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Sabarimala Verdict : महिलाओं के प्रवेश का सुप्रीम कोर्ट का फैसला बरकरार, 7 जजों की बैंच को सौंपा गया मामला

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मामला 7 जजों की बैंच को सौंपा, महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का फैसला बरकरार।
Editorial
Updated:- 2019-11-14, 13:20 IST

केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला अब 7 जजों की बैंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, 'महिलाओं का मंदिर में प्रवेश एक बड़ी चर्चा का विषय है, जिसमें मुस्लिम और पारसी महिलाओं को धार्मिक स्थानों पर जाने की स्वीकृति और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन जैसे विषय भी शामिल होने चाहिए। इसमें सभी पार्टियों को अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए।' सर्वोच्च अदालत ने कहा, 'महिलाओं के धार्मिक स्थानों में प्रवेश वर्जित होने का मामला सिर्फ सबरीमाला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह दूसरे समुदायों में भी प्रचलित है।' 

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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर अपने ताजा फैसले में किसी तरह की रोक नहीं लगाई है, जिससे साफ है कि महिलाओं मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। इस फैसले का कार्यान्वयन किस तरह से होना है, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर छोड़ दिया है। फिलहाल भगवान अयप्पा के मंदिर में दो माह के त्योहार की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, जो इसी रविवार से शुरू हो रहा है। मंदिर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चौबंद है। 

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सबरीमाला के फैसले पर 65 पुनर्विचार याचिकाएं दायर हुईं थीं

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर, 2018 को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को स्वीकृति  दी थी। इस फैसले के बाद हिंसक विरोध हुए। अब सुप्रीम कोर्ट 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी। इन याचिकाओं पर जिस संविधान पीठ सुनवाई की, उसमें जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे। संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इसी साल 6 फरवरी को सुनवाई पूरी की थी।

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गौरतलब है कि सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश को रोकने वाली व्यवस्था को गैरकानूनी और भेदभावपूर्ण करार देते हुए 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया था और उन्हें प्रवेश की इजाजत दे दी थी। केरल में इस फैसले को लेकर व्यापक विरोध होने के बाद दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की थी। ये याचिकाएं नायर सर्विस सोसाइटी, मंदिर के तांत्री, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार की तरफ से दायर की गई थीं।

 

बिंदु और कनकदुर्गा बनीं थीं सबरीमाला में प्रवेश करने वाली पहली महिलाएं

बिंदु और कनकदुर्गा ने भारतीय नागरिक के तौर पर मिले अपने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन किए थे। 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की पाबंदी हटाने जाने के बाद इन दोनों महिलाओं ने पहली बार मंदिर में प्रवेश किया था। सूत्रों के अनुसार इन महिलाओं के प्रवेश करने के बाद मंदिर की शुद्धि की गई थी। इससे पहले के मंदिर के 800 साल के इतिहास में यहां किसी महिला ने प्रवेश नहीं किया था।  

 

महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दिलाने के लिए बनी थी 620 किमी लंबी श्रृंखला

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए यहां महिलाएं लगातार प्रयास कर रही हैं। इसी के मद्देनजर महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट का 2018 का फैसला आने से पूर्व 620 किमी लंबी श्रृंखला बनाई थी। यह श्रृंखला कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक बनाई गई थी। इसमें श्रृंखला में करीब 150 से अधिक सामाजिक संगठन भी शामिल हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट इस बार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अपने 2018 के फैसले पर कायम रहती है या फिर अपना रुख बदलती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले के बाद यहां की महिलाएं अपने अधिकारों के लिए पहले से ज्यादा सजग हैं और पिछला फैसला अपने हक में आने के बाद यहां की महिलाएं आत्मविश्वास से भी भरपूर हैं। 

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