महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं आशा, जानें कैसे तय किया स्वीपर से अफसर बनने तक का सफर

अगर आप गरीबी और परेशानियों से हार मानकर आगे बढ़ना भूल गई हैं तो जोधपुर की रहने वाली आशा कंडारा की कहानी जरूर पढ़िए।

asha kandara news
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कभी जोधपुर की सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली आशा कंडारा ने आज अपनी मेहनत और लगन से एक अलग मुकाम हासिल किया है। उनकी कहानी लोगों को प्रेरणा दे रही है। संघर्ष के बाद मिली कामयाबी की तारीफ अब हर कोई कर रहा है। बता दें कि जोधपुर की रहने वाली आशा कंडारा अब आरएएस अफसर बन गई हैं। राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा (RAS exam 2018) को पास करने के बाद आशा ने सिर्फ परिवार ही नहीं बल्कि राज्य के लोगों का भी सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।

आशा के लिए ये सफर आसान नहीं था, कई बार उन्हें लोगों की यातनाएं सुननी पड़ती थीं। यही नहीं स्वीपर का काम करने की वजह से लोग उन्हें हीन भावना से देखते थे, लेकिन आशा को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उनका मानना था कि अगर आपके पास सपने देखने की ताकत है और उसे हासिल करने के लिए ईमानदारी तो आपको कोई भी नहीं रोक सकता।

शादी के 5 साल बाद ही पति ने छोड़ दिया था साथ

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आरएएस की परीक्षा को पास करने वाली आशा कंडारा को एक नहीं बल्कि कई बार मुश्किलों का सामना पड़ा है। दरअसल शादी के 5 साल बाद ही आशा कंडारा के पति ने उन्हें छोड़ दिया था। ऐसे में उन्होंने फैसला किया कि वह अपने बच्चों को साथ लेकर आएंगी। अपनी इसी इच्छा को पूरी करने के लिए उन्होंने मेहनत शुरू कर दी। उन्होंने तय किया कि वह ऐसे ही एक मजबूत महिला बनकर रहेंगी। साथ ही, जिसने उनके साथ, उनकी जाति के लिए, एक अलग महिला होने की वजह से अपमानित किया है उन्हें अपनी काबिलियत से जवाब देंगी। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में आशा कंडारा ने बताया कि लोगों की यातनाओं और अपमान ने मुझे आगे बढ़ने की ताकत दी है, क्योंकि समाज को सिर्फ शिक्षा से बदला जा सकता है।

पति की वजह से बुरी तरह टूट गई थीं आशा

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आशा कंडारा ने साल 1997 में शादी की थी, लेकिन वह चल नहीं पाई। उनके पति ने साल 2002 में उन्हें छोड़ दिया, इस दुख से उबरने में आशा को काफी वक्त लग गया। वह यह यकीन नहीं कर पा रही थीं कि उनकी शादी टूट गई है। इस दर्द से निकलने के बाद उन्होंने तय किया कि वह अब पढ़ाई करेंगी। इसके लिए उन्होंने स्कूल लेवल से पढ़ाई शुरू की और फिर साल 2016 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह सोचने लगीं कि आखिर वह क्या कर सकती हैं, इस सोच से उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के जोधपुर(जोधपुर जाते वक्त) नगर निगम की परीक्षा में स्वीपर के लिए भाग लिया, जिसमें वह सफल हुईं। आशा के अनुसार ''यह सिर्फ एक फेज था, क्योंकि इस दौरान उनके द्वारा कुछ मांगने पर अक्सर उन्हें यह कहा जाता था कि तुम कोई कलेक्टर नहीं हो। दफ्तर के अलावा लोग मेरी जाति और काम की वजह से मेरा अपमान करते थे। यह सब कुछ मैं बर्दाश्त कर रही थी।''

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नौकरी के साथ-साथ की परीक्षा की तैयारी

आशा कंडारा के अनुसार, वह नौकरी के साथ-साथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी भी करती थीं। इसकी प्रिलिमनरी परीक्षा उन्होंने साल 2018 में दी थी, इसे पास करने के बाद उन्होंने आखिरी परीक्षा के लिए दिन-रात एक कर दिए थे। आखिरी परीक्षा पास करने के बाद भी उन्होंने फाइनल रिजल्ट आने का इंतजार किया। जिस दिन परिणाम घोषित हुए उस दिन तक वह शहर की सड़कों पर झाड़ू लगा रही थीं। आशा कंडारा के अनुसार, यहां तक पहुंचने के लिए उनकी जर्नी भले ही काफी मुश्किलों और संघर्षों से भरी थी, लेकिन अब वह उन लोगों के लिए कुछ करना चाहती हैं जिनके साथ अन्याय हुआ है और समाज द्वारा वंचित रहे हैं।

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