कोरोना काल ने लोगों की ज़िंदगी को बदल कर रख दिया है। हर कोई इस बीमारी से अपनी ज़िंदगी बचाने में लगा है, लेकिन अस्पताल में काम कर रहे कर्मचारी इस ख़तरे में भी लोगों की सेवा कर रहे हैं। इंसानियत की मिसाल पेश कर रहे हैं अस्पताल के कर्मचारी कोरोना के मरीज़ों का उपचार प्रेम और सेवा भाव से कर रहे हैं।
इस मुश्किल वक़्त में मानवीय सेवा के कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। जिसमें अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्टाफ़ नर्स जेबा चोखावाला का भी नाम शामिल है। जेबाबेन रोजा के दौरान पीपीई किट पहनकर कोरोना के मरीज़ों की देखभाल करती रहीं हैं। 30 वर्षीय जेबा चोखावाला रोज़ाना 8 घंटे तक भूखी-प्यासी रहकर लोगों की सेवा करती रहीं।
सिविल अस्पताल में जेबा चोखावाला नर्स के तौर पर काम करती हैं। 1200 बेड के कोविड अस्पताल में वह 8 घंटे की शिफ़्ट करती हैं। हालांकि रोजा के दौरान उनके लिए यह काफ़ी मुश्किल हो गया था, क्योंकि वह पीपीई किट पहनकर मरीज़ों की देखभाल करती हैं। इससे उनके शरीर से बहुत अधिक पसीना आता है, ऐसे में रमज़ान के महीने में उनके लिए हाइड्रेट रहना और भी मुश्किल हो जाता था। जेबा टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में बताती हैं कि ऐसा करने के लिए मुझे भगवान से शक्ति मिली। उन्होंने आगे कहा कि एक नर्स होने के नाते मैं रोजा के दौरान ड्यूटी से कैसे दूर रह सकती हूं? हालांकि थोड़ा कमज़ोर होना बहुत आम बात है, लेकिन मैं अपने फ़र्ज़ से या रमज़ान के महीने का पालन करने से नहीं चूकी। जेबा रमज़ान के महीने में भी बिना किसी आलस के अपनी ड्यूटी के साथ-साथ इस मानवीय धर्म को निभाती रहीं।
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सिविल अस्पताल के कर्मचारियों के अनुसार जेबा की मां कैंसर से पीड़ित हैं, जबकि उनकी बेटी साढ़े तीन साल की है। उनके पति प्रांतिज में व्यापारी है, जेबा अस्पताल में सबकुछ हैंडल करती हैं। वहीं जेबा बताती हैं कि नॉर्मल दिनों में हम तीन से 4 लीटर पानी रोज़ाना पीते हैं, ताक़ि ख़ुद को हाइड्रेट कर सकें, लेकिन रमज़ान में सहरी 3 बजे होती है और इफ़्तार शाम के 7 बजे, लेकिन ड्यूटी की वजह से अक्सर अस्पताल में ही करना पड़ता है, हालांकि यहां सभी मुझे बहुत सपोर्ट करते हैं। जेबा आगे कहती हैं कि सभी धर्मों में दूसरों की सेवा करने के लिए बहुत सम्मान की बात मानी जाती है और मुझे अपने काम से कई लोगों की जान बचाने पर गर्व है।
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जेबा के पति व्यवसाय की वजह से घर से बाहर रहते हैं और वह भी माता और बेटी के बीच नहीं रह पातीं। मां के बीमार होने के बावजूद वह रोज़ाना अस्पताल में आकर मरीज़ों की सेवा करती हैं। जेबा इस वक़्त ज़्यादा से ज़्यादा अस्पताल में मरीज़ों की देखभाल में अपना समय दे रही हैं। जेबा के अनुसार जब भी कोई मरीज़ इमरजेंसी में आता है तो वे कोरोना के संक्रमण लगने के डर को भूल जाती हैं और अपना काम करने लग जाती हैं।
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