Mahalakshmi Vrat 2021: जानें कब से शुरू हो रहा है महालक्ष्मी व्रत, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्त्व

आइए जानें कब से शुरू हो रहा है महालक्ष्मी व्रत, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका क्या महत्त्व है। 

maha laksmi vrat
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हिन्दू धर्म में हर एक व्रत और त्योहार का विशेष महत्त्व है। इन त्योहारों में अलग -अलग भगवानों और देवी देवताओं का पूजन किया जाता है। ऐसे ही व्रत त्योहारों में से एक है भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी के दिन से आरम्भ होने वाला श्री महालक्ष्मी व्रत। यह व्रत भाद्रपक्ष की अष्टमी को शुरू होकर सोलह दिनों तक चलता है और इस व्रत में मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं। मान्यतानुसार इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन किया जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत में 16 दिनों तक विधि-विधान से पूजन करने से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को इस व्रत का समापन किया जाएगा। आइए नई दिल्ली के पंडित एस्ट्रोलॉजी और वास्तु विशेषज्ञ, प्रशांत मिश्रा जी से जानें कि इस साल कब से शुरू हो रहा है महालक्ष्मी का व्रत और इसका क्या महत्त्व है।

महालक्ष्मी व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त

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  • महालक्ष्मी व्रत आरम्भ,13 सितम्बर, सोमवार
  • महालक्ष्मी व्रत समापन 28 सितम्बर, मंगलवार,
  • भाद्रपक्ष की अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 13 सितम्बर 2021 को सायं 03:10 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त - 14, सितम्बर को 01:09 बजे

महालक्ष्मी व्रत का महत्त्व

ऐसी मान्यता है कि जिस दिन महालक्ष्मी व्रत आरम्भ होता है, वह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन दूर्वा अष्टमी का व्रत भी रखा जाता है। इस दिन को ज्येष्ठ देवी पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके अन्तर्गत निरन्तर त्रिदिवसीय देवी पूजन किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और संपदा की प्रात्ति के लिए किया जाता है। इस दिन लोग धन-संपदा की देवी माता लक्ष्मी (मां लक्ष्मी की पूजा में ध्यान रखें ये बातें) को प्रसन्न करने का पूरा प्रयास करते हैं। महालक्ष्मी का व्रत करने से व्यक्ति को सुख, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

महालक्ष्मी व्रत कथा

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इस व्रत की एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह हर दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु का अराधना करता था। एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से एक वरदान मांगने को कहा। तब ब्राह्मण ने अपने घर में मां लक्ष्मी का निवास होने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग बताया। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है और वह यहां आकर उपले बनाती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना वह मां लक्ष्मी हैं। यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह ही मंदिर के पास बैठ गया। लक्ष्मी मां उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर माता लक्ष्मी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी लेकिन तुम्हें पहले महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिन तक व्रत करने और 16 वें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं। तभी से यह व्रत चलन में आया।

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कैसे करें व्रत का पूजन और उद्यापन

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  • इस व्रत के दिन स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  • मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग के रेशमी वस्त्रों से सुसज्जित करें ।
  • माता लक्ष्मी को चन्दन, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित करें।
  • पूजा में महालक्ष्मी को कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाएं।
  • ऊँ ह्रीं श्रीं नमः या ऊ श्रीं श्रियै नमः, इस मंत्र का कम से कम १०८ बार रोज जप करें।
  • इसके बाद सपरिवार महालक्ष्मी की आरती करें।
  • पूजा के दौरान आपको महालक्ष्मी मंत्र या बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
  • व्रत के उद्यापन के आख‍िरी द‍िन यानी 16 वें दिन की पूजा के बाद माता की मूर्ति को विसर्जित करें।
  • संभव हो तो उद्यापन वाले दिन इन में से जिस मंत्र का जप किया है, उसकी एक माला का हवन करें।
  • वैसे इस व्रत के उद्यापन में हाथी का पूजन किया जाता है, यदि संभव न हो तो माता लक्ष्मी जी का ऐसा चित्र लें जिसमें हाथी भी हो।
  • उद्यापन वाले दिन यानी कि 16 वें दिन महालक्ष्मी व्रत का समापन होता है।
  • मान्यतानुसार उस दिन पूजा में माता लक्ष्मी की प्रिय वस्तुएं रखी जाती हैं।
  • उद्यापन के समय 16 वस्तुओं का दान करें। माता को श्रृंगार सामग्री सहित सोलह वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। इस प्रकार यह व्रत संपन्न हो जाता है।

हिन्दुओं में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्त्व है इसलिए इसे श्रद्धानुसार करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

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Image Credit: freepik and wall paper cave.com

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