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मंदिर में प्रवेश करते समय हमेशा दाहिना पैर पहले अंदर क्यों रखना चाहिए, जानें क्या कहता है शास्त्र

मंदिर में जब भी हम प्रवेश करते हैं उसके कुछ नियमों का पालन जरूरी है। आइए आपको बताते हैं कि आपको हमेशा मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिने पैर को पहले रखने की सलाह क्यों दी जाती है। 
Editorial
Updated:- 2025-11-04, 15:06 IST

हिंदू धर्म में किसी भी परंपरा और नियम के पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अर्थ छिपा होता है। इन्हीं में से एक परंपरा है मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिना पैर पहले रखना। यह नियम केवल एक धार्मिक रीति नहीं है, बल्कि शुभता, ऊर्जा और सकारात्मकता से जुड़ा संकेत भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है, तो वह अपने भीतर की नकारात्मकता को बाहर छोड़कर, ईश्वरीय शक्ति के क्षेत्र में प्रवेश करता है। शास्त्रों में दाहिना पैर सूर्य, अग्नि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है, इसलिए दाहिना पैर पहले रखने का अर्थ है अपने जीवन में प्रकाश और शुभ ऊर्जा का स्वागत करना। यही नहीं अगर शास्त्रों की बात भी करें तो मंदिर प्रवेश के नियमों में से एक यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और हमेशा किसी  भी शुभ काम की शुरुआत में शरीर के दाहिने हिस्से का ही इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। आइए एस्ट्रोलॉजर अमिता रावल से जानें कि मंदिर में प्रवेश करते समय हमेशा दाहिना पैर पहले रखने की सलाह क्यों दी जाती है और इसका महत्व क्या है।

दाहिने पैर का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में शरीर के दाहिने हिस्से को चाहे वह हाथ हो या पैर शुभता का प्रतीक माना जाता है। यह सूर्य, अग्नि और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा हुआ होता है। वहीं बायां पैर चंद्र, शीतलता और स्थिरता का प्रतीक होता है। जब हम किसी भी मंदिर में दाहिना पैर पहले रखते हैं, तो यह इस बात का संकेत होता है कि हम अपने जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का स्वागत कर रहे हैं।

entering temple rules

पौराणिक ग्रंथों जैसे गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब कोई व्यक्ति किसी भी देवस्थान में प्रवेश करता है, तो उसे पहले दाहिना पैर ही पहले रखना चाहिए, क्योंकि यह भगवान के प्रति श्रद्धा और शुभारंभ का संकेत होता है। ठीक वैसे ही जैसे कोई शुभ कार्य शुरू करते समय दाहिना हाथ प्रयोग में लाया जाता है, वैसे ही मंदिर में प्रवेश के समय दाहिना पैर पहले रखना शुभ माना जाता है।

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मंदिर में प्रवेश के समय बायां पैर पहले रखने से क्या होता है

शास्त्रों की मानें तो मंदिर में बायां पैर पहले रखने से आपकी ऊर्जा गलत दिशा में जा सकती है जिसका आपके जीवन में भी दुष्प्रभाव हो सकता है। तो वहीं दाहिना पैर पहले रखने से हमारी सौर ऊर्जा मंदिर की दिव्य ऊर्जा के साथ तालमेल स्थापित करती है। इससे मन और शरीर दोनों में ही सकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं और शरीर में ऊर्जा का प्रवेश होने से मन भी सकारात्मक हो सकता है।

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मंदिर से बाहर निकलते समय बायां पैर पहले बाहर रखें

ऐसा माना जाता है कि जब आ मंदिर में दर्शन के बाद बायां पैर पहले बाहर रखती हैं तो मंदिर से आई सकारात्मक ऊर्जा कहीं बाहर नहीं निकलती है और हमारे शरीर के भीतर ही बनी रहती है। इस प्रकार आपको मंदिर में दर्शन का पूर्ण फल मिलने के साथ शरीर को भी पूर्ण ऊर्जा मिलती है और मन के साथ तन भी पवित्र बना रहता है।

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मंदिर प्रवेश के नियम को लेकर शास्त्रों में कही गई है ये बात

मनुस्मृति और विष्णु पुराण में कहा गया है कि 'दक्षिणां शुभं मान्य' अर्थात शरीर का दाहिना भाग शुभता का द्योतक होता है। इसलिए सभी शुभ कार्यों में, चाहे वह विवाह हो, गृह प्रवेश हो या देव दर्शन, दाहिने भाग यानी दाहिने हाथ या पैर का ही प्रयोग किया जाता है। मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिना पैर पहले रखना भी इसी परंपरा का हिस्सा है। कहा जाता हैं कि जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने अपने दाहिने पैर से आकाश को मापा था। इसी कारण दाहिना पैर शक्ति, सृजन और दिव्यता का प्रतीक बन गया। इसलिए मंदिर में प्रवेश के समय हमेशा इसे आगे रखना ईश्वर की कृपा प्राप्ति का संकेत माना जाता है।

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