दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला ओणम 10 दिनों तक चलने वाला सबसे प्रमुख त्योहार है। मलयालम कैलेंडर के हिसाब से ओणम का पर्व चिंगम माह में आता है और ये सबसे पहला माह माना जाता है। ये त्योहार अगस्त-सितंबर के बीच में आता है।
इस दिन ऐसी मान्यता है कि ओणम के दिन राजा महाबली अपनी समस्त प्रजा से मिलने के लिए आते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और राजा बलि की कथा पढ़ने की मान्यता प्रचलित है।
भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर दो पग में दो लोक को नाप दिए थे। इस कथा का संबंध राजा बलि की पुत्री रत्नमाला से भी है। तो आइए इस लेख में जानते हैं कि राजा बलि की पुत्री अगले जन्म में एक दिन के लिए भगवान कृष्ण की मां कैसे बनी।
जब राजा बलि की पुत्री अगले जन्म में एक दिन के लिए बनी भगवान श्री कृष्ण की मां
आपको बता दें, भगवान श्रीकृष्ण (भगवान श्री कृष्ण मंत्र) ने जिस पूतना राक्षसी का वध किया था। वह पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी। रत्नमाला पिछले जन्म में एक राजकन्या थी। एक दिन जब राजा बलि के घर भगवान विष्णु पधारे थे। तब उनके सुंदर, कोमल और मनमोहक छवि को देखकर राजकुमारी रत्नमाला के मन में मोह और ममता जाग उठा था। उन्हें देखकर रत्नमाला सोच में पड़ गई थी। वह मन में सोचने लगी कि काश उनका भी एक ऐसा ही पुत्र होता, जिसे वह अपने हृदय से लगाकर दूध पिलाती। रत्नमाला के मन में चल रहे इस भाव को भगवान वामन ने जान लिया था।
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जिसके बाद उन्होंने रत्नमाला को तथास्तु बोला। लेकिन उसके बाद भगवान वामन राजा बलि का अहंकार को दूर करने के लिए भूमि नाप दी थी। इससे राजा बलि सब समझ गए थे और उन्हें अपनी गलती का अहसास भी हो गया था। फिर उन्होंने भगवान वामन से माफी मांगी। यह सभी दृश्य को रत्नमाला अपनी आंखों से देख रही थी और उसे बाद में लगा कि यह उसके पिता का घोर अपमान है। यह सबकुछ देखकर वह बहुत क्रोधित हो गई थी और भगवान वामन को मन में बुरा-भरा बोलन लग गई। रत्नमाला मन में कहने लगी कि अगर ये पुत्र होता, तो मैं इसे विष दे देती। फिर इस भाव को भगवान वामन जान लिए और तथास्तु कह दिया।
इस प्रकार हुई रत्नमाला की इच्छा पूरी
भगवान वामन के द्वारा तथास्तु कहने के कारण रत्नमाला अगले जन्म में पुतना राक्षसी के रूप में जन्म लिया। रत्नमाला अगले जन्म में मथुरा में कंस की दासी बनी और गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना को भेज दिया। पूतना गोकुल पहुंचकर भेष बदलकर एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया।
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वह भगवान श्रीकृष्ण के पास गई और उन्हें दुग्धपान कराने लग गई। भगवान श्रीकृष्ण ने तभी पूतना को पहचान लिया और उसका वध कर दिया। तो इस प्रकार पूतना की भगवान विष्णु (भगवान विष्णु मंत्र) की दुग्ध और विष पिलाने की इच्छा पूरी हुई। भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना को जन्म और मरण के बंधन से मुक्त कर दिया।
इस प्रकार राजा बलि की पुत्री एक दिन के लिए भगवान श्री कृष्ण की मां बनीं। अगर आपको हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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