एक नहीं, तीन बार बदला जा चुका है प्रयागराज का नाम...जानें कौन और कैसे करता है किसी शहर का नेम चेंज

क्या आप जानती हैं प्रयागराज का एक बार नहीं बल्कि तीन बार नाम बदला जा चुका है? क्या आप जानती हैं इलाहाबाद से पहले प्रयागराज का नाम क्या था? अगर नहीं, तो आइए यहां डिटेल से जानते हैं प्रयागराज के नाम बदलने का इतिहास और कौन-कैसे किसी शहर का नाम बदलता है।
prayagraj name change history

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का उत्सव चल रहा है। महाकुंभ के उत्सव ने पूरी दुनिया का ध्यान प्रयागराज की तरफ खींचा है। यही वजह है कि हर किसी की दिलचस्पी इस समय प्रयागराज के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास को जानने में बनी हुई है। यह तो सभी जानते हैं कि प्रयागराज में गंगा-यमुना और सरस्वती का संगम होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं यह शहर केवल धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक मायनों में भी खूब अहम रहा है। यही वजह थी कि समय के साथ-साथ इसका कई बार नाम बदला है।

प्रयागराज का एक बार नहीं, बल्कि कई बार नाम बदला है और इसे कई नामों से जाना भी गया है। जहां एक तरफ प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ यहां हम इस आर्टिकल में जानते हैं कि इस शहर का नाम कब-कब बदला है।

प्रयागराज का नाम पहले क्या था?

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ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले प्रयागराज का नाम प्रयाग था। प्रयाग का मतलब है तीन नदियों का संगम। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि प्रयाग में गंगा नदी, यमुना और अदृश्य रूप में सरस्वती नदी का संगम होता है। शायद इसी वजह से इसका नाम प्रयाग रखा गया था।

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अकबर ने बदला प्रयाग का नाम!

इतिहासकारों और पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी के मुताबिक, साल 1575 में मुगल शासक अकबर ने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबास रखा था। मुगलों के काल में प्रयागराज को कभी इलाहाबास, कभी अलाहाबाद तो कभी इलाहाबाद का नाम मिला। मुगल सत्ता के कमजोर होने और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इलाहाबाद ही औपचारिक नाम बन गया। लेकिन, साल 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद नाम बदलकर एक बार फिर ऐतिहासिक नाम प्रयागराज रख दिया।

प्रयागराज का नाम एक लंबे समय तक इलाहाबाद रहा है, यही वजह है कि आज भी कुछ लोग और क्षेत्रों में इसे अलाहाबाद या इलाहाबाद कहा जाता है। इस शहर में उत्तर प्रदेश राज्य का हाईकोर्ट भी है, जिसे अलाहाबाद हाईकोर्ट के नाम से जाना जाता है।

कौन और कैसे बदलता है किसी शहर का नाम?

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प्रयागराज की तरह किसी भी शहर या जगह का नाम कोई एक शख्स नहीं बदलता है। जी हां, किसी शहर का नाम बदलने के लिए विधानसभा में बिल लाया जाता है और उस पर विधायकों का मत लिया जाता है। विधायकों का मत जिस भी पक्ष में ज्यादा होता है, उस अनुसार बिल को आगे बढ़ाया जाता है। अगर नाम बदलने के बिल के पक्ष में ज्यादा विधायक नहीं होते हैं, तो उसे कैंसिल कर दिया जाता है। वहीं, अगर बिल के पक्ष में ज्यादातर लोग होते हैं तो शहर या जगह का नाम बदला जाता है। (शहर का नाम बदलने पर खर्च होते हैं लाखों)

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वहीं, अगर किसी राज्य का नाम परिवर्तित किया जाता है, तो बिल संसद में पेश होता है। भारत के संविधान के आर्टिकल 3 और 4 के तहत राज्य का नाम परिवर्तित किया जा सकता है। हालांकि, नाम बदलने के पीछे की वजह, सांस्कृतिक, राजनीतिक और अन्य सभी चीजों पर भी ध्यान दिया जाता है। राज्य का नाम बदलने के लिए संसद में राष्ट्रपति की रिकमेंडेशन पर बिल पेश किया जाता है। जहां चर्चा के बाद मत लिया जाता है। मत लेने के बाद बिल को अप्रूवल के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति जब अप्रूवल दे देते हैं, तो बिल को पास कर दिया जाता है और वह लॉ यानी कानून बन जाता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में जरूरत के अनुसार आम बदलाव हो सकते हैं।

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Image Credit: Herzindagi

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