Varshita Thatavarthi बॉडी पॉजिटिविटी की ऐसी मिसाल हैं, जो देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जिन्हें बदसूरत कहा गया और जिन्हें सुंदरता के परंपरागत पैमानों में फिट नहीं पाया गया। Varshita Thatavarthi ने HZ से खास बातचीत की और अपने सफर के बारे में बताया। कई जगहों से रिजेक्ट होने के बाद कैसे बनीं वह देश के चर्चित फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी की मॉडल, जानिए उन्हीं की जुबानी-
मेरा नाम Varshita Thatavarthi है और मैं 25 साल की हूं। मैं विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) में पैदा हुई थी और दिल्ली में पली-बढ़ी। मैंने कर्नाटक की मनीपाल यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म और मास कम्यूनिकेशन में डिग्री हासिल की है। मैं मॉडलिंग और एक्टिंग में करियर बनाने के लिए एक शहर से दूसरे शहर गई, हैदराबाद से मुंबई, मुंबई से बैंगलुरु और बैंगलुरु से चेन्नई।
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मैं दिसंबर 2017 से फिल्मों में काम पाने के लिए कोशिशें कर रही थी। अप्रैल 2018 को एक दिन किसी ने मुझे ताज कोरोमंडल में चल रही सब्यसाची ज्वैलरी एक्जिबिशन के बारे में बताया। सब्यसाची मुखर्जी ने अपना ज्वैलरी कलेक्शन शोकेस करने का काम उस वक्त शुरू ही किया था। इसीलिए मुझे वहां जाने का आइडिया एक्साइटिंग लगा। मैंने तुरंत उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट लिया और उनका कलेक्शन देखने के लिए निकल पड़ी।
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मैं एक्जिबिशन में अपनी एक दोस्त के साथ पहुंची और वहीं सब्यसाची से मेरी पहली मुलाकात हुई। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी। मैं कई साल से उनकी और उनके ब्रांड की प्रशंसक रही हूं और अचानक उनसे मुलाकात हो जाने पर मुझे घबराहट महसूस होने लगी। लेकिन उनके स्टाफ ने मुझे कंफर्टेबल फील कराया। उसी दौरान सब्यसाची मेरे पास आए और कहा कि मैं खूबसूरत हूं। उनकी बात सुनकर मुझे खुशी हुई। मुझे लगा कि अगर सब्यसाची सोचते हैं कि मैं खूबसूरत हूं तो मैं जरूर खूबसूरत होऊंगी।
मैंने एक जोड़ा इयरिंग्स खरीदीं और सब्यसाची के एक एसिस्टेंट से पूछा कि क्या उनके साथ एक तस्वीर क्लिक कराई जा सकती है। सब्यसाची इसके लिए राजी हो गए। मुझे खुशी हुई कि मैंने उनके साथ तस्वीर खिंचाई और वह तस्वीर मैंने तुरंत अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दी। इसके बाद मैं इस बात को लगभग भूल ही गई थी। दो महीने बाद जून में उनकी टीम ने मुझसे संपर्क किया और पूछा कि क्या मैं उनके साथ कोलकाता में ट्रायल शूट करना चाहूंगी।
मैं इसके लिए तुरंत राजी हो गई और कोलकाता पहुंच गई, जहां सर (सब्यसाची) से मेरी मुलाकात हुई। वहां मैंने ब्राइडल शूट कराया (बाद में उसकी तस्वीरें वुमन्स डे पर पोस्ट की गईं।), इसके बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। मैं सब्यसाची के मुंबई में आयोजित हुए रनवे शो का भी हिस्सा रही और हाल ही में मैं उनके विंटर फॉल ब्राइडल कलेक्शन चारबाग में भी शामिल हुई।
शूट से पहले हो गई थी नर्वस
