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क्या होता अगर पुरुषों को होते पीरियड्स? AI का यह जवाब सुनकर आप भी चकरा जाएंगे

क्या कभी आपने सोचा है कि इस दुनिया में अगर महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी पीरियड्स होते, तो उसका असर क्या होता? क्या वाकई दुनिया वैसी ही होती, जैसी हमें दिख रही है? आज जानिए AI ने क्या दिया है जवाब। इसे पढ़कर शायद आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि क्या वाकई इस तरह की स्थिति हो सकती थी पुरुषों को पीरियड्स होने पर?  
Editorial
Updated:- 2024-12-06, 16:36 IST

पीरियड्स की समस्या हमेशा महिलाओं को परेशान करती है। पीरियड्स महिलाओं को होते हैं और यह आदिकाल से होते आ रहे हैं, लेकिन इसे लेकर अभी भी चुपचाप रहने की सलाह दी जाती है। पीरियड बायोलॉजी है, लेकिन फिर भी इसके बारे में बात करने पर लोग ऐसे नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं जैसे यह कोई समस्या हो। पीरियड्स के दौरान महिलाएं अपने लिए जरा सी सहूलियत के बारे में सोच लें, तो उन्हें ना जाने क्या-क्या सुनने को मिल जाता है। 'तुम्हारा हमेशा का है, अच्छा दैट टाइम ऑफ द मंथ, अरे फिर छुट्टी क्यों चाहिए...' जैसी ना जाने कितनी बातें होती हैं जो गाहे-बगाहे सुनने को मिल ही जाती हैं। पर कभी आपने सोचा है कि अगर किसी वजह से पुरुषों को पीरियड्स होते, तो दुनिया कितनी बदल जाती?

यही बात मैंने अलग-अलग AI टूल्स से पूछकर देखी। अलग-अलग AI टूल्स से कहकर पुरुषों की तस्वीरें भी बनवाईं। क्या आपको पता है कि इसका नतीजा क्या निकला? Chat Gpt, Dall E, Meta AI जैसे लोकप्रिय AI टूल्स के मुताबिक, पुरुषों को पीरियड्स होते, तो कुछ ऐसे बदल जाती दुनिया। इस स्टोरी में AI टूल्स के स्क्रीन शॉट्स दिखाए गए हैं। उन टूल्स ने कैसी इमेज दिखाई।

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सारे AI टूल्स के उत्तर मिलाकर कुछ इस प्रकार थे...

अगर पुरुषों को पीरियड्स होते, तो दुनिया में बहुत सारे बदलाव हो जाते। इसमें समाज के बदलावों से लेकर, शिक्षा, ऑफिस और बिजनेस में बदलाव भी होता।

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पीरियड्स होते नॉर्मल

सबसे पहला बदलाव ही यही होता कि पीरियड्स आम हो जाते। इसे लेकर कोई भी टैबू नहीं होता। मेंस्ट्रुएशन भी आम होता और इसपर खुलकर बात होती। इसे लेकर समाज में कोई शर्म नहीं होती और काली पन्नी में पैड्स नहीं बेचे जाते।

मेंस्ट्रुएशन से जुड़े एक्सपीरियंस जिंदगी का हिस्सा बन जाते। इसमें कई चीजें शामिल होतीं। पुरुष रोजाना इसपर बात भी करते।

इसे जरूर पढ़ें- इन संकेतों से जानें क्या आपको हो रहे हैं हेल्दी पीरियड्स या नहीं ?

मर्दानगी के मायने बदल जाते

मौजूदा समाज में मर्दानगी को टॉक्सिक समझा जा सकता है। 'मर्द को दर्द नहीं होता है...' जैसी बातें बोली जाती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर पुरुषों को पीरियड्स होते, तो यह भी बदल जाता। ट्रेडिशनल मतलब से हटकर पीरियड्स का पुरुषों की जिंदगी में कैसा असर होता है वह मर्दानगी बन जाती। जेंडर रोल्स जैसा कुछ नहीं होता और पीरियड्स में कौन कितना सह सकता है इसे ज्यादा देखा जाता। फिजिकल पेन कौन कितना सह सकता है और पीरियड्स के पहले और बाद क्या किया इसके किस्से भी मर्दानगी के दायरे में आते।

men and periods

हेल्थ केयर और बेहतर हो जाती

पुरुषों को पीरियड्स होते, तो यकीनन हेल्थ केयर के मायने कुछ बदल जाते। उस समय हेल्थ केयर को लेकर ज्यादा निवेश किया जाता और पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द में, पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं को लेकर बेहतर हल होते।

