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Supreme Court ने दी इच्‍छामृत्‍यु को मंजूरी, कहा- 'हर व्‍यक्ति को सम्मान से मरने का पूरा हक'

Supreme Court ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी है, कहा, 'लोगों के पास सम्मान से मरने का पूरा हक है।'
ANI
Updated:- 2018-03-12, 12:25 IST

जीवन बहुत ही नाजुक है, बस एक tragedy और आप जीवनभर व्‍हीलचेयर पर आ सकते हैं या उससे भी बदतर स्थिति हो सकती हैं, और आप जीवन भर लाइफ स्‍पोर्ट पर जीते रहते हैं। कई लोगों के लिए, यह जीवन बहुत ही दुख लाता है क्योंकि उन्‍हें ये देखकर बहुत दुख होता है कि उनके परिवार के सदस्य अपनी जिंदगी का त्याग करके उन्हें जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं

इस तरह के उदाहरणों के बाद रोगी इच्छामृत्यु का अनुरोध करता है। लेकिन एक्टिव  इच्छा मृत्यु की तलाश में कानून से अनुमति की आवश्यकता होती है क्योंकि यह अवैध है। लेकिन Supreme Court ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दी है!

Supreme Court ने किया बड़ा फैसला

जी हां Supreme Court ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी है! Supreme Court के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जस्टिस की constitutional bench ने शर्त के साथ इच्छामृत्यु की इजाजत दी। Supreme Court ने कहा, 'लोगों के पास सम्मान से मरने का पूरा हक है।'

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एनजीओ कॉमन कॉज़ ने 2005 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी। याचिका के अनुसार गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को 'लिविंग विल' बनाने हक होना चाहिए। इस 'लिविंग विल' के जरिये एक शख्स ये कह सकेगा कि जब वो ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां उसके ठीक होने की उम्मीद न हो, तब उसे जबरन लाइफ सपोर्ट पर न रखा जाए।

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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने साफ़ किया कि वो एक्टिव यूथनेशिया की वकालत नहीं कर रहे जिसमें लाइलाज मरीज को इंजेक्शन दे कर मारा जाता है। वो पैसिव यूथनेशिया की बात कर रहे हैं, जिसमें कोमा में पड़े लाइलाज मरीज को वेंटिलेटर जैसे लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से निकाल कर मरने दिया जाता है। इस पर अदालत ने सवाल किया कि आखिर ये कैसे तय होगा कि मरीज ठीक नहीं हो सकता? प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि ऐसा डॉक्टर तय कर सकते हैं। फ़िलहाल कोई कानून न होने की वजह से मरीज को जबरन लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है।

भूषण ने कहा कि कोमा में पहुंचा मरीज खुद इस स्थिति में नहीं होता कि वो अपनी इच्छा व्यक्त कर सके। इसलिए उसे पहले ही ये लिखने का अधिकार होना चाहिये कि जब उसके ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाए तो उसके शरीर को यातना न दी जाए।

Central government ने कहा कि वो लिविंग विल की मांग का सरकार समर्थन नहीं करती। ये एक तरह से आत्महत्या जैसा है। हालांकि, विशेष परिस्थितियों में पैसिव यूथनेशिया यानी कोमा में पड़े मरीज़ का लाइफ स्पोर्ट सिस्टम हटाना गलत नहीं है। लेकिन इसका फैसला मेडिकल बोर्ड को करना चाहिए. सरकार ने ये भी कहा था कि वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन पर जल्द ही कानून बनाने का इरादा रखती है।

बता दें कि लगभग 35 साल से कोमा में पड़ी मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छा मृत्यु देने से Supreme Court ने साल 2011 में मना कर दिया था। उसी फैसले में Supreme Court ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाज़त से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीज़ों को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है।

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