमेंट को मुश्किल बनाता है। इसलिए, पीसीओएस के लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन रेजिस्टेंस को मैनेज करना जरूरी है। इसके लिए, आपको अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करना होगा, समय पर दवाएं लेनी होगी और रेगुलर चेकअप कराना होगा। बैलेंस डाइट, रेगुलर एक्सरसाइज (हफ्ते में 150 मिनट इंटेंस फिजिकल एक्टिविटी और हफ्ते में 3 बार रेजिस्टेंस ट्रेनिंग) और मामूली वजन घटाकर (5-10%) भी इंसुलिन सेंसिटिविटी में सुधार किया जा सकता है। साथ ही, आप पीरियड्स को रेगुलर, एंड्रोजन लेवल को कम और फर्टिलिटी को बढ़ा सकते हैं।
अब तो आपको समझ में आ गया होगा कि इंसुलिन रेजिस्टेंस और पीसीओएस में क्या लिंक है। अगर आपको हेल्थ से जुड़ी कोई समस्या है, तो हमें आर्टिकल के ऊपर दिए गए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम अपने आर्टिकल्स के जरिए आपकी समस्या को हल करने की कोशिश करेंगे।
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Image Credit: Shutterstock & Freepik
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