पीएमएस और मूड स्विंग्स को लेकर ज्यादा रिसर्च की जाती। ऐसे में उन लोगों के लिए ज्यादा बेहतर विकल्प होते जिनके लिए यह समस्या विकराल हो जाती है।

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पीसीओएस और पीसीओडी के लिए इलाज निकल जाता

मौजूदा समय में बर्थ कंट्रोल पिल्स खाकर, हार्मोनल समस्याओं से जूझकर ना जाने कितनी समस्याएं झेली जाती हैं, लेकिन अगर पुरुषों को पीरियड्स होते, तो शायद इसका इलाज ज्यादा जल्दी निकल जाता।

हेल्थ केयर पॉलिसीज में पीरियड्स से जुड़ी जरूरतों का भी ध्यान दिया जाता।

पीरियड्स लीव्स को लेकर नहीं होती बहस

लंबे समय से पीरियड लीव्स को लेकर बहस चल रही है कि यह जरूरत है और इसके कारण महिलाओं को ज्यादा छुट्टी मिल सकती है। अगर पुरुषों को पीरियड्स होते, तो यह बहस ही नहीं होती। पुरुषों के लिए यह समस्या ही होती और पीरियड लीव्स हर ऑफिस में होती। पेड पीरियड्स लीव्स का सपना देखना बुरा नहीं होता।

ऑफिस में बेड्स लगे होते और क्रैम्प्स होते ही उनमें लेटने की आजादी होती, चार्जिंग प्वाइंट्स के पास हीटिंग पैड्स लगे होते।

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पीरियड्स को लेकर होती क्लासेस

वो क्लासेस नहीं जहां स्कूल में पीरियड्स को लेकर चैप्टर पढ़ाया जाए, तो लड़कियों को मुंह छुपाना पड़े। ऐसी क्लासेस जिसमें पीरियड्स को लेकर वाकई जानकारी दी जाती। पैड्स, टैम्पोन और अन्य पीरियड प्रोडक्ट्स के बारे में सिखाया जाता। पब्लिक अवेयरनेस कैंपेन होतीं। पीरियड्स को नॉर्मलाइज कर दिया जाता।

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पीरियड्स के लिए होती कंपनियां

पीरियड्स और मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स को लेकर मार्केट थोड़ा और अच्छा होता। मार्केट में इतने प्रोडक्ट्स होते कि पुरुषों को दिक्कत नहीं होती। इतने प्रोडक्ट्स के कारण डिमांड और सप्लाई ज्यादा होती और कॉम्पटीशन के कारण प्रोडक्ट्स के दाम गिर जाते। यानी पीरियड प्रोडक्ट्स पर टैक्स कम लगता और इनकी पूछ-परख ज्यादा होती।

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पीरियड्स को लेकर साइकोलॉजी और इमोशनल बातें ज्यादा होती

मेंस्ट्रुअल एक्सपीरियंस को लेकर लोग खुलकर बात करते। लोग एक दूसरे की समस्या समझते। मूड स्विंग्स और पीरियड्स के दौरान होने वाले क्रैम्प्स को लेकर समस्याएं कम होतीं। पुरुषो को भी ऐसा महसूस होता कि यह उनके लिए गलत नहीं है। वह एक दूसरे को सपोर्ट करने के बारे में सोचते।

पीरियड्स की कहानी बताने वाले को सशक्त कहा जाता और उसकी तारीफ होती।

पॉलिसी और सरकार में होते बदलाव

ऐसे समय में पीरियड प्रोडक्ट्स पर टैक्स नहीं लगता। इसे जरूरत मानकर इसे सब्सिडी बताया जाता। सरकारी कामों में भी पीरियड्स को लेकर प्रावधान जोड़े जाते और ना जाने कितनी पॉलिसी बन चुकी होतीं।

कुल मिलाकर अगर पुरुषों को पीरियड्स होते, तो जिंदगी कुछ और ही होती। दुनिया जैसी हमें दिख रही है उससे बदल गई होती। ऐसे समय में पितृसत्ता के मायने बदल जाते और समाज में पीरियड्स को लेकर एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग होती।

आपको क्या लगता है? अगर पीरियड्स पुरुषों को होते, तो क्या बदलाव आते? कमेंट बॉक्स में लिखें और हमें भी बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। 

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