मैं शूट से पहले काफी नर्वस थी क्योंकि दूसरी सभी मॉडल्स फिट थीं और फेमस भी थीं। मैं प्लस साइज की थी। इस यह सोचकर हैरान होने लगी कि क्या मैं उन्हें मैच कर पाऊंगी। लेकिन सर और उनकी टीम ने मुझे बहुत कंफर्टेबल फील कराया। उनका सहज व्यवहार मेरे दिल को छू गया। अगर ऐसी टीम हो जो आपकी शख्सीयत को अहमियत दे और जो आपकी केयर करे तो बहुत इंस्पिरेशन मिलती है। इसके बाद पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं होती।
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सब्यसाची के साथ काम करना किसी सपने के सच होने जैसा था, इसीलिए मैं इसके बारे में कुछ सोच नहीं रही थी। मैं इस मौके के लिए उनकी आभारी थी और अपनी तरफ से बेस्ट परफॉर्मेंस देना चाहती थी।
मेरी बहुत प्रशंसा हुई और मेरा इनबॉक्स मैसेज से भर गया, मुझे कुछ लोग यहां-वहां पहचानने लगे, लेकिन मैं अभी भी वैसी ही हूं। मेरे दोस्त मुझे वैसे ही ट्रीट करते हैं, जैसे कि पहले करते थे। मैं अभी भी ट्रैवल करती हूं, पढ़ती हूं और वो सभी काम करती हूं जो मैं पहले कर रही थी।
हम खुद को कैसे लेते हैं, मायने रखती है ये बात
हम सभी जानते हैं कि फैशन मैगजीन्स और दुनियाभर के रनवे पर बिल्कुल दुबली-पतली मॉडल्स ने परचम लहराया है। ऐसी इंडस्ट्री में अपने लिए जगह बनाना मेरे लिए आसान नहीं था। ये जरूर है कि अमेरिका में एश्ले ग्राहम जैसी कुछ मॉडल्स कामयाब रही हैं, जिन्होंने अपनी क्षमता साबित करने के लिए काफी संघर्ष किया। लेकिन इस पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अगर भारत की बात करें तो यहां मॉडल्स के साइज 2 होने की उम्मीद की जाती है, जबकि सामान्य तौर पर भारतीय महिलाएं साइज 16 की हैं। फिर भारतीय फैशन इंडस्ट्री किसे रीप्रजेंट कर रही है?
मुझे यह बात बुरी लगती है जब लोग मुझे प्लस साइज मॉडल कहकर बुलाते हैं, क्योंकि यह प्लस साइज वाली महिलाओं को अलग तरह से कैटेगराइज करता है, जबकि पतली मॉडल्स को मॉडल कहा जाता है।
Unconventional Model होने के बारे में ये कहती हैं Varshita
ऐसी फैशन इंडस्ट्री, जहां साइज 2 से ऊपर किसी भी चीज को नकार दिया जाता है, में खुद को स्थापित करना बहुत धैर्य का काम है और इसमें काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। मुझे 5 सालों तक रिजेक्ट किया गया और इसकी वजह यही बताई गई कि मेरा शरीर भारी है और मेरा रंग सांवला है। मैंने कई जगह धक्के खाए, क्योंकि कोई भी एजेंसी मुझे नहीं लेना चाहती थी क्योंकि मैं सुंदरता के परंपरागत पैमानों में फिट नहीं होती थी। हालांकि फैशन इंडस्ट्री के पास वो सारी वजहें हैं, जिनकी खातिर फैशन इंडस्ट्री को स्मॉल साइज के लोगों को लेना चाहिए।
मुझे बहुत संघर्ष करने के बाद यह बात समझ में आई कि प्लस साइज की महिलाओं को उस तरह के मौके नहीं मिलते, जैसे कि स्मॉल साइज वाले उनके साथियों को मिलते हैं। इसीलिए मुझे बहादुर होने की जरूरत थी और इन मुश्किलों का डटकर सामना करने की जरूरत थी।
महिलाओं को करना चाहती हूं इंस्पायर
