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How to proove domestic violence

Haqse: घरेलू हिंसा साबित करने के लिए कोर्ट मांगता है ये सबूत, जानिए क्या है केस करने का पूरा प्रोसेस

घरेलू हिंसा के मामले में कोर्ट में जज फैसला सुनाने से पहले दोनों पक्षों की दलीलों को सुनते हैं। कई मामलों में घरेलू हिंसा के मेडिकल या फिजिकल प्रूफ भी देने होते हैं ताकि फैसला सही हो सके। 
Editorial
Updated:- 2023-06-23, 13:21 IST

यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्री के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार हर तीसरी महिला भारत में घरेलू हिंसा का शिकार होती है। इसमें शादीशुदा और गैर-शादीशुदा सभी महिलाएं शामिल हैं। कई मामलों में घरेलू हिंसा बचपन से ही शुरू हो जाती है। घरेलू हिंसा शारीरिक, मानसिक, या यौन टॉर्चर से जुड़ी हुई हो सकती है। अपने पार्टनर के जरिए या फिर घर के किसी अन्य मेंबर के जरिए हिंसा की जा सकती है। घरेलू हिंसा के लिए कई तरह के नियम बनाए गए हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि अधिकतर महिलाएं इसके मामले में कभी शिकायत नहीं करती हैं। 

घरेलू हिंसा के मामले में अगर शिकायत हो भी जाती है, तो किस तरह से उसे कोर्ट में साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। डोमेस्टिक वायलेंस के बारे में जानने के लिए हमने इंदौर हाई कोर्ट की वकील  जागृति ठाकर से बात की। उनका कहना है कि 10% महिलाएं ही घरेलू हिंसा का केस फाइल करती हैं। साफतौर पर यह एक बड़ा इशू है जिसके बारे में हमें बात करने की जरूरत है। 

क्या है घरेलू हिंसा?

घरेलू हिंसा का मतलब कोई एक पार्टनर दूसरे पार्टनर के ऊपर किसी भी तरह की जोर-जबरदस्ती कर शोषण करे। रिलेशनशिप में किसी तरह का कंट्रोल या आतंक बनाकर रखना भी एक तरह का एब्यूज कहलाता है। यह मानवाधिकारों के खिलाफ होता है। विक्टिम की मानसिक और शारीरिक सेहत पर इसका असर पड़ सकता है। 

domestic violence and its act

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घरेलू हिंसा सिर्फ पार्टनर तक ही सीमित नहीं रहती है। घरेलू हिंसा और यातनाएं अगर परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ की जाए, तो वो भी कानूनी जुर्म ही है। घरेलू हिंसा एक्ट 2005 के सेक्शन 3 के अनुसार, मुल्जिम द्वारा किया कोई भी काम या गलती जिससे शारीरिक, यौन, मौखिक या आर्थिक रूप से पीड़ित को नुकसान पहुंचे वो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के अंतर्गत आता है। इसमें धमकी देना या गलत तरह से व्यवहार करना भी शामिल है। 

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कितनी तरह की होती है घरेलू हिंसा?

जागृति के अनुसार कानूनी तौर पर हिंसा को इन तरीकों से विभाजित किया गया है। 

सेक्सुअल हिंसा : जबरन यौन इच्छा को पूरा करना, यौन संबंधों का दबाव बनाना, गलत तरीके से संबंध बनाना आदि इसमें शामिल होता है। 

फिजिकल हिंसा : शरीर पर किसी भी तरह का घाव या चोट देना, मारना, पीटना, बाल पकड़ना, स्किन को नुकसान पहुंचाना, बीमारी में दवाओं की एक्सेस ना देना भी इसके अंतर्गत आता है। 

मानसिक हिंसा : बार-बार गलत तरीके से पुकारना, गालियां देना, डराना, धमकाना, डॉमिनेटिंग व्यवहार दिखाना, हमेशा बेइज्जती करना भी इसके अंतर्गत आता है। 

आर्थिक हिंसा : जिसमें विक्टिम का किसी तरह का आर्थिक नुकसान हो या फिर उसे गुजारे के लिए पैसे मुहैया ना करवाए जा रहे हों। इसके अंतर्गत महिलाओं को काम करने से रोकना या उसे जबरन घर से निकाल देना भी शामिल है। 

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देश में घरेलू हिंसा के लिए बनाए गए कानून 

वैसे तो महिलाओं के साथ हिंसा कई तरह के अपराधों के अंतर्गत आती है, लेकिन खासतौर पर घरेलू हिंसा के लिए संविधान में तीन एक्ट बनाए गए हैं।  

घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 

शादीशुदा महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे बेहतर यही एक्ट है। इसमें साफ तौर पर चार तरह की घरेलू हिंसा का विवरण है जिसे कई मामलों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत महिलाओं को ना सिर्फ पति, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों से भी बचाव मिलता है। इस एक्ट में सिर्फ शादीशुदा महिलाएं नहीं, बल्कि कुंवारी लड़कियां, लिव-इन पार्टनर्स आदि भी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।  

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दहेज निषेध अधिनियम, 1961 

दहेज के नाम पर प्रताड़ित महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए यह एक्ट बनाया गया था। इस एक्ट के मुताबिक दहेज लेना और देना कानूनी अपराध है। अगर कोई इंसान दहेज मांगता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा, अगर शादी के बाद महिला को दहेज के लिए परेशान किया जाता है, तो उसे प्रोटेक्शन भी दिया जाता है और ससुराल वालों पर केस भी दर्ज होता है। (दहेज के बारे में क्या कहता है कानून)

IPC का सेक्शन 498A 

यह एक क्रिमिनल लॉ है जो क्रूर ससुराल वालों पर लगाया जाता है। इसके अंदर परिवार, रिश्तेदार, पति आदि के खिलाफ केस किया जा सकता है। इस कानून के तहत क्रूरता की परिभाषा भी बताई गई है। इसमें भी फिजिकल और मेंटल हैरेसमेंट शामिल है।  

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कोर्ट में लगते हैं किस तरह के सबूत? 

  • सबसे पहले तो पीड़ित को मेडिकल करवाना होता है। अगर आप उस वक्त शिकायत ना करवा कर बाद में कभी केस फाइल करना चाहें, तो भी हिंसा के बाद किसी सर्टिफाइड डॉक्टर से मेडिकल करवा लें। 
  • विक्टिम और विटनेस का स्टेटमेंट
  • वीडियो टेप, फोटो या टेक्स्ट मैसेज
  • लीगल हॉटलाइन (100 नंबर) पर की गई शिकायत की रिकॉर्डिंग
  • विक्टिम के शरीर की चोट
  • पड़ोसियों या परिवार वालों के स्टेटमेंट भी कोर्ट में सबूत के तौर पर दिखाए जा सकते हैं।  
  • कोर्ट में सबूत दोनों ही पार्टीज से मांगे जाते हैं ताकि केस में कोई झूठा आरोप ना लगाया जा सके।  

 

अगर आपके साथ घरेलू हिंसा हो रही है, तो आप उसकी शिकायत 100 नंबर पर फोन करके कर सकती हैं। ध्यान रखें कि इस तरह की समस्याओं को इग्नोर करना परेशानी को और ज्यादा बढ़ाता है। अगर आपका इस स्टोरी से जुड़ा कोई सवाल है, तो उसके बारे में आप हमसे आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में पूछ सकती हैं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। 

 

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