मां बनना किसी भी महिला की जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी होती है। प्रेग्नेंसी के दौरान पोषण से भरपूर संतुलित आहार लेना ना सिर्फ प्रेग्नेंट महिला के लिए जरूरी होता है, बल्कि उनके होने वाले बच्चे के लिए यह महत्वपूर्ण होता है। बच्चे अपने विकास के लिए सारे पोषक तत्व मां से ही लेता है। प्रेग्नेंसी के दौरान प्रोटीन और फैट के अलावा विटामिन्स और मिनरल्स की भी जरूरत होती है। खासतौर पर फॉलिक एसिड, आयरन, आयोडीन और कैल्शियम की प्रेग्नेंसी में विशेष जरूरत होती है। इस बारे में हमने बात की Dr. Atul Ganatra (MD, DGO, FICOG) से और उन्होंने हमें गर्भवती की डाइट से जुड़ी ये अहम बातें बताईं-
इन विटामिन्स और मिनरल्स की होती है जरूरत
- फॉलिक एसिड
- न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट( NTD) से बचाव के लिए 400 माइक्रोग्राम फॉलिक एसिड प्रेग्नेंसी की शुरुआत से लेकर 12वां हफ्ता शुरू होने तक रोजाना लेने की जरूरत होती है।
- जिन महिलाओं में NTD का रिस्क ज्यादा होता है, उन्हें 12वें हफ्ते तक फॉलिक एसिड का डोज हर रोज 5 मिलिग्राम अधिक लेने की सलाह दी जाती है।
इन कंडिशन वाली महिलाओं में जोखिम होता है ज्यादा
- जिनकी पिछली प्रेग्नेंसी में एनटीडी की हिस्ट्री रह चुकी हो।
- जिनके परिवार में एनटीडी की हिस्ट्री हो
- प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज
- जो महिलाएं एंटीपिलेप्टिक ड्रग्स का सेवन कर रही हो।
विटामिन B 12
पौधों पर आधारित डाइट यानी कि वेजीटेरियन डाइट लेना प्रेग्नेंसी के दौरान हेल्दी रहने का अच्छा जरिया है, लेकिन इससे महिला में विटामिन B12 की कमी हो सकती है, जिससे गंभीर और जान के लिए खतरा पैदा करने वाले जोखिम हो सकते हैं। हालांकि पौधों पर आधारित डाइट विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होती हैं, लेकिन इनसे विटामिन B12 नहीं मिल पाता, क्योंकि यह माइक्रोऑर्गेनिज्म से आती है। अपनी डाइट में B12 शामिल करने के लिए आपको अपनी डाइट में ये चीजें जरूर लेनी चाहिए-
- मीट, लीवर और चिकन
- मछली, शैलफिश जैसे कि ट्राउट, सेलमन, टूना फिश और clams(बड़ी सीप)
- Fortified breakfast cereal
- लो फैट वाला दूध, दही और पनीर
- अंडे
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कैल्शियम
मां के गर्भ में विकसित होते भ्रूण को लगभग 20-30 ग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। इसमें से ज्यादातर आवश्यकता तीसरे ट्राईमेस्टर में होती है। हालांकि मां के लिए प्रेग्नेंसी के बाद वाली स्टेजेस में कैल्शियम इनटेक की ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन physiological adaptations से शरीर को मिलने वाले कैल्शियम का ज्यादा बेहतर तरीके से इस्तेमाल हो पाता है। इसीलिए डाइट में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाना आमतौर पर जरूरी नहीं होता।
- आरडीए की गाइडलाइन्स के अनुसार
- बैठकर ज्यादा काम करने वाली महिलाओ के लिए: 600 मिलीग्राम
- गर्भवती महिलाओं के लिए: 1200 मिलीग्राम
- ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं के लिए: 1200 मिलीग्राम
आयरन
