चेसबोर्ड से किचन तक कुछ ऐसी रोचक कहानी है दक्षिण भारतीय पायसम की

दक्षिण भारत का पायसम और उत्तर भारत में खीर... कैसे बनी और कहां बनी? आइए इसके तैयार होने की कहानी जानें।

sweet dish payasam origin in hindi
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हममें से कई लोगों के लिए डेजर्ट या कुछ मीठा खाए बगैर खाना पूरा ही नहीं होता है। अब मीठे में खीर या कहें पायसम हो तो अलग ही बात है। दक्षिण भारत का यह डेजर्ट सदियों से रॉयल पैलेस में परोसा जाता रहा है। केरल में साद्य जो कि एक ट्रेडिशनल भोज होता है, के बाद पायसम तो जरूर खाया जाता।

साथ ही अगर इसका टेस्ट अच्छा न हो, तो साद्या अधूरा लगता है। पायसम को दूध, गेहूं और चीनी से बनाया जाता है। साथ ही इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इस डेजर्ट को स्वीट डिशेज की रानी का दर्जा प्राप्त है।

नॉर्थ इंडिया में इसे खीर कहते हैं, जो कि शीर से आया है और दूध के लिए एक संस्कृत शब्द है। वहीं पायसम को पायस कन्नड़ और तेलुगु में कहते हैं। ज्यादातर दक्षिण भारतीय लोग इसमें गुड़ और नारियल का दूध डालते हैं।

यह डेजर्ट जो आज घर-घर में पसंद किया जाता है, इसके इतिहास के बारे में जानते हैं आप? क्या आपने कभी सोचा कि आखिर इसे बनाने का आइडिया किसे और कैसे आया होगा? दुनिया भर में पसंद किए जाने वाले इस डेजर्ट के बारे में आइए आज हम विस्तार से जानें।

ऐसे शुरू हुआ था 'पायसम' का किस्सा

payasam history and origin

कहा जाता है कि इसकी शुरुआत हजारों साल पहले दक्षिण भारत में हुई थी। केरल में एक कहानी को खूब पढ़ा और सुना जाता है, जिसका शीर्षक 'द लीजेंड ऑफ चेसबोर्ड' है। कहानी के मुताबिक, चेम्बकस्सेरी का राजा शतरंज का बहुत बड़ा प्रशंसक और एक शानदार खिलाड़ी था। एक बार उन्होंने एक गरीब ब्राह्मण को पकड़कर उन्हें शतरंज खेलने की चुनौती दी। वह ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि श्री कृष्ण थे, जो राजा की इस चुनौती को स्वीकार कर उनके साथ शतरंज खेलने लगे।

ऋषि को प्रेरित करने के लिए, राजा ने यह कह दिया कि वह जो भी चाहेंगे, उन्हें मिलेगा अगर वह शतरंज की बाजी जीत लेंगे। ऋषि मान गए और उन्होंने बहुत कुछ मांगने की जगह राजा को बस चावल के दाने देने के लिए कहा लेकिन एक शर्त के तहत कि राजा को पहले शतरंज के हर खाने पर चावल का एक दाना डालना होगा और हर बाद वाले पर दोगुना करना होगा।

खेल शुरू हुआ और ऋषि शतरंज की बाजी जीत गए। अब शर्त के मुताबिक राजा को चावल के दाने रखने थे। जैसे ही उसने उन्हें ढेर किया, वह यह देखकर चौंक गया कि संख्या तेजी से बढ़ रही है। अंत में यह संख्या खरबों तक पहुंच गई। इसके बाद कृष्ण खुद को राजा के सामने प्रकट किया और फिर मंदिर में आने वाले प्रत्येक तीर्थयात्री को पायसम प्रदान करने के लिए कहा। इसके बाद से पायसम अंबालापुझा कृष्ण मंदिर (दक्षिण भारत में भी मौजूद हैं कई प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर) में प्रसाद के रूप में मिलने लगा और आज भी मंदिर में इसका अनुसरण किया जाता है।

पुरी के इंजीनियर ने बनाया पायसम?

