आज के समय में बच्चों को भोजन करने से लेकर खेलने तक हर एक गतिविधि के लिए फोन या टीवी की जरूरत होती है। बिना फोन या टीवी देखे बच्चे खाना भी नहीं खा पाते हैं। ऐसे में, माता-पिता भी मजबूर होकर भोजन की थाली के पास मोबाइल में कोई वीडियो प्ल करके रख देते हैं, ताकि बच्चा कुछ तो खाए, लेकिन यही आदत धीरे-धीरे बच्चे को स्क्रीन का आदी बना रही है, जो भविष्य में उसे गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकती है। कहीं न कहीं इस वजह से भी बच्चे को दोस्तों की जरूरत भी खत्म हो गई है। वे मोबाइल यूज करने को ही बेस्ट ऑप्शन मानने लगे हैं।
अगर आपका बच्चा भी 6 साल से ज्यादा बड़ा हो गया है और अब भी वह दूसरे बच्चों के साथ खेलने में रुचि नहीं दिखाता है, तो इसे हल्के में लेना सही नहीं है। यह व्यवहार किसी गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है, जिसे समय पर पहचानना और उसका समाधान करना बेहद जरूरी है। बच्चों का सामाजिक मेलजोल उनके मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। दोस्तों के साथ खेलना उन्हें सहयोग, सहानुभूति, बातचीत और समस्या-समाधान जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल सीखने में मदद करता है।
बच्चा अगर दोस्तों के साथ खेलने में दिलचस्पी न दिखाए तो क्या-क्या परेशानियां हो सकती हैं?
अगर आपका बच्चा लगातार अकेले रहना पसंद करता है और दूसरे बच्चों के साथ खेलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है, तो यह गंभीर समस्याओं का संकेत हो सकता है।
सामाजिक चिंता विकार (Social Anxiety Disorder)- इस स्थिति में बच्चे को सामाजिक स्थितियों में अत्यधिक डर और बेचैनी महसूस होती है, जिसके कारण वह दूसरों से दूर रहने की कोशिश करता है।
वर्चुअल ऑटिज्म (Virtual Autism Disorder)- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को सामाजिक संपर्क और बातचीत में कठिनाई होती है। यह स्थिति मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अत्यधिक उपयोग के कारण हो सकती है, जिससे बच्चों में सामाजिक कौशल का विकास बाधित होता है।
डिप्रेशन- उदासी और निराशा की भावना के कारण बच्चा दूसरों से दूरी बना सकता है। यदि बच्चा स्कूल या पड़ोस में बदमाशी का शिकार हो रहा है, तो वह डर और असुरक्षा के कारण दूसरों से कट सकता है।
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ऐसे बच्चों के साथ कैसे डील करें?
स्क्रीन टाइम सीमित करें- सबसे पहले स्क्रीन टाइम को सीमित करें। सीमित इसलिए क्योंकि जो बच्चा फोन का आदी है, उसे तुरंत मोबाइल छुड़वाना आसान नहीं होगा, लेकिन धीरे-धीरे माता-पिता प्रयास करें।
किस्से-कहानियां सुनाने की आदत डालें- माता-पिता को कोशिश करनी चाहिए कि वे किस्से, कहानियां या कविताएं सुनाने के लिए फोन का उपयोग न करें, बल्कि जैसे उनके बचपन में दादी-नानी कहानियां सुनाया करती थीं, उसी तरह वे भी कोई कविता या कहानी सुना सकते हैं।
आउटडोर गतिविधियां बढ़ाएं- भले ही माता-पिता कितने भी व्यस्त क्यों न हों, उन्हें बच्चे के लिए आधे से एक घंटा निकालना चाहिए, जिसमें वे अपने प्रिय को लेकर पार्क जा सकें, जहां वे उसकी पसंद के खेल खेल सकें। उसे दूसरों के साथ बातचीत करना सिखाएं।
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क्यों जरूरी है बच्चों का दोस्तों के साथ खेलना?
- खेल-खेल में बच्चे एक-दूसरे के साथ बातचीत करना, अपनी भावनाओं को व्यक्त करना और दूसरों की भावनाओं को समझना सीखते हैं।
- दोस्तों के साथ खेलने से बच्चे खुशी, दुख, गुस्सा और प्यार जैसी विभिन्न भावनाओं का अनुभव करते हैं और उन्हें प्रबंधित करना सीखते हैं।
- खेलने के दौरान बच्चे नई चीजें सीखते हैं, अपनी कल्पना शक्ति का विकास करते हैं और समस्याओं का समाधान ढूंढना सीखते हैं।
- जब बच्चे दूसरों के साथ घुलते-मिलते हैं और दोस्ती करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
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