कार्टून हर बच्चे की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। बच्चे कार्टून देखकर ही बड़े होते हैं। माता पिता खुद भी बच्चों को कार्टून दिखाते हैं, ताकी उनका मनोरंजन हो सके। कुछ बच्चे तो ऐसे भी हैं, कि बना कार्टून देखे खाना ही नहीं खाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कार्टून देखना आपके बच्चों पर किस तरह से असर डालता है। आइए एक्सपर्ट से समझते हैं कि कार्टून देखना आपके बच्चे के दिमाग, व्यवहार और भावनाओं के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है। इस बारे में डॉ. हिमानी नरूला खन्ना,विकासात्मक व्यवहार, बाल रोग विशेषज्ञ और किशोर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, और कंटिनुआ किड्स की सह-संस्थापक इस बारे में जानकारी दे रही हैं। Dr. Himani Narula Khanna, Developmental Behavioural Paediatrician and Adolescent Mental Health Expert, Co-Founder of Continua Kids
कार्टून देखने के नुकसान
अगर बच्चा बहुत ज्यादा टीवी या मोबाइल पर कार्टून देखता है, खासकर जब बच्चा 5 साल से छोटा है, तो इसका असर उसके दिमाग के विकास और ध्यान लगाने की क्षमता पर पड़ सकता है। इस उम्र में बच्चों का दिमाग बहुत तेजी से बढ़ रहा होता है, खासकर दिमाग का वो हिस्सा जो ध्यान, खुद पर नियंत्रण और सोचने-समझने की क्षमता से जुड़ा होता है। कार्टून देखते वक्त तेजी से बदलते सीन, तेज आवाजें और अजीब घटनाएं दिमाग को जरूरत से ज्यादा उत्तेजित कर देती हैं, इससे बच्चों का दिमाग हर समय कुछ नया और तेज चाहता है।
एक स्टडी के मुताबिक सिर्फ 9 मिनट तेज गति वाला कार्टून देखने से भी चार साल के बच्चे की सोचने और खुद को कंट्रोल करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। ये कार्टून बच्चों के दिमाग को इस तरह से सेट कर देता है कि उन्हें तुरंत सब कुछ चाहिए,जिससे उनका ध्यान जल्दी भटकता है, वो गुस्से वाले या चिड़चिड़े हो जाते हैं और सोचने समझने के स्किल्स भी कमजोर हो सकते हैं।
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इतना ही नहीं, ज्यादा कार्टून देखने वाले बच्चों की भाषा और बोलने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। बच्चा बोलना तब अच्छे से सीखता है जब वह किसी से बात करें। जब सवाल-जवाब करे। लेकिन कार्टून तो सिर्फ एकतरफा चलते हैं, बच्चों को इसलिए ज्यादा जवाब देने का मौका नहीं मिलता है।
तीन साल से छोटे बच्चे तो स्क्रीन पर देखी चीजों को असली दुनिया में समझ ही नहीं पाते हैं। इसे वीडियो डिफिसिट इफेक्ट कहा जाता है। कई रिसर्च बताते हैं कि जब बच्चे बहुत ज्यादा स्क्रीन देखते हैं, तो उनके बोलने में देरी होती है और वो दूसरों से ठीक से बात नहीं कर पाते हैं।
स्क्रीन का एक और असर नींद पर भी पड़ता है। इससे उन्हें पढ़ाई में ध्यान देने, शांत रहने और आगे बढ़ने में मुश्किलें आने लगती है।
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