इस साल तिल चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी 29 जनवरी को मनाई जाएगी। तिल चतुर्थी के दिन विशेष रूप से गणेश जी के पूजन के लिए जाना जाता है। गणपति पूजन, चंद्रमा को अर्घ्य और तिल का भोग इस दिन खास होता है। गणेश जी को प्रसाद के रूप में तिल का लड्डू, चिक्की और बर्फी समेत कई चीजों को प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है। साथ ही पूजन सामग्री में तिल का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है, चाहे तिल चढाने के लिए हो या अर्घ्य देने के लिए, तिल के बिना संकष्टी चतुर्थी की पूजा अधूरी मानी जाती है। माघ मास में तिल चतुर्थी के अलावा और भी कई त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें तिल का महत्व है जैसे षटतिला एकादशी, मकर संक्रांति, तिल द्वादशी आदि। पुराणों में तिल का विशेष महत्व बताया गया है, तिल से जुड़ी कई कथाओं का उल्लेख हमारे ग्रंथों में किया गया है, तो चलिए जानते हैं कि संकष्टी चतुर्थी के दिन तिल का क्या महत्व है...
माघ के महीने में दो चतुर्थी पड़ती है, दोनों ही भगवान गणेश जी को समर्पित है। माताएं अपने बच्चे और पति के जीवन से संकट को दूर करने के लिए इस व्रत को रखती हैं। इस साल 2024 में 29 जनवरी की सुबह 6.10 मिनट से शुरू होकर 30 जनवरी को सुबह 8.54 मिनट तक रहेगी। इसलिए व्रत करने वाली माताएं और बहनें 29 जनवरी को ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखें और रात में चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर व्रत खोलें।
संकष्टी चतुर्थी में व्रती भगवान गणेश जी के लिए गुड़ और तिल से तिलकुट्टाबनाकर भोग लगाती है, जिससे भगवान व्रती से प्रसन्न होकर उसकी गरीबी और संकट को दूर करते हैं। व्रत कथा के अनुसार माघ मास में तिल का विशेष महत्व है एवं भगवान गणेश को भी तिलकुट्टा या तिल लड्डू बेहद प्रिय है। इसलिए संकष्टी चतुर्थी के तिल के लड्डू का भोग लगाया जाता है साथ ही, रात में अर्घ्य देते वक्त पानी में तिल भी मिलाया जाता है।
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मत्स्यपुराण के अनुसार मधु नाम का एक राक्षस था जिसके साथ भगवान विष्णुका भयंकर युद्ध हुआ। लड़ते-लड़ते भगवान विष्णु के शरीर से पसीना टपकने लगा। पसीने की बूंदों से तिल की उत्पत्ति हुई, मधु राक्षस मारा गया। देवताओं ने भगवान को धन्यवाद कहा और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर कहा कि मेरे शरीर से बहने वाले पसीने से उत्पन्न होने के कारण यह तिल तीनों लोकों की रक्षा करने वाली है। मेरे पूजा में यदि कोई इसका उपयोग करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।
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