ऐसी इंडस्ट्री जो साइज के आधार पर लोगों में भेद करती है, उसमें टिकना मेरे या मेरे जैसी किसी और के लिए आसान नहीं है। लेकिन सब्यसाची के साथ मेरे कैंपेन ने उन सभी स्टीरियोटाइप्स को तोड़ा है, जिन्हें कभी फैशन इंडस्ट्री ने खड़ा किया था। मुझे दुनियाभर से महिलाओं के मैसेज मिलते हैं, जो मुझे थैंक्स कहती हैं और इस बदलाव का हिस्सा बनने के लिए मेरी सराहना करती हैं। मैं सभी बड़े फैशन डिजाइनर ब्रांड्स और ब्यूटी ब्रांड्स के साथ काम करना चाहती हूं ताकि मैं बॉडी पॉजिटिविटी के बारे में जागरूकता फैला सकूं। मैं बड़ी फैशन मैगजीन्स के कवर पर दिखना चाहती हूं ताकि मैं दुनिया को यह दिखा सकूं कि मेरी जैसे महिला भी इस मल्टी बिलियन डॉलर इंडस्ट्री का हिस्सा हो सकती है। मैं चाहती हूं कि हर महिला मेरी तस्वीर देखे और अपने लिए सिक्योर महसूस करे और यही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद है।
ओवरसाइज और सांवली होने के ऐसे रहे अनुभव
मैं उत्तर भारत में बड़ी हुई, जहां मेरे आसपास के लोगों ने मेरे लुक्स के आधार पर मुझे जज किया। स्कूल में भी मेरी अक्सर बुलींग होती थी, क्योंकि मैं डार्क दिखती थी और मुझे अपने जैसी सांवली लड़कियों के साथ बिठाया गया था। इसीलिए मुझे पता है कि लुक्स को लेकर जज किए जाने पर कैसा फील होता है। भारत में ऐसी धारणा बनाई गई है कि महिलाएं गोरी हों और पतली हों तभी वे सबसे सुंदर हैं।
90 के दशक में बड़े होना मेरे लिए आसान नहीं था और मुझे लगता है कि मेरे जैसी और महिलाओं का अनुभव भी कुछ ऐसा ही होगा। उस समय में कोई इंटरनेट नहीं था और ना ही खुद को और खुद के अपीयरेंस को सेलिब्रेट करने का कोई जरिया था। तब कोई बियोंसे नहीं थीं, जिसे देखकर इंस्पिरेशन ली जा सके। तब सिर्फ ब्रिटनी स्पीयर्स थीं, जो मेरे जैसी बिल्कुल नहीं दिखती थीं।
जब मैं दक्षिण भारत अपने दादा-दादी के पास गई तो मैंने देखा कि हर तरफ महिलाएं फेयर एंड लवली और पोंड्स पाउडर लगा रही थीं। मुझे लगा कि स्कूल में लड़कियां सही कहती थीं और मुझे अपने अपीयरेंस में बदलाव करना चाहिए। मुझे इस बात का यकीन हो चला था कि मैं बदसूरत हूं जब तक कि मैंने खुद को बदल नहीं लिया।
रिजेक्ट किए जाने के बाद भी डटी रहीं
मैं दक्षिण भारत में 5 सालों तक फिल्मों के लिए ट्राई करती रही। जिन डायरेक्टर और प्रोड्यूसर से मैं मिली, उन सभी ने गोरा होने और पतले दिखने की बात कही थी। एक बार मुझे एक पत्रकार दोस्त ने सुझाव दिया कि मुझे अपनी तेलुगु मातृभाषा के बारे में नहीं बताना चाहिए, क्योंकि मुंबई और दिल्ली की लड़कियों को ज्यादा मौके मिलते हैं, जिन्हें ये भाषा नहीं आती है। मैं इस बात से टूट गई। मुझे हैरानी थी कि जब मुझे भाषा आती है, कम ट्रेनिंग की जरूरत है और जब मैं वास्तव में दक्षिण भारतीय जैसी दिखती हूं तो मेरे लिए मौके कम क्यों हैं। यह सबकुछ मेरी समझ से बाहर था, लेकिन इसके बाद भी मैं फिल्मों में काम के लिए ट्राई करती रही, क्योंकि मुझे यकीन था कि कहीं तो कोई होगा, जो मुझे स्वीकार करेगा और जैसी मैं हूं, उसके लिए मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ाएगा। और इसके 5 सालों बाद सब्ससाची से मेरी मुलाकात हुई।
शुरू की बदलाव की बयार
बहुत सी महिलाएं मुझे मैसेज करती हैं कि मैंने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है और मेरी तस्वीरें देखकर उनका अपने शरीर पर कॉन्फिडेंस बढ़ा है। मुझे लगता है कि मैंने सबसे बड़ी चुनौती का सामना किया है। मैं यही कहूंगी कि खूबसूरती आपके बाहरी अपीयरेंस से नहीं, बल्कि आपके व्यक्तित्व से परिभाषित होती है। मैं चाहूंगी कि पुरुष और महिलाएं जैसे भी हैं, उन्हें खुद को स्वीकार करना चाहिए और अपनी यूनीकनेस को सेलिब्रेट करना चाहिए।