
प्रयागराज में साल 2026 में लगने वाला माघ मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। माघ मेले का आयोजन हर साल प्रयागराज में बड़े ही धूमधाम से होता है। माघ मेला भारत के सबसे बड़े वार्षिक आध्यात्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है, जो गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम पर आयोजित होता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु, साधु और तीर्थयात्री प्रयागराज स्थित माघ मेला में हिस्सा लेते हैं और संगम में डुबकी लगाते हैं। हमारे देश की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में से एक माघ मेला का विशेष स्थान है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हर साल आयोजित होने वाला यह विशाल मेला दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है। लाखों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ संगम क्षेत्र की कुछ अलग छवि बनाती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हर साल इतने भव्य समारोह का कारण क्या होता है और यह मेला प्रयागराज में ही क्यों लगता है। आइए जानें माघ मेले का महत्व, इतिहास और इससे जुड़ी कुछ ऐसी बातें जो शायद आम लोगों को नहीं पता होंगे।
अगर हम आध्यात्मिक और ज्योतिष कारणों की बात करें तो माघ मेला केवल प्रयागराज में ही इसलिए आयोजित होता है, क्योंकि यहीं दुनिया का सबसे पवित्र त्रिवेणी संगम मौजूद है। यही वो स्थान है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का एक साथ मिलन होता है।

हिंदू धर्म की मानें तो यह वह स्थान है जहां तप, ध्यान और स्नान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त होता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। प्रयागराज को सदियों से ही ऋषि मुनियों की तपोभूमि कहा जाता है। यहां न जाने कितने मुनियों ने तपस्या की और इस स्थान को पवित्र बनाया। इसी वजह से आज भी प्रयागराज में माघ मेले का आयोजन हर साल होता है।
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प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में हर साल लगने वाला माघ मेला, सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी को समर्पित है। यह एक हिंदू पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो कई यज्ञों, प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों से भरपूर होता है। यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सम्मान करता है। प्रयागराज को यह अवसर तीर्थराज का प्रमुख तीर्थ स्थल बनाता है। 54 दिनों तक चलने वाला यह कल्पवास काल, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग इन चारों युगों के संचयी वर्षों का प्रतीक है। कल्पवासी, जो इस मेले में श्रद्धापूर्वक भाग लेते हैं, इस विश्वास के साथ इन अनुष्ठानों में जुड़े होते हैं कि इस प्रकार की भक्ति से पिछले पापों का नाश हो सकता है और पुनर्जन्म और कर्म के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। महाभारत और कई पुराणों में वर्णित माघ मेले का सार प्रायश्चित और आध्यात्मिक मुक्ति की खोज है। इस दौरान संगम में स्नान करना मोक्ष का मार्ग माना जाता है, जिससे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है।

माघ मेले की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और राक्षसों द्वारा अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन के दौरान, अमृत की चार बूंदें चार अलग-अलग स्थानों पर गिरीं थीं जिसमें हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज शामिल थे। ये स्थान कुंभ मेले के पवित्र स्थल बन गए। इन स्थानों पर कुंभ मेला हर 12 वर्ष में एक बार होता है, वहीं माघ मेला प्रयागराज में हर साल आयोजित किया जाता है।
इस अवधि का महत्व हिंदू मान्यताओं में बहुत ज्यादा मिलता है। ऐसा माना जाता है कि माघ मेले के दौरान संगम में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ मेले का सबसे प्रमुख अनुष्ठान संगम में पवित्र स्नान करना माना जाता है। भक्तों का मानना है कि इन पवित्र जल में स्नान करने से उनकी आत्मा की शुद्ध होती है और जीवन के समस्त पाप धुल जाते हैं। पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और माघी पूर्णिमा जैसे विशेष शुभ दिनों में इस स्थान पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
माघ मेले का एक अनूठा पहलू कल्पवास है। यह एक ऐसा कठोर समय माना जाता है जब तीर्थयात्री पूरे एक महीने तक नदी के किनारे रहकर ध्यान, उपवास और अनुष्ठान करते हैं और तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। कल्पवासी कठोर दिनचर्या का पालन करते हैं जिसमें सूर्योदय से पहले स्नान करना, देवी-देवताओं की पूरी श्रद्धा से पूजा करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और सादा शाकाहारी भोजन करना शामिल होता है।
इस साल माघ मेले का आयोजन 03 जनवरी 2026 में होने जा रहा है और इसका समापन 15 फरवरी को होगा। इस दौरान संगम में स्नान करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
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