नमक में मिलाया जा रहा है प्लास्टिक, आईआईटी बॉम्बे ने की रिसर्च

एक चुटकी नमक पूरे खाने का स्वाद बिगाड़ भी देती है और बना भी देती है। लेकिन एक सर्वे के अनुसार इस एक चुटकी नमक में भी आजकल की जा रही है मिलवाट। 

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क्या आप खाने में नमक डालती हैं?

ऑफकोर्स डालती ही होंगी। नमक है ही इतना जरूरी। बिना नमक के इंसान जी भी नहीं सकता। इंसान मीठे के बिना तो रह सकता है लेकिन नमक के बिना। इसलिए दिन में कम से कम एक चुटकी नमक उसे जरूर चाहिए होता है। लेकिन इस एक चुटकी नमक में भी आजकल मिलावट की जा रही है। जबकि नमक आसानी से समुद्र से बनाया जा सकता है।

तो फिर ये मिलावट कौन और क्यों कर रहा है।

बड़ी कंपनियां कर रही हैं मिलावट

आसानी से प्राप्त होने वाले नमक में बड़ी से बड़ी कंपनियां मिलावट कर रही हैं। ये बड़ी कंपनियां नमक में माइक्रोप्लास्टिक मिला रही हैं।

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आईआईटी बॉम्बे ने की रिसर्च

ये रिसर्च हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बांबे ने की है। आईआईटी बॉम्बे ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के नमक पर रिसर्च की जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि नमक में प्लास्टिक मिलाया जा रहा है। नमक में प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक के रुप में मिलाया जा रहा है। (Read More:ब्रेस्टफीडिंग के दौरान भूलकर भी नहीं करना चाहिए इन फूड्स का सेवन)

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क्या है माइक्रोप्लास्टिक?

माइक्रोप्लास्टिक वास्तव में प्लास्टिक के बहुत छोटे कण होते हैं। ये आकार में कापी छोटे होते हैं। इनका आकार पांच मिलीमीटर से भी कम होता है। पर्यावरण में उत्पाद के धीरे-धीरे विघटन से इनका निर्माण होता है। आईआईटी-बंबई के सेंटर फॉर इनवायर्नमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग की एक टीम ने जांचे गए नमूनों में माइक्रो-प्लास्टिक के 626 कण पाये हैं। रिसर्च के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक के 63 प्रतिशत कण छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में थे, जबकि 37 प्रतिशत फाइबर के रूप में थे।

इस रिसर्च के अनुसार प्रति एक किलोग्राम नमक में 63.76 माइक्रोग्राम माइक्रोप्लास्टिक पाये गए हैं। इसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति प्रति दिन पांच ग्राम नमक लेता है तो एक साल में एक भारतीय 117 माइ्क्रोग्राम नमक का सेवन करता है। ‘कांटिमिनेशन ऑफ इंडियन सी साल्ट्स विथ माइक्रोप्लास्टिक्स एंड अ पोटेंशियल प्रिवेंशन स्ट्रेटजी’ शीर्षक अध्ययन को अमृतांशु श्रीवास्तव और चंदन कृष्ण सेठ ने संयुक्त रूप से लिखा है. इसका प्रकाशन ‘इन्वार्यन्मेंटल साइंस एंड पॉलूशन रिसर्च’ जर्नल में 25 अगस्त को हुआ। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने दावा किया है कि साधारण नमक निष्पंदन तकनीक के जरिये 85 प्रतिशत माइक्रो-प्लास्टिक (वजन के हिसाब से) को खत्म किया जा सकता है।

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