आजकल बदलती जीवनशैली, खानपान और हार्मोनल बदलावों के कारण बहुत-सी लड़कियों को 10 साल से पहले ही पीरियड्स शुरू हो रहे हैं। यह स्थिति पैरेंट्स के लिए चौंकाने वाली हो सकती है, क्योंकि इस उम्र में बच्चियां शारीरिक और मानसिक रूप से इतनी परिपक्व नहीं होतीं कि वे इस बदलाव को खुद से समझ सकें। ऐसे में माता-पिता की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। आइए, गुड़गांव के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की डॉ. चेतना जैन से जानते हैं कि इस स्थिति में कैसे अपनी बेटी को समझदारी और संवेदनशीलता से सपोर्ट करें।
सबसे पहले ज़रूरी है कि आप बेटी से खुलकर बात करें। जब वह 7-8 साल की हो जाए, तभी से उसे शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में धीरे-धीरे जानकारी देना शुरू करें। उसे बताएं कि पीरियड्स आना एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है, जिससे हर लड़की गुजरती है। डराने या शर्मिंदगी देने की बजाय यह समझाएं कि यह एक स्वस्थ शरीर का संकेत है।
10 साल से कम उम्र की बच्चियां इस फेज़ में घबरा सकती हैं या उन्हें खुद को अलग महसूस हो सकता है। उनके मन में कई सवाल और डर हो सकते हैं- जैसे मुझे क्या हो रहा है, क्या मैं बीमार हूं आदि ऐसे की प्रश्न उनके मन में उठ सकते हैं। ऐसे में, उन्हें भावनात्मक सुरक्षा देना बहुत ज़रूरी है। उन्हें बताएं कि वे अकेली नहीं हैं और मां-बाप उनके साथ हैं।
बेटी को सिखाएं कि सैनिटरी पैड कैसे इस्तेमाल किया जाता है, कितनी बार बदलना चाहिए, हाइजीन कैसे रखना है,आदि की जानकारी आपको देनी होगी। पहली बार में उसे मदद की जरूरत होगी, इसलिए उसके साथ धैर्य और संवेदना के साथ पेश आएं।
अक्सर समाज में पीरियड्स को लेकर शर्म या वर्जनाएं जुड़ी होती हैं, जैसे कि- इस दौरान पूजा न करें, खेलों से दूर रहें आदि मिथ से उन्हें दूर रखने की कोशिश करें। इस उम्र में बच्ची को इन बातों से डराने के बजाय उसे सही वैज्ञानिक जानकारी दें और उसे यह समझाएं कि वह अपनी सामान्य दिनचर्या जारी रख सकती है।
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अगर बच्ची को स्कूल में पीरियड्स होते हैं, तो वह घबरा सकती है। इसलिए टीचर या स्कूल काउंसलर को सूचित करें ताकि वे उसे सही समय पर सपोर्ट कर सकें। बच्ची को भी बताएं कि वह किसी महिला शिक्षक की मदद ले सकती है।
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जल्दी पीरियड्स आने के पीछे पोषण और हार्मोनल असंतुलन भी हो सकता है। ऐसे में उसकी डाइट में आयरन, कैल्शियम, विटामिन D, फाइबर और पानी की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। अगर जरूरत हो तो डॉक्टर या पीडियाट्रिशन से सलाह लें।
इस बदलाव को बोझ या समस्या न बनाएं, बल्कि बेटी को सशक्त बनाएं कि वह अपने शरीर को समझे, स्वीकार करे और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े। आप ही उसके पहले रोल मॉडल हैं।
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