अगस्त 2021 का एक आम दिन था जब अफगानिस्तान के लोगों की जिंदगी बिल्कुल ही बदल गई थी। कुछ ही दिनों के अंदर दूर दराज के अफगानी इलाकों से लेकर काबुल तक तालिबान ने अपना वर्चस्व जमा लिया था। हजारों लोगों ने अफगानिस्तान से भागने की कोशिश की थी। एयरपोर्ट, ट्रेन स्टेशन, बस अड्डे सभी के जरिए लोग भाग रहे थे, लेकिन सरकार के धराशाई होने के बाद कुछ ना हो सका। उस दिन के बाद से महिलाओं के लिए अफगानिस्तान में हजारों नियम बनाए जा चुके हैं।
नियम ऐसे कि कोई भी परेशान हो जाए। पर क्या ये नियम ह्यूमन राइट्स के तहत आते हैं? कुछ भी कहने से पहले हम बात कर लेते हैं उन नियमों की जिन्हें अफगानिस्तान में लागू किया गया है।
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WHO की ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में हालात और खराब हैं। कांधार से काबुल तक सभी जगह महिलाओं और लड़कियों के लिए हेल्थ, एजुकेशन, कल्चरल फ्रीडम और कमाई के सभी साधन बंद कर दिए गए हैं।
हो सकता है कि कुछ लोगों को ब्यूटी पार्लर बंद करना ह्यूमन राइट्स वॉयलेशन ना लगे, लेकिन आप ऐसे मामलों में सोचिए कि महिलाओं के लिए जो दो-तीन कमाई के साधन थे उन्हें भी बंद कर दिया गया है। यहां सिर्फ कमाई खत्म नहीं हुई, बल्कि इकोनॉमिक शटडाउन भी हुआ है। पूरे देश में किसी एक तरह के बिजनेस के बंद होने का मतलब होता है उससे जुड़ी सभी चीजों का बंद होना जिससे कई लोगों के रोजगारों पर असर पड़ता है।
इसके अलावा, ध्यान दिया जाए तो अफगानिस्तान की महिलाओं को अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी भी पड़ती है, तो उन्हें किसी पुरुष का इंतजार करना होगा। ऐसे में किसी की जान भी जा सकती है। यहां हेल्थ केयर, एजुकेशन, शेल्टर सभी अधिकारों का हनन हो रहा है। तालिबानी सरकार ने नियम तो बना दिए हैं, लेकिन उन नियमों का असर कितनी गहराई तक हो रहा है उसके बारे में शायद किसी को जानकारी नहीं है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की उस रिपोर्ट में SJSU (San Jose State University) के ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूट की कोर फैकल्टी मेंबर और स्कॉलर हलीमा काजम स्टोजानोविक के हवाले से एक स्टेटमेंट दिया गया है। हलीमा के मुताबिक, "न सिर्फ अफगान महिलाओं के सपने चूर-चूर हो रहे हैं, बल्कि वो अपने अधिकारों की हत्या होते भी देख रही हैं। अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी के एक्शन और तालिबान के क्रूर व्यवहार के बीच उनकी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।"
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इसी रिपोर्ट में 10 महिलाओं का इंटरव्यू भी छपा था जिसमें बताया गया था कि कैसे उन्हें या तो नौकरी छोड़नी पड़ी है या फिर आर्थिक मंदी के कारण उन्हें नौकरी पर पैसे नहीं दिए जा रहे हैं। महिलाओं को सेकंडरी और हायर एजुकेशन से वंचित रखा गया है और उन्हें धार्मिक पाठ पढ़ाया जा रहा है। तालिबान ने यहां तक तय कर दिया है कि महिलाएं किस तरह के सेल फोन रख सकती हैं।
ऐसे माहौल में यकीनन आपके जीने के अधिकार का ही हनन हो रहा है।
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