
आज के समय में मोबाइल फोन हमारी लाइफ का अहम हिस्सा बन चुका है। बिना फोन के ताे मानो कोई काम ही नहीं हो सकता है। चाहे किसी से बात करनी हो, या नेट सर्फिंग करनी हो, फाेन के बिना कुछ भी पॉसिबल नहीं है। ये एक ऐसी चीज है, जिससे आप सात समंदर पार बैठे लोगों से भी आसानी से जुड़े रह सकते हैं।
जब भी किसी का फोन आता है, तो हम रिसीव करते ही हैलो बोलते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि फोन आने से पहले आखिर होता क्या है? कॉल लगने से लेकर आवाज दूसरे के पास पहुंचने तक, पर्दे के पीछे कई टेक्नोलॉजी एक साथ काम करती हैं। ये सिर्फ नेटवर्क का मामला नहीं है, बल्कि इसमें सिग्नल, टावर, कंप्यूटर सिस्टम और डेटा का बड़ा रोल होता है। आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं। आइए जानते हैं-
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जब भी आप किसी को कॉल करके बाेलती हैं, तो आपका मोबाइल सबसे पहले आपकी आवाज को कैच करता है। फोन आपकी वॉइस को छोटे-छोटे डिजिटल डेटा पैकेट में बदलकर इन पैकेट्स को इस तरह तैयार करता है कि आवाज क्लियर रहे। तेजी से दूसरे के पास पहुंच भी सके। इसी वजह से कोसों दूर बैठे लोगों को आपकी आवाज आसानी से सुनाई दे जाती है।
यही डिजिटल डेटा मोबाइल से निकलकर रेडियो वेव्स की मदद से पास के मोबाइल टावर तक जाता है। दरअसल, सभी फोन्स के नेटवर्क को कुछ फिक्स्ड फ्रीक्वेंसी दी जाती है जिनकी मदद से ये सिग्नल हवा में ट्रैवल करते हैं। ऐसे में आपके आसपास मौजूद टॉवर इस सिग्नल को तुरंत पकड़ता है।
इसके बाद की प्रक्रिया भी और बड़ा रोल प्ले करती है। टावर तक पहुंचने के बाद ये सिग्नल सीधे दूसरे फोन पर नहीं जाता है। ये पहले नेटवर्क के कंट्रोलिंग सिस्टम तक पहुंचता है। इसके बाद तय होता है कि कॉल को किस रास्ते से आगे भेजना है। इसके बाद सिस्टम देखता है कि सामने वाला व्यक्ति किस नेटवर्क पर है। ऐसे में दोनों फोन का नेटवर्क सेम होता है तो कॉल उसी नेटवर्क के अंदर भेज दी जाती है।
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वहीं, अगर दूसरा व्यक्ति किसी दूसरे नेटवर्क पर है तो कॉल को एक खास कनेक्शन पॉइंट के जरिए दूसरे नेटवर्क तक पहुंचाया जाता है। अब आप सोच रही होंगी कि नेटवर्क को कैसे मालूम चलता है कि सामने वाले का फोन कहां है? तो आपको बता दें कि हर मोबाइल यूजर की हर एक जानकारी नेटवर्क के खास रिकॉर्ड में सुरक्षित रहती हैं।
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इन रिकॉर्ड्स से ही नेटवर्क को पता रहता है कि फोन किस इलाके में, किस शहर में या फिर किस टावर के पास है। इन्हीं सब वजहों से कॉल एकदम सही जगह लगती है। जैसे ही सिस्टम को ये पता चल जाता है कि रिसीवर किस टावर के रेंज में है, कॉल उसी टावर तक भेज दी जाती है।
वो टावर रेडियो वेव्स के जरिए सिग्नल को सामने वाले के मोबाइल तक पहुंचाता है। सिग्नल मिलते ही उसका फोन बजने लगता है और कॉल कनेक्ट हो जाती है। ये पूरी प्रक्रिया उस दौरान भी चलती है, जब आप फोन पर बात कर रही होती हैं। आपकी आवाज डेटा में बदलती है, टावर तक जाती है, वहां से दूसरे फोन तक पहुंचती है और जवाब वापस आता है।
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तो अब जब आप फोन पर बात करें ताे आपको मालूम होना चाहिए कि कॉल कैसे आती है। आपकी आवाज दूसरों तक कैसे पहुंचती है? इसके पीछे ये पूरा प्रॉसेस होता है। साथ ही अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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