महिलाएं जो डाइट लेती हैं, उसमें से लगभग 300 मिलीग्राम आयरन भ्रूण और प्लेसेंटा के लिए चला जाता है और 500 मिलीग्राम महिला का हीमोग्लोबिन मास बढ़ाने के लिए इस्तेमाल हो जाता है। मिड प्रेग्नेंसी तक आयरन की इस मात्रा का इस्तेमाल हो जाता है। भ्रूण सबसे ज्यादा आयरन प्रेग्नेंसी के आखिरी ट्राइमेस्टर में लेता है। अगर डाइट से पर्याप्त आयरन नहीं मिल पाता, तो शिशु अपनी जरूरतों के लिए मां के शरीर से आयरन की कमी पूरी करता है। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले एनीमिया से शिशु के कम वजन के पैदा होने और जन्म के बाद कुछ शुरुआती सालों तक उसमें आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया(IDA) होने की आशंका होती है।
आयरन के स्रोत
- Haem iron: लीवर, मुर्गा, मीट और मछली
- Non haem iron: सब्जियों से मिलने वाला आयरन जैसे कि अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, नट्स, तिलहन, गुड़ और ड्राई फ्रूट्स
इन फूड में पोषक तत्वों की मात्रा होती है इतनी-
- खुबानी(1 कप)-8 मिलीग्राम
- पालक(1 कप पका हुआ): 6 मिलीग्राम
- मटर(1 कप): 3 मिलीग्राम
- Button mushrooms (1 कप पका हुआ): 3 मिलीग्राम
- गुड़(1 चम्मच-20 ग्राम): 3 मिलीग्राम
- मसूर की दाल(1 कप पकी हुई): 6.6 मिलीग्राम
- तिलहन(कद्दू, शीशम और फ्लेक्स सीड्स): दो चम्मच में 2-4 मिलीग्राम
- रामदाना(1 कप पका हुआ): 5.2 मिलीग्राम
Recommended Dietary Allowance (RDA)की गाइडलाइन्स के अनुसार जिन महिलाओं का प्री-प्रेग्नेंसी वजन 55 किलोग्राम होता है, उन्हें आयरन की इतनी मात्रा की जरूरत होती है-
- ज्यादातर बैठकर काम करने वाली महिलाएं: 1.65 मिलीग्राम
- प्रेग्नेंट महिला: 2.80 मिलीग्राम
- ब्रेस्टफीड कराने वाली महिला(0-6 माह): 1.65 मिलीग्राम
आयोडीन
प्रेग्नेंट महिला के शरीर में थायरॉइड हार्मोन्स के संस्लेषण के लिए आयोडीन की जरूरत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक वयस्क महिला को 150 mcg आयोडीन लेना चाहिए, जबकि प्रेग्नेंट महिला को 250mcg एमसीडी आयरन लेने की सलाह दी जाती है।
आयरन के स्रोत
- समुद्री भोजन(समुद्री मछली, समुद्री नमक) और कॉड लीवर ऑयल
- दूध, मीट, अनाज, सब्जियों आदि में कम मात्रा में आयोडीन पाया जाता है
- 90 फीसदी आयोडीन खाने और शेष पानी से मिलता है
आयोडीन की कमी से हाइपोथायरॉइजिस्म और भ्रूण के mental impairment(दिमाग से संबंधित) की समस्या हो सकती है। आयोडीन की बहुत ज्यादा कमी होने की स्थिति में अपंगता की स्थिति भी हो सकती है, जिसे cretinism यानी बौनापन कहा जाता है।
निष्कर्ष
किसी महिला की डाइट में पोषक तत्वों की मात्रा ना सिर्फ उसकी सेहत को प्रभावित करती है, बल्कि उसके होने वाले बच्चे की सेहत पर भी गहरा प्रभाव डालती है। आयरन और आयोडीन को छोड़कर गर्भवती को मिलने वाली डाइट में बच्चे के सही वजन के लिए पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं, जिनसे dietary deficiency का अंदेशा नहीं रहता। हालांकि अतिरिक्त सप्लीमेंट्स के लिए डॉक्टर की सलाह लेना उचित रहता है। अगर आवश्यकता महसूस हो तो इस बात पर भी सलाह लें कि सभी विटामिन्स/मिनरल्स को अपनी डेली डाइट में अधिकतम कितनी मात्रा में लें, ताकि किसी भी तत्व का ओवरडोज ना हो।