हमारा देश भारत न जाने कितनी विविधताओं को अपने आप में समेटे हुए है। विभिन्न संस्कृतियों का खजाना और विभिन्न कलाओं से ओत प्रोत भारत देश न सिर्फ यहां बल्कि पूरे विश्व में अपनी खूबियों के लिए जाना जाता है। भारत की खूबियों में से एक हैं इसकी नदियां। वास्तव में समय ने न जाने कितनी बार रुख बदला लेकिन नदियों की दिशा नहीं बदली। भारत की पवित्र नदियां सदियों से अपने जल से जन मानस को पवित्र करती जा रही हैं और लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती जा रही हैं।
भारत की ऐसी ही सबसे पवित्र नदियों में से एक है गंगा नदी। शिव की जटाओं से निकलकर हिमालय पर्वत की चोटियों तक गंगा नदी का प्रवाह कुछ अनोखी कहानी प्रस्तुत करता है। यह एक ऐसी नदी है जिसमें स्नान मात्र से लोगों का शरीर पवित्र हो जाता है। इस नदी का पवित्र जल घर के हर एक कोने को पवित्र करता है और अपनी अनोखी विशेषताओं की वजह से कभी खराब नहीं होता है। पौराणिक कथाओं में गंगा नदी के उद्गम की कई कहानियां प्रचलित हैं। आइए नई दिल्ली के पंडित एस्ट्रोलॉजी और वास्तु विशेषज्ञ, प्रशांत मिश्रा जी से जानें पुराणों के अनुसार गंगा नदी के उद्गम स्थान के बारे में और इससे जुड़ी कुछ धार्मिक बातों के बारे में।
पवित्र ग्रंथों में गंगा का जिक्र
महाभारत में वर्णित कथाओं में गंगा को देवी गंगा के रूप में माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी माता मैना और हिमालय की पुत्री थीं। गंगा, जाह्नवी और भागीरथी के नाम से पुकारी जाने वाली गंगा नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। यह मात्र एक जल का स्रोत नहीं है, बल्कि भारतीय मान्यताओं में यह नदी पूजनीय भी है जिसे ‘गंगा मां’ अथवा ‘गंगा देवी’ के नाम से सम्मानित किया जाता है। पुराणों के अनुसार गंगा पृथ्वी पर आने से पहले सुरलोक में रहती थी। फिर गंगा नदी ने पर्वतराज हिमालय और सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना के घर में कन्या रूप में जन्म लिया और उनका पृथ्वी पर अवतरण हुआ। रानी मैना की दो रूपवती एवं सर्वगुण सम्पन्न कन्याएं थीं, जिनमें से बड़ी पुत्री गंगा और छोटी उमा थीं। एक बार सुरलोक में रहने वाले देवताओं की दृष्टि गंगा पर पड़ी और विश्व कल्याण हेतु उसे अपने साथ स्वर्गलोक ले गए।
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पुराणों के अनुसार गंगा की उत्पत्ति
हिंदू पौराणिक कथाओं में गंगा नदी का निर्माण तब हुआ जब भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अपने अवतार में ब्रह्मांड को पार करने के लिए दो कदम उठाए। दूसरे चरण में विष्णु के बड़े पैर के अंगूठे ने गलती से ब्रह्मांड की दीवार में एक छेद बना दिया और इसके माध्यम से मंदाकिनी नदी का कुछ पानी गिरा दिया। इस बीच राजा भगीरथ यह पता लगाने के लिए चिंतित थे कि राजा सगर के 60,000 पूर्वजों को वैदिक ऋषि कपिला को भस्म कर दिया गया था। इन पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति के लिए भगीरथ ने कपिला से पूछा कि यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है। उनकी पवित्रता अउ उध्दार का एक मात्र मार्ग गंगा का जल ही था। उस समय भगीरथ की धर्मपरायणता से प्रसन्न होकर देवता, गंगा को पृथ्वी पर उतारने के लिए सहमत हुए, जहां वह हजारों लोगों को पवित्र कर सकती थीं। इस प्रकार गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ।
शिव की जटा में कैसे आईं गंगा नदी
भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। जिसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू की। गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं लेकिन उन्होंने कहा कि यदि वो स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और संपूर्ण पृथ्वी पाताल में चली जाएगी। यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। उस समय गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। इसलिए भागीरथ ने भगवान शिव की उपासना शुरू कर दी। उनकी प्रार्थना से शिव जी प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने अपनी इच्छा शिव जी के समक्ष रखी और जैसे ही गंगा स्वर्ग से उतरीं शिव जी ने उनका घमंड तोड़ने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया। उसके बाद अत्यंत आग्रह के बाद शिव जी ने गंगा को एक पोखर में छोड़ दिया जहां से वो सात धाराओं में बंट गईं। तभी से गंगा का एक हिस्सा शिव की जटाओं से निकलता है।
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गंगा नदी का इतिहास
यदि पुराणों की बात न करें तब गंगा नदी का उद्गम स्थान उत्तराखंड है। गंगा नदी उत्तराखंड स्थित उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। जहां यह मुख्य रूप से भारत में बहती हुई नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं के भीतर भी होती है। वहीं भारत के राज्यों में गंगा नदी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के राज्यों से होकर बहती है। सभी नदियों में गंगा नदी सबसे पवित्र मानी जाती है क्योंकि इसका पानी कभी खराब नहीं होता है साथ ही, अन्य सभी नदियों की तुलना में गंगा में ऑक्सीजन का स्तर 25 फीसदी ज्यादा होता है। प्रसिद्ध कुंभ का मेला भी 12 वर्षों से गंगा के किनारे लगता है।
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इस प्रकार पवित्र गंगा नदी का पौराणिक महत्व बहुत अधिक है और इसकी कहानी भी बहुत अनोखी है जो इसे सबसे ज्यादा पवित्र नदियों की श्रेणी में सबसे ऊपर रखती है।
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Image Credit: freepik and wikipedia
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