एक दूसरी कहानी पर विश्वास करें तो कहा जाता है कि इसकी शुरुआत ओडिशा स्थित पुरी के एक मंदिर में हुई थी। गोइंदा गोदी नाम की एक स्वीट डिश कोर्णाक मंदिर में बड़ी लोकप्रिय थी। ऐसा माना जाता था कि इस डेजर्ट ने मंदिर की बिल्डिंग के फाउंडेशन की महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग विशेषता को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की बिल्डिंग को बनाना बड़ी मेहनत के बाद भी मुश्किल हो रहा था।

आखिरकार, चीफ इंजीनियर के बेटे को एक युक्ति सूझी और उन्होंने फाउंडेशन को ब्रिज के ऊपर बनाने का तरीका विस्तार से समझाया। इस तरीके को उन्होंने एक डेजर्ट की कटोरी में चावलों के दाने गिराते हुए समझाया, जिसके बाद इससे मीठा बनाया गया और यह डिश गोइंदा गोदी के नाम से लोकप्रिय हो गई। किंवदंती के अनुसार, इस डिश को अशोक के पैलेस में शाम के नाश्ते के तौर पर भी परोसा जाता था।

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कितने तरह के होते हैं पायसम

sewai payasam

केवल तमिलनाडु में ही पायसम की 15-20 से अधिक वैरायटी हैं और अगर पूरे देश की बात करें तो पायसम की 60+ से अधिक वैरायटी बनती और परोसी जाती हैं। दक्षिण और उत्तर भारतीय पायसम के बीच मुख्य अंतर यह है कि दक्षिण भारतीय गुड़ और नारियल का दूध मिलाना पसंद करते हैं, जबकि उत्तर भारतीय दूध और चीनी से बना डेजर्ट पसंद करते हैं। पायसम की कुछ खास वैरायटी इस तरह से हैं-

  • पाल पायसम
  • खीर
  • साबूदाना पायसम
  • अक्करावादिसली
  • गोथाअम्बू पायसम
  • थेंगई पाल पायसम
  • चक्का प्रधानम
  • पलदा पायसम
  • चावल नारियल की खीर
  • चावल की खीर
  • सेवई पायसम
  • पारुपू पायसम
  • जाव-अरिसि पायसम

पायसम की तरह गिल-ए-फिरदौस का नवाबी रुतबा

आप इसे अपनी जुबान में खीर या पायसम कह सकते हैं। यह गिल-ए-फिरदौस एक स्वादिष्ट और गाढ़ा डेजर्ट है, जो पारंपरिक हैदराबादी व्यंजन का हिस्सा है। इस खास डिश में दूध और लौकी मुख्य सामग्री होती है। ऐसा कहा जाता है कि नवाबी युग के दौरान शाही रसोई में गिल-ए-फिरदौस की खोज हुई थी।

अंबालापुझा के मंदिर में प्रसाद के तौर पर तैयार होने वाला पलपयसम के तथ्य

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  • पायसम तैयार करने में लगभग 6 घंटे का समय लगता है।
  • खाना बनाना रोजाना सुबह 6:00 बजे शुरू होता है।
  • सबसे पहले पानी को एक बड़े बर्तन में लगभग एक घंटे के लिए उबाला जाता है। दूध को उबलते पानी में डाला जाता है। दूध को धीरे-धीरे तब तक पकाया जाता है जब तक कि सारा पानी गायब न हो जाए। जब पानी पूरी तरह से गायब हो जाए तो इसमें चावल डालकर पकाए जाते हैं। चावल पक जाने पर उसमें चीनी डाल दी जाती है।
  • रोजाना बनने वाला अंबालापुझा पलपयसम 71 लीटर दूध, 284 लीटर पानी, 9 किलो चावल और 15.84 लीटर चीनी का उपयोग करके तैयार किया जाता है।

ये तो है पायसम की मीठी सी कहानी, जो यकीनन आपको पढ़कर भी अच्छी लगी होगी। आपको किस तरह का पायसम या खीर (जानें गार्लिक खीर की रेसिपी) पसंद है, हमें जरूर बताएं। हमारी किस्से पकवानों की सीरीज में हम ऐसे ही अन्य व्यंजनों के इतिहास के बारे में आपको बताते रहेंगे। ऐसे ही अन्य रोचक लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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Image Credit: freepik & pulses

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