प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला के मन में डिलीवरी को लेकर कई तरह की आशंकाएं और सवाल रहते हैं। जैसे कि वॉटर ब्रेक को लेकर महिलाएं काफी सशंकित रहती हैं कि कहीं डिलीवरी के पहले ही उनका वाटर ब्रेक न हो जाए और ऐसी स्थिति में किसी तरह की अनहोनी न हो। इसलिए इस आर्टिकल में हम अपनी रीडर्स को वॉटर ब्रेक के बारे में सही जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं।
हमने इस बारे में लखनऊ की गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. रेखा यादव से बात की और उनसे मिली जानकारी यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं। देखा जाए तो वॉटर ब्रेक के बाद कितनी देर में डिलीवरी हो जानी चाहिए? और डिलीवरी के पहले वॉटर ब्रेक हो जाने की स्थिति में किसी तरह की सावधानी बरतनी जानी चाहिए, इसे जानने से पहले आपको यह जानना होगा कि आखिर वॉटर बैग होता क्या है?
वॉटर बैग में सुरक्षित रहता है गर्भस्थ शिशु
गर्भावस्था के दौरान शिशु एक वॉटर बैग में सुरक्षित रहता है, जो कि एमनीओटिक फ्लूइड से भरा होता है। बता दें कि इस एमनीओटिक फ्लूइड में कई तरह के हार्मोन, एंटीबॉडी और पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शिशु के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। हालांकि चौथे महीने के बाद गर्भस्थ शिशु की इस एमनीओटिक फ्लूइड पर निर्भरता कम हो जाती है और वो प्लेसेंटा से आवश्यक पोषण लेने लगता है। हालांकि सुरक्षा के लिहाज से यह थैली प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों तक शिशु के लिए जरूरी होती है।
इस सुरक्षा थैली के अंदर ही शिशु स्वतंत्र रूप से गर्भ में मूवमेंट करता रहता है। एक तरह से एमनीओटिक फ्लूइड से भरा यह वॉटर बैग उसके लिए सुरक्षा घेरा होता है, जो डिलीवरी से ठीक पहले या डिलीवरी के दौरान टूटता है। ऐसे में जब थैली फटती है तो इसमें भरा एमनीओटिक फ्लूइड बाहर निकल आता है, जिसे वॉटर ब्रेक कहते हैं। वहीं अगर यह थैली डिलीवरी के समय से काफी पहले फट जाती है तो इससे गर्भस्थ शिशु और प्रेग्नेंट महिला दोनो को इंफेक्शन होने का डर होता है।
वॉटर ब्रेक के बाद कितनी देर में होनी चाहिए डिलीवरी
अब बात करते हैं कि आखिर वॉटर ब्रेक के बाद कितनी देर में डिलीवरी होनी चाहिए तो इस बारे में हमारी हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. रेखा यादव बताती हैं कि आमतौर पर वॉटर ब्रेक के बाद 24 से 48 घंटे के अंदर डिलीवरी हो जाती है। ऐसा नहीं होने की स्थिति में डॉक्टर कृत्रिम तरीकों से लेबर पेन दिलाने की कोशिश करते हैं, ताकि बच्चे का जन्म जल्द से जल्द हो सके। वैसे शारीरिक परिस्थिति के अनुसार हर महिला में वॉटर ब्रेक के बाद डिलीवरी का समय अलग-अलग होता है।
लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि गर्भस्थ शिशु कितने दिन का है। दरअसल, आमतौर पर वॉटर ब्रेक प्रेग्नेंसी के 40वें सप्ताह के आस-पास होता है। लेकिन वहीं कुछ परिस्थितियों में ये थैली 37वें और 38वें सप्ताह में भी फट सकती है, जिसे प्रीमैच्योर रप्चर ऑफ मेम्ब्रेन कहते हैं। ऐसी स्थिति में गर्भस्थ शिशु को इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए बच्चे को बचाने के लिए समय से पहले डिलीवरी करानी पड़ती है। वहीं समय पूर्व जन्मे बच्चे की देख-भाल के लिए उन्हें कुछ दिनों के लिए NICU यानी नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा जाता है।
क्यों बनती है समय से पहले वॉटर ब्रेक की स्थिति?
अब बात करें कि आखिर समय से पहले वॉटर ब्रेक क्यों होता है? तो डॉ. रेखा यादव के अनुसार इसके पीछे कई सारे कारण हो सकते हैं। जैसे कि अत्यधिक शारीरिक और मानसिक दबाव के चलते संकुचन के कारण प्राकृतिक रूप से यह थैली फट सकती है। इसके अलावा गर्भाशय में किसी तरह का संक्रमण भी समय से पहले वॉटर ब्रेक की स्थिति ला सकता है। वहीं गोनोरिया जैसे यौन संचारित संक्रमण के कारण भी डिलीवरी से पहले वॉटर ब्रेक हो सकता है।
वैसे वजह चाहे जो भी वॉटर ब्रेक की स्थिति में गर्भवती महिला को तुरंत मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति में बच्चे और गर्भवती महिला दोनो की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए डॉक्टर की निगरानी बेहद जरूरी है। डॉक्टर प्रेग्नेंट महिला की जांच कर लेबर पेन शुरू होने के लिए दवा या उचित तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
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