जब भी कोई व्यक्ति आगरा जाता है तो अपने साथ पेठे का डिब्बा साथ जरूर लेकर आता है। पेठा एक ऐसी मिठाई है, जिसे अधिकतर लोग खाना पसंद करते हैं। इसकी पॉपुलैरिटी के कारण ही अब पेठे को केवल आगरा ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न शहरों में बनाया जाता है। इतना ही नहीं, व्रत के दौरान भी लोग मीठे के रूप में पेठे को खाना पसंद करते हैं।
पेठे को लौकी या सफेद कद्दू की मदद से तैयार किया जाता है और इसे बनाने का तरीका भी काफी अलग है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस पेठे के बनने और उसके मशहूर होने की कहानी भी उतनी ही अलग और दिलचस्प है। आगरा ताजमहल और पेठे के लिए मशहूर है और दोनों का ही संबंध शाहजहां से है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको पेठे के इतिहास से रूबरू करवाएंगे-
पेठे का संबंध मुख्य रूप से मुगलों के साथ है। ऐसा कहा जाता है कि इस मिठाई के बनने की शुरुआत शाहजहां की रसोई से हुई। दरअसल, जब आगरा पर शाहजहां का शासन था, तो उन्होंने अपने रसोइयों को ताजमहल की तरह शुद्ध और सफेद रंग की एक अनोखी मिठाई बनाने के लिए कहा था। जिसके बाद शाही रसोइयों ने कड़ी मेहनत की और पेठा नामक एक मिठाई को बनाया।
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कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पेठे का अस्तित्व ताजमहल के अस्तित्व से पहले ही आ गया था। किंवदंती के अनुसार, इस खास तरह की मिठाई को ताजमहल का निर्माण करने वाले श्रमिकों को खिलाने के लिए ईजाद किया गया था। दरअसल, उस समय मजदूर काम करने काफी थक जाते थे और एक ही तरह का भोजन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। ऐसे में उन्हें खुश करने के लिए मुगल रसोई में पेठा बनाया गया। हालांकि, इस बात की संभावना कम ही है, क्योंकि शाहजहां से जुड़ी कुक बुक्स जैसे नुस्खा-ए-शाहजहानी में पेठे का कोई जिक्र नहीं है।
पेठे की उत्पति को लेकर इतिहासकारों का एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पेठा मुगलों की देन नहीं है। दरअसल, मुगल दूध और मावा से भरपूर मिठाइयों को बनाना और खाना पसंद करते थे। जबकि पेठे को बनाने में कद्दू व लौकी का इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं, पेठे से मिलते-जुलते मीठे व्यंजन मुगलों के भारत पर राज करने से पहले भी अस्तित्व में थे।
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जिस पेठे को आज हम एक मिठाई के रूप में सेवन करते हैं। कुछ सालों पहले तक लोग इस औषधि के रूप में भी इस्तेमाल करते थे। ऐसा माना जाता है कि 1940 से पूर्व पेठे को एक आयुर्वेदिक औषधि की तरह बनाया जाता था। इतना ही नहीं, ब्लड से लेकर जिगर की बीमारियों में इसका सेवन किया जाता था। उस समय इसमें मीठे का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इसे स्वाद में परिवर्तन आने लगा और लोग चीनी के साथ-साथ इसमें सुगंध का इस्तेमाल करके रसीला पेठा बड़े ही चाव से बनाने और खाने लगे। वर्तमान में, लोग इसे 50 से अधिक तरह से बनाना व खाना पसंद करते हैं।
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