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history and origin behind laal maas

राजस्थान की रॉयल डिश 'लाल मांस' कैसे बनी वर्ल्ड फेमस?

क्या आपने कभी राजस्थान की फेमस डिश लाल मांस का मजा लिया है? चलिए आज आपको बताएं इसके बनने की कहानी।
Editorial
Updated:- 2022-11-21, 13:10 IST

राजस्थान एक ऐसा भारतीय राज्य जिसके बारे में सोचते ही हम उसके समृद्ध इतिहास को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। इसका अपना एक अलग रंग है, अपनी अनोखी परंपराएं, प्रथाएं, कुजीन, लोकगीत है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। पिछले कई सालों में हमने इस राज्य को एक आगंतुकों के लिए एक बढ़िया हॉटस्पॉट बनते देखा।

उदयपुर की शांत झीलों से लेकर जोधपुर के किलों तक, राजस्थान का हर कोना, हर शहर उसे अद्वितीय बनाता है। सिर्फ किले, मंदिर और इसका समृद्ध इतिहास ही नहीं, बल्कि इसके अनोखे व्यंजन भी इसे खास बनाते हैं।

गट्टा, केर सांगरी, पापड़ भुजिया की सब्जी, प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा से भरी प्रसिद्ध राजस्थानी थाली के बिना राजस्थान की यात्रा पूरी नहीं होती। अब अगर आप मांसाहारी हैं, तो आपको अपनी थाली में 'लाल मांस' भी मिलेगा। मथानिया मिर्च के साथ बना यह तीखा, चटपटा और लजीज व्यंजन राजस्थान की एक सिग्नेचर डिश है। आज आपको चलिए इस डिश के बनने की और वर्ल्ड फेमस होने की कहानी बताएं-

क्या है लाल मांस?

what is laal maas

लाल मांस एक मीट करी है, जिसे बकरे/बकरी के मांस से बनाया जाता है। दही और मथानिया लाल मिर्च के कॉम्बिनेशन को पकाकर इस डिश को बनाया जाता है। यह काफी तीखी डिश है जिसमें लहसुन का भी अत्यधिक उपयोग किया जाता है। घी में बना लाल मांस आमतौर पर गेहूं और बाजरे की रोटी के साथ परोसा जाता है। यही कारण है कि यह राजस्थान की एक पॉपुलर और सिग्नेचर डिश है।

कैसे अस्तित्व में आया लाल मांस?

who invented laal maas recipe

आज तो लाल मांस बहुत पसंद किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई? वास्तव में अधिकांश राजस्थानी व्यंजनों में मांस की जगह मटन ही नहीं बल्कि अन्य मीट भी होते थे।

जैसा कि नाम से पता चलता है, राजस्थान पहले राजपूतों द्वारा शासित और फिर मुगलों के प्रभाव वाले राज्य में आया। उस दौरान शिकार बहुत किया जाता था और राजपूत कुलीन परिवार शिकार के खेल में अक्सर शामिल होते थे। इस व्यंजन को 'गेम मीट' कहा जाता था। यह एक ऐसी परंपरा थी जो किसी दूसरे राज्य के मेहमान के आने पर की ही जाती थी।

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इसके पीछे एक रोचक कहानी भी है। ऐसा माना जाता है कि मेवाड़ में सबसे पहली बार लाल मांस बना, लेकिन इसके पीछे एक बड़ा किस्सा है। दरअसल, शिकार में लाए गए जंगली सुअर और हिरण को लोग बहुत चाव से खाते थे और इसे मेहमानों के लिए खासतौर से तैयार किया जाता था।

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एक बार मेवाड़ के राजा ने हिरण का मांस खाने से मना कर दिया। वजह थी कि दही और लहसुन के साथ बनाने के बाद भी उसकी महक दूर नहीं हुई थी।

खानसामों ने राजशाही किचन में कई सारे ट्रायल किए मगर कुछ नहीं हो सका। फिर एक खानसामे ने खूब सारी मथानिया मिर्चों को इसकी ग्रेवी (बिना प्याज और टमाटर के गाढ़ी करें ग्रेवी) के साथ पकाया। इसके बाद इसे राजा के सामने पेश किया गया। इसका तीखेपन, रंग और स्वाद ने मेवाड़ के राजा को खुश किया और लाल मांस अस्तित्व में आया।

भारत में शिकार पर प्रतिबंध लगने के बाद से बाकी जानवरों की जगह इसमें मटन शामिल हो गया। आज यह डिश रॉयल किचन से आम घरों तक भी पहुंच गई है।

क्या था गेम मीट का युग?

all about laal maas

गेम मीट युग का एक और दिलचस्प व्यंजन 'खड़ा खरगोश' है। खरगोश को अपनी पसंद के मसालों में मैरीनेट किया जाता था, रोटियों में लपेटा जाता था और लगभग 6-8 घंटे के लिए एक गड्ढे में दबाकर बनाया जाता था। हाल के दिनों में इस तरह से मटन बनाया जाने लगा और आज भी पिट कुकिंग की दिलचस्प तकनीक बरकरार है। हिरण, सूअर और खरगोश के अलावा, छोटे पक्षी जैसे तीतर, बटेर और कबूतर भी बेहद लोकप्रिय थे। आज उनकी जगह चिकन ने ले ली है।

यह तो साफ है कि इतिहास ने हमारे व्यंजनों को खास बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राजपूतों के साथ ही मुगलों ने अवधी और लखनऊ के कबाब और अन्य खाने को खास बनाया (कबाब की बेस्ट रेसिपीज)।

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आज हमारे पास देश भर में ऐसी कई डेलिकेसी हैं जो शायद आपने कभी सुनी और चखी भी न हो। अगर आपने कभी पारंपरिक लाल मांस का मजा लिया तो अपने अनुभव हमारे साथ साझा जरूर करें।

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Image Credit: Shutterstock, Swatisani & freepik

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